पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३५३

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२५० मैसूर रहा। अलावा इसके शासनविषयमें और भी कितने परिवर्तन हुए थे। यहांके आदिम अधिवासियोंमें पहाड़ी कुरुवोंकी । संख्या हो अधिक है। ये लोग जंगलमें हासी नामक उसो वर्ष महाराजके ऊपर राज्यशासनमार अर्पित छोटी झोपड़ी बना कर रहते हैं। ये काले और डेंगने होने पर भी राजकार्य विधिमे कोई हेर फेर नहीं हुआ। होते हैं, सिर पर बाल रखते और जूड़ा बांधते हैं । स्त्रियां महाराज व्यवस्थापक सभाको सलाहसे सभी काम काज प्रायः जंगलसे बाहर नहीं निकलती। जेनु-कुस वगण करते थे। कोई नया कानून निकालने में उन्हें भारत उनकी एक शाखा है। फिर इरसिगर, सोसिगर आदि सरकारकी सलाह लेनी पड़ती थी। वे राजस्वका अप- कुछ असभ्य जातियां हैं जो निर्जन प्रदेशमें रहती और व्यय नहीं कर सकते थे। महाराजकी निजस्व सम्पत्ति जंगलो त पकडा जसीमे गजालातो। राजस्वसे अलग रहतो थी। आज भी यहां शासनविभाग मलनाद प्रदेशमें होलियास मन्नालु और होनालु और विचार विभाग स्वतन्त्र है। एक यूरोपीय और देशीय नामक कुछ आदिम जातियोंका वास है। ये लोग खेती विचारक हाईकोर्टको प्रणालीके अनुसार विचार-चार्य धारी करके जीविका निर्वाह करते हैं। वोकलिग जाति करते हैं। महिसुर और सिमोगा नगरमें एक सिविल ५० शाखाओंमें विभक्त है। ये लोग भी कृषिजीवो हैं। और सेसन जज अधिष्ठित हैं। वङ्गलूरका विचार कार्य | इस जातिकी संख्या महिसुर भरमें अधिक है। यहांके चीफकोर्टके प्रधान विचारपतिको ही करना पड़ता है। ब्राह्मण पञ्चद्राविड़ ब्राह्मणके अन्तभुक्त हैं। प्रत्येक जिलेका शासनकार्य कुछ डिपटी-कमिश्नरके हाथ यहाँका हिन्दू सम्प्रदाय प्रधानतः तोन धर्मावलम्बी है, है। इसके अतिरिक्त एक जुडिसियल असिस्टेण्ट, मुन- १ स्मातं, २ माध्ध और ३ श्रीवैष्णव । स्मातंगण सिफ और आमिलदार स्थानीय दीवानो और फौजदारी | अद्वैत, माध्वगण द्वैत और श्रीवैष्णवगण विशिष्टा का विचार करते हैं। प्रत्येक जिलेके मजिष्ट्रेट के अधीन तमतपोषक हैं। वणिक सम्प्रदायमें अधिकांश पुलिस नियुक्त है। प्रत्येक थानेका कार्य एक एक सह- लिङ्गायत् हैं। ये लोग ब्राह्मणोंका सम्मान नहीं करते। कारो पुलिस कर्मचारी द्वारा चलता है। वर्तमान इसके अतिरिक्त श्रावण गोलमें कुछ पुरोहित हैं। यहां सामन्तका नाम है सर श्री कृष्णराज उदैयार वहादुर गोमतेश्वर नामक एक बड़ी देवमूर्ति आज भी देखो जातो जी, सी, एस आई, जो, वी, ई। है। वस्ति वा जैनमन्दिरों में भी तोथङ्करादिको प्रति- राज्यके दूसरे दूसरे संस्कारोंमें जेलखाने, पूर्णविभाग, शिक्षाविभाग, पैमासीविभाग, आदिमें अच्छा प्रवन्ध है। मूर्ति नजर आती है। पहले लिखा जा चुका है, कि ई०सनसे पहले इस प्रतिवर्ण 'दशहरा' उत्सवके बाद प्रत्येक तालुकसे दो। राज्यमें वौद्ध और जैन प्रभावका प्रचार था। साव- वा तीन प्रतिनिधि निर्वाचन करके एक सभा की जातो | शिष्ट निदर्शन आज भी उस स्मृतिको रक्षा किये हुए है। है। विचारविभागके अध्यक्ष 'दीवान' महाशय सबके सामने राज्यको विचारविवरणी पढते हैं तथा परखती। चालुमयवंशके जमाने में स्थापत्य-शिल्पविद्या उन्नतिको वर्णके राजकार्यमें कौन कौन अच्छे अच्छे काम करने की चरमसीमा तक पहुंच गई थी। हयसाल बल्लालवंशीय राजाओंके शासनकालमे ( १०००-१२०० ई०के लिये शासन-समिति वाध्य हुई है उसे भी वे उपस्थित मध्य) कुछ चारुशिल्पमय मन्दिर बनाये गये। उनमें- लोगोंको सुनाते हैं। अन्त में स्थानीय प्रतिनिधि अपने से सोमनाथपुरका विख्यात मन्दिर राजा विक्रमादित्य अपने देशका अभाव तथा अभियोग समामें पेश करते हैं बल्लाल द्वारा बेल्लूरका विष्णुमन्दिर १११४ ई०में राजा सभा जैसा उचित समझती है वैसा ही फैसला सुनाती | विष्णुवर्धन द्वारा, और द्वारसमुद्रका काइतेश्वर शिव- है। वे सब कागज नत्थी करके रख दिये जाते हैं। इस मन्दिर राजा विजयनरसिंह द्वारा स्थापित हुआ था। प्रतिनिधि सभामें जो कुछ पास होता है पहले उसका अन्तिम शिवमन्दिरका निर्माणकार्य शेष होते न होते अंगरेजीमें अनुवाद कर पीछे जनताके समझनेके लिये देशी भाषामें रूपान्तरित किया जाता है। । १३१०-११ ई० में मुसलमान सेनापति मालिक काफूरने