पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३५२

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. मैसूर वाद उनके वंशधर यामराज और कठोराजने महिसुर । तानकी मृत्यु हुई। इस समय अङ्गारेजराजने महिसुरको राज्य-सीमाको बहुत कुछ बढ़ा दिया था। १६३८-१६५८ जीत कर अरुकदु-वासी प्रांचोन हिन्दूराजवंशधर राम- ई० तक कएठीराजने दोर्दण्ड प्रतापके साथ महिसुर राजके पुत्र कृष्णराजको सिंहासन पर विठाया ! उसी राज्यका शासन किया। इस समय वे रात-दिन लड़ाई में | सालसे ले कर १८१० ई० तक नावालिग राजाका राज्य उलझे रहनेपर भी उन्होंने राजधानीको सुरक्षाके लिये शासन करनेके लिये पूणीहया नामक एक मराठा ब्राह्मण दुर्ग और चहारदीवारो वनवाई, टकसाल-धर खोले तथा| राजमन्त्रीके पद पर नियुक्त हुए। उन्होंने अपने अमित राजस्व उगाहनेके लिये अच्छे अच्छे कार्य किये। उनके तेज और अध्यवसायसे राज्यकार्य चला कर राजकोषको नामकी होणमुद्रा. १७३१ ई०में जब मुसलमानोंने महि- भर दिया था। वालिग होनेपर राजाने राज्यभार अपने सुरकों जीता था, उस समय यहांकी प्रचलित जातीय हाथ लिया तथा शासनविश्वलताके कारण जो कुछ मुद्रा समझी जातो थी। धन जमा था, कुल खर्च कर दिया। आखिर १८१ कण्ठीरोजके पौत्र चिक्कदेवरायने प्रबल प्रतापसे ३४ ई० में अंगरेजराज स्वतः प्रवृत्त हो कर उनकी ओरसे . वर्ण दक्षिणभारतका शासन किया। उनके राज्यकालमें राज्यशासन करने लगे। १८६८ ई० में उनके मरने पर १६८७ ई० को समस्त महिसुरवासी शैवधर्मको छोड़ वेत्तड़कोट राजवंशोय विक्ककृष्ण अरसूके लड़के चाम. कर वैष्णव हो गये थे। १७०४ ई० में चिक्कदेवरायका राजेन्द्र उदैयारको उन्होंने गोद लिया । कृष्णराजके छलसे परलोकवास हुआ। वर्षों राज्य करके वे जिस विस्तृत । महिसुरका शासनभार ग्रहण कर अंगरेजराजने शासन- राज्यको स्थापना कर गये हैं उसका राजस्व प्रायः एक ! को सुव्यवस्थाके लिये दो कमिशनर निघुक किये। करोड़ रुपया था। किन्तु इससे राजकार्यमें बड़ी गड़बड़ी मची। पीछे चिक्कराजके बाद उनके वंशके दो राजपुत्रोंने १७३१ । १८३४ ई० में कर्नल नोरिसन एक मान कमिशनर ई० तक राज्य किया। पोछे प्रकृत वंशमें उत्पन्न भिन्न नियुक्त हुए। उनके बाद सर मार्क कुधोन राजकार्ममें शाखाभुक्त रामराज नामक एक राजवंशधरको सिंहासन | | विशेष दक्षता दिखा कर अच्छा नाम कमा गये हैं। पर विठाया गया। राज्यशासनमें अक्षम देख दलवाई। १८६१ ई० तक उनके शासनकालमें महिसुरराज्यमें कोई ( सेनापति ) और दीवानने उन्हें तस्तसे उतार दिया | उच्छलता दिखाई नहीं देती। और करल दुर्गमें घेरा डाला। इसी अस्वास्थ्यप्रद : उसा साल गृटिशशासन प्रणालीसे राज्यशासन स्थानमें उनको मृत्यु हुई। अनन्नर चिक कृष्णराज करनेके लिये वृटिश सरकारने अच्छा प्रबंध कर दिया। नामक एक राजकुटुम्बको १७३४ ई० में महिसुरके सिंहा- कोर्ट आव डिरेक्टरको अनुमतिसे देशो राजाके हाथ सन पर अभिषिक्त किया गया। शासनविधि सौंपी गई। राजकार्य सुचाररूपसे चलता सामन्तप्रधान विक्क कृष्णराजके जमानेमे दाक्षि- है वा नहीं. इसको देखभाल करनेके लिये तोन विभागीय णात्यके सुप्रसिद्ध मुसलमान-सेनापति हैदरअलीने अपनो अंगरेज परिदर्शक नियुक्त हुए। इस समय गोद लेनेका चौरता और रणकौशलसे १७६३ ई०में वेदनूरको लड़ाई में अधिकार जिससे कायम रहे तथा दालक राजा सयाने महिसुर-राजको परास्त कर राजसिंहासनको अपनाया होने पर स्वयं शासनभार ग्रहण कर सके, इसके लिये और राजकोषको लूटा। हैदरने असाधारण प्रतिमा- शासन-विधिमें बहुत हेर फेर हुआ। १८८१ ई० महा- वलसे दक्षिणभारतमें जिस मुसलमान-शक्तिका विस्तार | राज चामराजेन्द्र उदैयारका अभिषेक कार्य यथारीति किया था उस सुख-ऐश्वर्यका उसके वंशधर रीपू-सुल- सम्पन्न हुआ। भारत राजप्रतिनिधिरूपमें मान्द्राजके तानको अधिक दिन भोग न हुआ। शासनकर्ता उस समय उपस्थित थे। महिसुरके चीफ हैदर और टीपूसलतान देखो। कमिश्नरने दीवानके हाथ कुल भार सौंप दिया। इस १७६६ ई०के श्रोरङ्गपत्तन अवरोधकालमें टोपू सुल- समय चोफममिश्नर और साधारण सचिवका पद जाता Vol. XVIII 88