पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३६०

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मेस्पेरतत्त्व . ३५७ डा० फ्राङ्कलिन आदि द्वारा उक्त रिपोर्ट में ऐसी निन्दा, उस पात्र ( Patient )-के चक्षके ऊपर अपनी दोनों की जाने पर भी उस नूतन प्रथाको विलोप नहीं हुआ। आंखोंको स्थिर रखना चाहिये। सभी इस प्रक्रिया उसके बाद जो विवरण प्रकाशित हुआ उसमें लिखा है, द्वारा अभिभूत होगा ऐसी आशा नहीं की जाती । आध कि डा० मेस्मेरके निकाले हुए गंगारोग्यपन्था पर सर्वोने | घंटेके भीतर जिसमें प्रक्रियाका असर हुआ न देखे उसे विश्वास कर लिया है। देशवासोके विश्वास पर उक्त परित्याग करना ही उचित है। मैस्मेरके मतानुसार सम्प्रदाय दिनों दिन पुष्ट होता जा रहा है । मि० मेस्मेरने एक व्यक्तिको शक्तितत्त्वके अधीन लाने में दो व्यक्तियोंका इससे काफी रुपया भी कमाया था। प्रयोजन होता है, किन्तु डा० रोड इसे स्वीकार नहीं इस मैस्मेरतत्त्वका पहले इङ्गलैण्डमें प्रभाव जमने न | करते। वे कहते हैं, कि चित्तको एकाग्र करनेके लिये पाया। वहांके चिकित्सक-समाजमें यह पहले भयावह वस्तुविशेषके ऊपर स्थिर दृष्टि रखनेसे ही वह थक्ति समझा गया। आखिर डा० पार्किन्सने एक 'मेटालिक वशीभूत हो जायगा, दो व्यक्तिकी विलकुल जरूरत नहीं। द्राकर' प्रस्तुत कर स्वतन्त्र उपायले जैविक आकर्षणी _____ स्नायविक दौर्वाल्पविशिष्ट व्यक्तिको स्थिर दृष्टि वा शक्ति सञ्चयका उपाय निकाला। उस यन्त्रकी सहा शक्तिसञ्चालन (Passes or tixed attention)-क्रिया- यतासे वे प्रायः ढाई सौ मनुष्य और जीवदेहकी परीक्षा | के अधोन करनेसे विभिन्न फल देखने में माता है । इस कर सफल काम हुए थे। इसके बाद उन्होंने रोगारोग्य- | विभिन्न अवस्थाके सम्बन्धमें प्रसिद्ध जर्मन लेखक विषयमें उस यन्त्रको उपकारिता लिपिबद्ध कर एक _ Kluge ने निम्नलिखित कुछ क्रम निर्देश किये हैं। लम्बा चौड़ा प्रबंध किया था। पीछे वाथ निवासी डा० १ जाग्रतावस्था ( making ) ज्ञान और पञ्चे. विलियम फल्कनर और डा० हेगार्शने उनका पक्ष सम- न्द्रियको कर्मशक्ति पूर्णरूपसे वर्तमान रहती है। पात्र र्शन कर उक्त तत्त्वके विस्तारमें बड़ी सहायता पहुंचाई सभी विषयों में धारणक्षम रहता है। थी। २ अर्द्ध जानतावस्था ( Half-sleep वा imperfect डा० मैस्मेरकी मृत्युके बाद बहुतसे वैज्ञानिक और | crisis)-इन्द्रियां कार्यकारी अवस्थामें समभावसे चिकित्सक-प्रवर जैविकोंते चुम्बकाकर्णणो शक्तिको परि- रहती है। केवल दृष्टिविभ्रम होता है। दोनों चक्ष वृद्धि और विस्तारके विषयमें ध्यान दिया तथा वे प्रसिद्ध एकाग्र चित्तके अनुवल से जिस द्रव्यविशेषमें विन्यस्त रोगोपशमकारि-शक्ति (Curative agent ) का परि- रहता है उससे लक्ष्य भ्रष्ट हो जाता है। चय दे गये हैं। ३ शाक्तिक-निद्रा (Magnetic mesnnric sleep) जैविक चुम्दकशक्तिके प्रभावसे मनुष्यके शरीरमें जो इन्द्रियां अपने अपने कार्यमें अक्षम रहती हैं। पालकी विभिन्न प्रकारकी क्रिया देखी जाती है तथा उस क्रिया- | अवस्था स्पन्दहीन, संज्ञाशून्य और जड़ है। के संघटन के लिये जो विभिन्न उपाय अवलम्वित और ४ स्वप्न-सञ्चरावस्था ( Perfect crisis or simple आविष्कृत हुआ है, एकमात्र मेस्मर और उनके यूरोप | somnambulism)-इस अवस्थामें रोगी भीतरसे जाग्रत महादेशस्थ शिष्यसम्प्रदाय उसकी बहुत कुछ उन्नति | ( Wake mithin himself) रहता है तथा धीरे धीरे , करके कार्यक्षेत्रमें उतरे थे। जिस व्यक्तिको मेस्मेरिक, वह देहमें आ जाता है । उसको यह अवस्था निद्रित भी क्रियाके अधीन लाया जायगा उसे सामने खड़ा कर ये नहीं है और न जागरित हो है वरं इसे दोनोंको मध्यवत्ती लोग गृहस्थित उस चुम्वकशक्तिपूर्ण पात्रको छुलाते | कोई अवस्था कहा जा सकता है। तथा उसके शिरसे ले कर पैर तक हाथ फेरते थे। इस । ५ तीक्ष्ण वा निर्मल दूष्टि ( Lucid risions )-इस प्रकार वार चार हाथ फेरनेसे वह आदमी आध घंटेके | अवस्थामें रोगी अपने शरीरगत आन्तरिक और मानसिक भीतर स्पन्दहीन हो मैस्मेरिक शक्तिके अधीन हो जाता | सभी विपर्योका सम्यक ज्ञान लाभ तथा रोग-प्रकृतिका है। प्रक्रियाकारक ( mesmeriser ) को सभी समय | अवश्यम्भावी खाभाविक परिणतिका ठीक ठीक लक्षण Vol. XVIII, 90