पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३५०

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मैसूर ३४७ स्थान रूपमें निरूपित हुआ है। अलावा इसके मुला-। और जन्तुपरिपूर्ण विस्तीर्ण वनराजि विराजित है। इनागिरि (६३१७ फुट), कुदुरीमुख (६२१५ फुट), पर्वत पर भिन्न भिन्न प्रकारका पत्थर और अवरक पाये वावा वुदनगिरि (६२१४ फुट), कालहत्तो (६१५५ | जाते हैं। समतलक्षेत्र पर कहीं तो कंकड़ और कहीं फुट ), रुद्रगिरि (५६९२ फुट ), पुरुषगिरि (५६२६ | रुई उत्पन्न होने लायक काली मिट्टो नजर आती है। फुट ), मेति गुह ( ५४५१ फुट) और वोहिनगुद (५००६ | आलावा इसके खनिज लोहे और स्वर्णादि धातुका भी फुट ), नामक कुछ ऊचे शृङ्ग महिसुरंराज्यमें अवस्थित अभाव नहीं है। हैं। वावाबुदन वा चन्द्रद्रोण गिरिमालाके मध्य जागर इस राज्यका कोई धारावाहिक इतिहास नहीं नामक बहुत उर्वरा अधित्यका है। मिलता, किन्तु प्राचीन शिलालिपि और ताम्रशासनादि महिसुर राज्य प्रधानतः दो भागोंमें विभक्त है, | पढ़नेस मालूम होता है, कि उनमें जो स्थान वर्णित हैं, पश्चिम भागका पर्वतमालाका सानुदेशांश मलनाड़ | वे रामायण और महाभारतके समयसे ही प्रसिद्ध हैं। तथा पूर्व भागका धान्य जलादि परिपूर्ण समतल क्षेल पौराणिक वर्णनसे ज्ञात होता है, कि यहां श्रीरामचन्द्रके मैदान कहलाता है। इन सव विस्तीर्ण शस्यक्षेत्रों में सहचर वालिके भाई सुग्रीवका राज्य था। ई० सन्के जल देनेके लिये जहां तहां नहर काट कर लाई गई है। ३री सदीमें बौद्धधर्म प्रचारकोंने यहां अपनी गोटी नदियोंमें कृष्णा, कावेरी, उत्तर और दक्षिण पेन्नार, जमाई। पीछे यहां जैनप्रभाव विस्तृत हुआ। आज पालार, गर्जिता, नेत्रवती, तुगभद्रा, वेदवती. भी तरह तरहकी शिल्पयुक्त जैन और बौद्धकीर्सि उन यागची, लोकपावनी, शरावती, सिमला, अकवती, सव युगोंकी प्रधानता सूचित करती हैं। लक्ष्मणतीर्थ, गुन्दल, कव्वनी, होन्नुहोले, चित्रावती, शिलालिपि, ताम्रशासन, राजवंशचरित्राख्यान, पापहनी आदि नदियां और शाखा नदियां प्रधान हैं। अलावा इनके और भी कितने छोटे सोते पहाड़ी ढालू- पाश्चात्य भौगोलिक टलेमीका वृत्तान्त और नुसलमान प्रदेशसे वह कर पूर्वोक्त नदियों में गिरते हैं। इतिहास पढ़नेसे दाक्षिणात्यके राजवंशोंका जो इतिहास नदियोंको अववाहिका-भूमि पर्वत-गह्वरगत तथा मालूम हुआ है उसकी आलोचना करनेसे जाना जातो तोरभूमि पार्श्ववत्ती समतलक्षेत्रकी अपेक्षा ऊंची होनेके है, कि अति प्राचीन कालमें कादम्ववंशीय राजाओंने कारण उनके जलसे खेतीवारीमें उतना लाभ नहीं १४वीं सदी तक उत्तर महिसुरका शासन किया था। पहुंचता। बाढ़के समयके अतिरिक्त नहरमें उतना जल वनवासोनगरमें उनकी राजधानी थी। इतने दिनोंके नहीं रहता, इससे नावे माल ले कर नहीं आ जा शासनमें उन्होंने किस प्रकार महिसुर राज्यको समृद्ध- शाली बना दिया था, उसका कोई विशेष प्रमाण नहीं सकी। केवल तुगभद्रा और कण्वनी नदीमें लकड़ी वहने लायक जल रहता है। कावेरी आदि बड़ी बड़ी मिलता। आगे चल कर उन्होंने चालुक्य राजाओंकी . नदियों में नाव आदिको विशेष सुविधा नहीं होने पर भी अधीनता स्वीकार की थी। कादम्ब-राजवश देखो। उसका जल खेतीवारोमें बहुत काम आता है। बांध जिस समय कादम्व-राजगण महिसुरका शासन खड़ा कर इस नदीका स्रोतोवेग रोक दिया गया है और करते, ठीक उसी समय कोयम्बतोर और समूचे दक्षिण- उसीसे कृषिकार्यका काम बड़ी आसानीसे चलता है। महिसुरमें गङ्ग वा कोंगु (किसीके मतसे चेड़)-वंशीय को गिरिसे हिरियुट और मोक्तकलमुस नामक | राजाओंका राज्य था। पहले कड़ रनगरमें और पीछे स्थानमें कुछ प्रस्रवण देखे जाते हैं। इस स्थानके कावेरी तीरवत्तीं तालकड़ नगरमें उनको राजधाना दक्षिण भागमें पहाड़ी मट्टी खोदने पर जमीनके अन्दरसे स्थापित हुई थी। वी सदीमें चोलराजाओंके अभ्यु- जल निकलता है। दयसे कोंगुवंशका अधःपतन हुआ। शिलालिपि पढ़नेसे पश्चिमघाट पर्वतके समीप तरह तरहके वृक्ष, लता . मालूम होता है, कि गङ्गवंशीय पूर्व राजे जैनधर्मावलम्बी