पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३५५

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३५२ मैसूर छोटे द्वोपको घेर कर समुद्र के किनारे नदीमुखमें श्रीरङ्ग रङ्गपत्तन, मलवल्ली और हूनसुरनगर प्रधान है। जिले तीर्थ नामक पवित्र डेल्टेको लांघतो हुई वनोपसागरमें | भरमै ७ सौके करीव स्कूल और ३० अस्पताल है। गिरती है। इस नदीके वाम भागमें हेमवती, लोकपावती | ३ उक्त जिलेका एक तालुक, यह अक्षा० १२४ से और सिमसा तथा दक्षिणमें लक्ष्मणतीर्थ, कव्वानी और १२२७ ३० तथा देशा० ७६२८ से ७६२० पू०के मध्य होन्नूहोले नामक शाखा नदी वहती है। अवस्थित है। भूपरिमाण ३०६ वर्गमील और जनसंख्या पहले कहा जा चुका है, कि यह स्थान पर्वत-संकुल डेढ़ लाखके करीब है। इसमें महिसुर नामक एक शहर है। यहां श्लेट, दानेदार तथा तरह तरहके पत्थर देखने ओर १७० ग्राम लगते हैं। यहां नारियल, सुपारी, केला में आते है। पर्वतको गुफामें लाहेका अभाव नहीं है। तथा तरह तरहको शाकसब्जो उत्पन्न होती है। पतसे जो नदियां निकली है उनमें कुछ कुछ सोना भो | मैसूर राज्यको राजधानो। अक्षा० १२१८ ३० पाया जाता है। जगलमें चन्दन, शाल आदिके वृक्ष हो तथा देशा०७६४० पू० श्रीरङ्गपत्तनसे ५ कोस दक्षिण अधिक देखे जाते हैं। वाध आदि खूखार जानवरोंको पश्चिममें अवस्थित है। छोड़ कर यहांके जगलमें बहुतसे जंगली हाथी पाये। वामुण्डा पहाड़के नोचे विस्तीर्ण उपत्यका पर यह जाते हैं। लोग हाथोका शिकार करते और उन्हें वाजार- नगर वसा हुआ है। पर्वतके ऊपर चामुण्डा देवोका में लाकर बेचते हैं। मन्दिर शोभती है। चामुण्डा देवीने भहिपासुरको महाभारतके समय यह कावेरी नदी तथा उस पर मार कर इसो पर्वत पर विश्राम किया था। इस पर्वतके अवस्थित तीर्थ बहुत प्रसिद्ध थे। किन्तु प्रकृत इति समोप पुरोहितोंका वास और महाराजका विश्रामभवन हास सम्राट अशोकके परपत्ती समयसे ही प्रारम्भ हुआ दिखाई देता है। है। गाहवंशके अवसानके बाद यथाक्रम चोल, चालुक्य, यह देवमूर्ति महिसुर राज्यको अधिष्ठात्रो और हबसालवल्लाल, विजयनगर-राजवंश और उदैयारोंने राजाओंकी कुलदेवी है । मन्दिर चारों ओर पत्थरको यहांका शासन किया। ऊंची दीवारसे घिरा है। गोपुर नामक सिंहद्वारके चारो इन उदैयार राजोंने विजयनगरके राजप्रतिनिधि श्रोरङ्ग वगल नाना देव-देवियोंको मूर्ति अङ्कित है। पत्तन पर अपना आधिपत्य जमाया। ये लोग पूर्वापर राजवशके नियमानुसार इस मान्दरमें राजकुमार मुसलमानों के साथ मित्रता करके राजकार्य चलाते | और राजकुमारियोका नामकरण होता है। देवी प्रस्तर- थे। १६८७ ई० में इन्होंने औरङ्गजेवके सेनापति कासिम | मयो अष्टभुजा ओर सिंहवाहिनी है। असुरको महिषा- खाँसे ३ लाख रुपये में बङ्गलूर दुर्ग खरोद लिया। १६६ कृति देह मनुष्य-सो है। उसका पाठ सिंहको पार है १०में दिल्लोके बादशाहने उदैयारराजको हाथी दांतके बने आर वह अपने मस्तकका धुमाकर देवीका ओर देख रहा सिंहासन पर विठाया और राजसनद दी। १७०४ इमे है। देवीनं दाहिने हाथस विशूल पकड़ कर असुरकी चिक्कदेवराजके मरने र उदैयारराज दलवाईके हाथके छातोमे घुसेड़ दिया है और वाए हाथमे नागपाश ले कर खिलौने वन गये। १७६१ ई०मे लार्ड कार्नवालिसने ; उसे मजबूतीस बांध रखा है। उनके अन्यान्य हाथोंमें अङ्गारेजका सेनापति बन कर वङ्गलूरको अधिकार किया। नाना प्रकारकं हथियार हैं। देवीके दोनों पैर सिहके दूसरे वर्ण उन्होंने ओर भो कितने दुर्ग टीपू सुलतानसे ऊपर हैं और सिंहको पोठ असुरकी मोर होनेपर भो वह छान लिये । १७६६ ई०में टोपूको मृत्यु होने पर मार्किस मस्तक धुमा कर असुरको पकड़े हुए है। आव वेलेस्लीने एक चार वर्णके नाबालिग राजकुमारको प्रतिवर्ष शारदीय दुर्गापूजाके समय यहां सैकड़ों सिंहासन पर विठा कर हिन्दुराज्यका प्रवर्तन किया। वेदपारग ब्राह्मण इकट्ठे होते और नौ दिन याग, होम, इस जिलेमें २७ शहर और ३२११ ग्राम लगते हैं। श्रीसूक्त, भूसूक्त, मत्स्यसूक, पुरुषसूक्त और पञ्चाक्षरमंत्र जनसंख्या १२ लाखसे ऊपर है। शहरोंमें महिसुर, श्रो- अपते हैं। प्रति दिन चण्डापाठ भी होता है। देवीके