पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३५

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मुद्रातत्त्व ( पाश्चात्य) प्रतिमूर्ति है। एपिरसकी मुहरोंकी अलेकसन्दरके समयमें नहीं हो सका है। आम्पितिवनिक समितिकी मुद्रा 'बहुत उति हुई थी। पिरहासको मुद्रा शिल्पनैपुण्य-1 बहुत सुन्दर है। उसके एक अंशमें आपलोका मन्दिर में श्रेष्ठ स्थान पाने योग्य हैं। इनमें विविध पुष्पस्तवक-1 और दूसरे अंशमें एक गूढ़ रहस्यपूर्ण मन्त्र है। प्लुतार्क- का विचित्र चित्रविन्यास है। ने इस सम्बन्धमें एक बड़े प्रस्तावकी रचना को है। किसी मुद्रामें मुकुटालंकृत आकिलिसकी वीरत्व- व्युसियाकी मुद्रा अत्यन्त रहस्यपूर्ण है। वे ख०पू० सूचक प्रतिमूर्ति है। दूसरे भागमें दरयावी घोड़े पर | ६ठी सदीक धनी हैं। मुद्राके एक भागमें हिराक्लिस सवार वर्मधारिणो थेरिसकी मूर्ति चित्रित है। पिर- और दूसरे भागमें शङ्क और चक्रका चिह्न है। अन्यान्य .हासके समय ताम्रखण्डका ही बहुत प्रचार था। ये | मुद्रा में जो लिपि उत्कीर्ण हैं उनकी सहायतासे हेड सव ताम्रखण्ड अनुपम शिल्पनैपुण्यसे विभूषित थे। साहबने एक बड़ा इतिहास लिखा है। . .उनमें परिहासकी माता फथियाकी वात्सल्यपूर्ण शान्त- आटिकाकी मुद्राने सेलिनके समय बड़ी उन्नति की चिवित है। थी तथा बहुतसे वाणिज्य प्रधान देशों में इसका प्रचार हो . करकाइरा द्वीपकी मुद्रा ख० पू० ६ठी सदीकी बनी) गया था। ये सव मुद्राएं ख० पू० ६ठो. शताब्दीके है। इनमें से कुछ मुदाके सम्मुख भाग पर दुधारिन गाय- पहले की हैं। प्रारम्भिक मुद्रामें एक फलशालिनी का चित्र और पश्चाद्भागमें पुष्पमालाका विचित्र समावेश ओलिभको शाखा लटक रही है। पारसिक युद्धके पहले- है. अन्यान्य मुद्राओंके एक भागमें समुद्रसम्भवा विजय- की मुद्रामें ओलिभ पल्लवालकृत अथेनाकी दिव्य मूर्ति लक्ष्मोको अपूर्वकान्ति तथा दूसरे भागमें खाधीनता और और दूसरे भागमें पंख फैलाए पेचक तथा उदीयमान फीर्तिदेवीको सुन्दर प्रतिमूर्ति है। यहांकी मुद्रामें जैसी सप्तमी चन्द्रका उज्ज्वल चित्र है। . .. ... . विचित्रता देखी जाती है वैसी और किसी मुद्रा में नहीं आयेन्सको मुहरें वाणिज्यप्रधान देशोंमें प्रचलित देखो जाती। नगराधिष्ठात्री, करकाइरा देवी, कोमस, हुई थी। मुद्रातत्त्ववित् रेजिनाल्ड स्टुआर्डपुलका कहना साइग्रिस, जयलक्ष्मी, यौवन, पल्लास, देशाधिष्ठात्री, है, कि सुदूरवती भारतके पंजाबमें तथा अरवके नाना अग्निदेव आदि अनेक प्रकारको विचित मूर्ति अपूर्व | स्थानोंमें आथेनीय आदर्श पर धनी हुई मुद्राएं पाई गई कौशलसे मुद्रातल पर अङ्कित देखी जाती है। . . इतोलियाको खणमुद्रा ई०सन् २८० वर्ष पहलेकी | | परवत्तों कालमें फिदियसको आथेना मूत्तिके अनु- ..है। इनसे ऐतिहासिकतत्त्वका बहुत कुछ पता लगा . करण पर मुद्रातलमें मणिमुक्ता विभूषित मुकुटालंकृता . · है। स्वर्णमुद्रा पर सिंहचर्मात हिराक्लिस और दूसरे सुषमाशालिनी आर्थना और दूसरे भागमें बोलिभशाखा • पृष्ठ पर गालप्रदेशके वर्ममें इतोलिया देवी विलासभङ्गो पर बैठी हुई पेत्रककी मूर्ति है। मिथदेतिसकी मुद्रा . पर बैठी हुई हैं। अन्यान्य मुद्रातलमें मृगयाष्यापारका विविध ऐतिहासिक रहस्यको मीमांसा की जा चुकी है। उज्ज्वल चित्र है। रौप्यखण्डके एक भागमें आटलाएटा- इस समयकी मुद्रामें विद्याधिष्टालो मिनर्भा वोणापुस्तक की मूर्ति और दूसरेभागमें कालिदनोय वराहकी आकृति हाथमें लिये अपूर्ण शोभा दे रही है। दूसरे भागमें पार्थि- चित्रित है। .. . . . ननकी अपूर्ण स्थापत्य कीर्ति है।. " . : फोकिस नगरको मुद्रा ही सबसे प्राचीन है। उनमें | . . बहुतोंका कहना है, कि इजाइना देशकी मुद्रा ही खु०पू०. ७वीं सदीकी तारीख अङ्कित देखी जाती है। उसके ग्रीक आदर्शका प्राथमिक निदर्शन है। इसी स्थानसे एक भाग, वृषमुण्ड और दूसरे भागमें सुन्दरी. युवती- समस्त ग्रीकमुद्राको उत्पत्ति हुई है। कहते हैं, कि मूर्ति है। परवत्ती मुद्रामें वकर, भेडे और गाय आदि | आर्गसके. अधिपति फिदनने ख.०० ७वीं सदीके पालतू पशुओंकी प्रतिमूर्ति है। बहुतोंमें एक कदाकार प्रारम्भमें सबसे पहले मुद्राका प्रचार किया । इसके काफ्रिकी मूर्ति है-इसका. कारण आज भी निर्णीत । पहले प्रतीच्य यूरोपमें ऐसे मुद्राखण्डका प्रचार नहीं