पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३६० मोई-मोक्ष का वन्दोवस्त न कर मटक सहित समूचा लखिमपुर। जीव केवल कर्मके बंधनसे बंधा हुआ है। उस कम जिला अंगरेज-शासनमुक्त कर लिया। को छेद कर सकनेसे ही मोक्ष प्राप्त होता है। ___ यह मटक जाति अभी आसामको दूसरी दूसरी | मोक्षका विषय दर्शनशास्त्र में विशदरूपसे लिखा है, जातिके साथ मिल गई है। आजकल उनमें और किसी लेकिन यहां पर संक्षिप्त रूपसे समझा दिया जाता है। प्रकार की जातीय प्रधानता देखी नहीं जाती । वह पूर्वतन परम पुरुषार्थका नाम मोक्ष है। पुरुषार्थ शब्दसे मटक-सामन्तराज्य फिलहाल भिन्न भिन्न मौजों में बंट | पुरुषका प्रयोजन समझा जाता है। पुरुषका जो अभि- गया है। समतलभूमिके रहनेवाले मटक, जंगली लषणीय है वही पुरुषार्थ है । पुरुषार्थ चार भागोंमें मराण तथा वैष्णवप्रधान मोआमारिया नामसे बांटा गया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष वा अपवर्ग परिचित है। तिफुक-गोसाई इनके धर्मगुरु हैं। इनमें मोक्ष परम पुरुषार्थ है। वाकी तीनों पदार्थ ही मोई (हिं० स्त्री०) १ घोमें साना हुआ आटा। यह विनाशी है। माक्ष विनाशी है, इसीसे वह परमपुरु- छींटकी छपाई के लिये काला रंग बनाने में कसोस और पाथ है । मोक्ष शब्दके व्युत्पत्तिगत अथके प्रति लक्ष्य धौके फूलोंके काढ़े में डाला जाता है। २ मारवाड़ करनेसे बन्धनमोचन हो मोक्ष समझा जायगा। बन्धन देशमें होनेवाली एक प्रकारकी जड़ी। कहीं कहीं इसे शब्दसे जीवात्माका ही बंधन समझना चाहिये । इस ग्वालिया भी कहते हैं। वन्धनका अर्थ है सुखदुःख-भोग वा संसार। मोक (सं० क्लो० ) पशुचर्म, जानवरका चमड़ा। जीवात्माका संसार वा वन्धन अज्ञानमूलक है। मोका (हिं० पु.) १ मद्रास, मध्यभारत और कुमायके । अर्थात् मिथ्याज्ञान संसारका हेतु है, जब तक कारण जंगल में होनेवाला एक प्रकारका वृक्ष । इसके पत्ते प्रति वर्ष विद्यमान रहता है, तब तक कार्यको निवृत्ति विलकुल मह जाते हैं। इसको लकड़ी कड़ो और सफेदी लिये | नहीं होती। अतएव जब तक मिथ्याज्ञान समूल दूर न भूरे रंगकी होती है और आरायशी सामान बनानेके | हो जायगा, तब तक संसार-निवृत्ति वा मुक्ति हो हो काममें आती है। खरादने पर इसको लकड़ी बहुत नहीं सकती। मुक्ति परमपुरुषार्थ है, मुक्तिके लिये चिकनी निकलती है और इसके ऊपर रंग और रोगन सवोंको समुत्सुक होना उचित है । वद्ध रहना कोई भी पसन्द नहीं करता, सभी वन्धन मुक्ति हो चाहता खूब खिलता है। इसको लकड़ी न तो फटती है और न है। मिथ्याज्ञान वन्धन हेतुका कारण है। तत्त्वज्ञान टेढ़ी होती है। यह वृक्ष वर्षा ऋतु में वीजोंसे उगता है। इसे गेठा भी कहते हैं। २ मोरवा देखो। ३ मौका देखो। मिथ्याज्ञानका समुच्छेदक वा विनाशक है। विना तत्त्व ज्ञानके और किसी भी उपायसे मिथ्याज्ञान दूर नहीं मोकि (सं० स्त्री.) रात्रि, रात। होता। मिथ्याज्ञानके दूर नहीं होनेसे मुक्ति नहीं मोक्त (सं०नि० ) मुच-तृच् । मोचनकर्ता, मुक्त करने- होती। अतएव तत्त्वज्ञान मुक्तिका कारण है। तत्त्व- वाला। ज्ञान दो प्रकारका है, परोक्ष और प्रत्यक्ष । जो मिथ्याशान मोक्ष (सं० पु० ) मोक्ष्यते दुःखमनेन, मोक्ष-करणे-घञ्। प्रत्यक्ष नहीं है वही परोक्ष है। परोक्ष तत्त्वज्ञान द्वारा मुक्ति। ही उसका उच्छेद होता है, किन्तु जो मिथ्या ज्ञान प्रत्यक्ष "न मोक्षो नभसः पृष्ट न पाताले न भतले। है परोक्ष तत्त्वज्ञान द्वारा उसका विच्छेद नहीं होता। सर्वाशासंक्षये चेतः क्षयो मोक्ष इति श्रुतिः ॥" उसके उच्छेदके लिये प्रत्यक्ष तत्त्वज्ञान आवश्यक है। (सांख्यसा० २।३१२५)| रज्जुमें सर्पज्ञा भ्रम होनेसे वह सर्प नहीं, रज्जु है। आकाश पाताल या भूतल आदि किसी भी स्थानमें | इस प्रकार यदि दूसरा आदमी वार वार कहे तो भी मोक्ष नहीं है, केवल आशाके नाश होनेसे ही मोक्ष हाताभ्रान्त व्यक्तिका सर्पभ्रम दूर नहीं होगा, क्योंकि भ्रान्त । व्यक्तिका सर्पभ्रम प्रत्यक्षात्मक है। दूसरेके उक्तिमूलक