पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३४६

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मैमन-मैमनसिंह ३४३ दूसरी तरफ वंसगढ़ नामक खाड़ो अवस्थित है। मद्रास-। कहीं कहीं छः मोलसे भी अधिक देखी जाती है ! यमुना से देशी नाव चावल बेचनेके लिये मैपाड़ा मुहानेमें में प्रखर स्रोत वनेके कारण प्रति वर्ण चर पड़ जाता है। आया करती है। इस नदीमुख पर मैपाड़ा नामक एक | ब्रह्मपुत्र नदी इस जिलेके उत्तर-पश्चिम कराईबाड़ीके छोटा द्वोप भी है। यह अक्षा० २०४१३० उ० तथा समीप हो कर दक्षिणको ओर तोके तक वह गई है। देशा० ८७ ६१५' पू०के मध्य अवस्थित है। मेघना नदीका विस्तार इस जिलेमें बहुत थोड़ी दूर मैमन (संपु०) सौवीर गोत्ने वर्तमानस्य मिमतस्य ! तक है। अपत्य ण (फायटाहृतिमिमताभ्यां या फिभो। पा ११२१५०) मैमनसिंहकी जमीन साधारणतः तीन श्रेणीमें सौवीर गोत्रीय मिमतका अपत्य । इस अर्थमें फिर विभक्त है, जैसे-१ वलुई, २ दोरस, ३ मतियार । इनमें- प्रत्यय भी होता है जिससे 'मैमत्तायनि' पद बनता है। से प्रथम श्रेणीकी जमीन नदीके, किनारे अवस्थित है। मैमनसिंह-वङ्गालप्रदेशके ढाका विभागान्तर्गत एक इसमें नोल और पटसन उपजता है। श्य श्रेणी जला- जिला। यह अक्षा० २३५७ से २५ २६ उ० तथा देशा० | भूमि है : इस जमीनमें वोरो धान लगता है। ३य श्रेणी- ८६३६ से ११ १६ पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरि की जमीन सबसे अच्छी है। वहां धान खूब उपजता है। माण ६३३२ वर्गमील है। इसके उत्तर गोरा पर्वतमाला, मधुपुर जङ्गलके समीप किसी किसी स्थानमें लौह- पूर्वामें श्रीहट्ट और त्रिपुरा, दक्षिणमे ढाका और पश्चिममें मिश्रित लाल मिट्टो देखने में आती है। यमुना नदी है। मैमनसिंह नगर वा नशीराबाद इस इस जिलेके पूर्व भागमें जलमय स्थान तो बहुतसे हैं, जिलेका सदर है। . पर उनमे हवड़ा-विल हो उल्लेखनीय है। वहुत धना इस जिलेका अधिकांश स्थान समतल है। प्रायः जंगल होनेके कारण इस जिलेमें तरह तरहके जंगली सभी जगह श्यामल शल्यक्षेत्र नजर आता है । बहुत जन्तुओंका वास देखा जाता है। पहले नदीके किनारे सी नदियों और नहरोंके जिलेके मध्य बहनेसे जमीन चरके ऊपर बहुतसे बाघ भालू रहते थे। अभी वाधकी बहुत उर्वरा हो गई है । इस प्रदेशका एकमात्र मधुपुर संख्या बहुत घट गई है। चीता, हरिण, जंगली भैंस, जडल वा गढ़गुजालिस खेती-बारी लायक नहीं है। सूअर आदि अधिक सख्यामें देखे जाते हैं। गारो और यह जंगल ढाका जिलेके उत्तरसे ले कर मै मनसिंहके सुसङ्ग पहाड़ पर हाथी रहता है। वहांसे प्रति वर्ष मध्य देशमैं ब्रह्मपुत्र तक फैला हुआ है। इसका तलदेश वृटिश सरकार हाथी पकड़ कर लाती है। पहले केवल साधारण क्षेत्रसे अपेक्षाकृत ऊंचा है। ऊचाई सव वहांके राजाको ही हाथी पकड़नेका अधिकार था, पर जगह एक-सी नहीं है, पर इतना जरूर है, कि कोई भी | अभी गवर्मेण्टने उसे उठा दिया है। अब जो चाहे वह स्थान १०० फुटसे अधिक ऊँचा नहीं । असख्य हाथीका शिकार कर सकता है। शालवृक्ष इस जंगलमें देखे जाते हैं। इसकी लम्बाई प्राचीन कालमें यह जिला प्रागज्योतिष या कामरूप प्रायः ४५ मील और चौड़ाई ६ से १६ मील है । रकवा राज्यके अन्तर्गत था। प्राग्ज्योतिपके एक प्रसिद्ध राजा ४०० वर्गमीलसे ऊपर होगा। प्रीष्म और वर्षाकालमें यह भगदत्त कुरुक्षेत्रके महाभारत युद्धमें लड़े थे। वे किरातों- जंगलमय स्थान बहुत अस्वास्थ्यकर रहता है, अन्यान्य के राजा थे और उनका राज्य समुद्र तक फैला हुआ तुओंमें आवहवा अच्छी नहीं रहती। था। उनकी राजधानो गोहाटो (आसाम) में थी, परन्तु यमुना नदो दावकोवा नामक स्थानसे इस जिलेमें | उनके प्रासादका स्थान मधुपुरके जंगलमें बतलाया जाता घुसतो है। पोछे वह उत्तर दक्षिणाभिमुखी हो प्रायः | है जहां प्रति वर्ष मेला लगता है। ६४ वर्गमील रास्ता तै कर सलीमावाद तक आई है। पुराने ब्रह्मपुत्रका केवल पश्चिमी भाग वल्लाल पण्यद्रव्यवाही नावें सभो समय यमुनामें आतो जातो | सेनके दस्त्रलमें था, पूर्वी भाग नहीं । सम्भवतः इसो है। वर्षा ऋतुमें इसकी चौड़ाई इतनी बढ़ जाती है, कि कारण पश्चिमी भागमें वल्लालसेनको चलाई हुई कुलीन