पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३६७

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३६४ मोत ध्यष्टि स्थूलशरीरोपहित चैतन्य विश्व नामसे प्रसिद्ध है।। प्रध्वंसरूप प्रलय ब्रह्मनिष्ठ नहीं है--मायानिष्ठ है। इससे मालूम होता है, कि एकमात्र चैतन्य विभिन्न | ब्रह्ममें परिकल्पित जगत् तत्त्वज्ञान द्वारा ब्रह्ममें वाधित 'उपाधि योगसे विभिन्न शब्दमें कहा गया है, वस्तुगत होता है। इनमें कोई भेद नहीं है। ___ यह वाधरूप प्रलय ब्रह्मनिष्ठ है। द्विपरार्द्ध काल सृएिका विषय एक तरह संक्षेपमें कहा गया। अव | शेष होनेके पहले कार्यब्रह्मका ब्रह्मसाक्षात्कार होने पर प्रलयका विषय कहता हूं। प्रलय शब्दका अर्थ है | भो ब्रह्माण्डाधिकाररूप प्रारब्ध कर्मकी परिसमाप्ति नहीं' त्रैलोक्यविनाश वा सृष्ट पदाथका नाश। प्रलय चार होतो, इस कारण अधिकार काल तक (द्विपराद्ध काल) प्रकारका है, नित्य, नैमित्तिक, प्राकृत और भात्यन्तिक। कार्यब्रह्मके विदेहकैवल्य वा परम-शक्ति नहीं होगी । सुषुप्तिका नाम नित्यप्रलय है। सुपुप्तिकालमें सुषुप्त ब्रह्मलोकवादियों के ब्रह्मसाक्षात्कार होनेसे उन्हें भी पुरुपके पक्षमें सभी कार्य प्रलीन हो जाते हैं। श्रुतिने विदेहकैवल्य होगा। कहा है,-सुपुप्ति अवस्थामें द्रष्टासे विभक्त वा पृथगभूत ब्रह्मसाक्षात्कारनिमित्तक सर्वजीवको मुक्तिका दूसरा कोई ब्रटथ्य पदार्थ नहीं रहता। इस कारण द्रष्टा नाम आत्यन्तिक प्रलय है। एक जीववादमें वह एक नित्य चैतन्यस्वरूप होने पर भी वाह्यविषयका अभाव ही समय सम्पन्न होगा और नाना जीववादमें क्रमसे होता है, इस कारण सुपुप्तिकालमें वाह्यवस्तुका शान होगा। एक दो करके जोव मुक्त हुआ है, होता है और नहीं रहता। धर्माधर्म आदि उस समय कारणरूपमें होगा। इस प्रकार धीरे धीरे ऐसा समय आ पहुंचेगा, अवस्थित रहता है। अन्तःकरणको दो शक्ति है, ज्ञान- कि सभी जीव मुक्त हो जायगे। एक भी जीववद्ध नहीं शक्ति और क्रियाशक्ति । सुषुप्तिकालमें ज्ञानशक्ति रहेगा। यहो आत्यन्तिक प्रलय है। नित्य, नैमित्तिक विशिष्ट अन्तःकरणका विलय होता है, इस कारण सुषुप्त- और प्राकृत प्रलयका हेतु कर्मोपरम है। इन सब प्रलय पुरुपके गधादिका ज्ञान नहीं रहता । क्रियाशक्ति में भोग हेतु कर्मका उपरम होनेके कारण भोगमात्रका विशिष्ट अन्तःकरण चिलीन नहीं होता, इस कारण उपरम होता है। संसारका मूल कारण अज्ञान है वह सुपुप्तपुरुषको प्राणनादि क्रिया वा श्वास प्रश्वासविशिष्ट । इन सब प्रलयमें विनष्ट नहीं होता। किन्तु आत्यन्तिक नहीं होता है। प्रलय होनेसे ब्रह्मसाक्षात्कार वा तत्त्वज्ञानका उदय होता

कार्यब्रह्म चा हिरण्यगर्भके दिवसका शेष होने पर |

है। तत्त्वज्ञान होनेसे मिथ्याज्ञान वा अज्ञान रहने नहीं बैलोक्यमें जो प्रलय होता है उसका नाम नैमित्तिक प्रलय पाता। अतएव आत्यन्तिक प्रलयसे संसारका मूल है। ब्रह्माका दिन और रात चार हजार युगके कारण अज्ञान विनष्ट हो जाता है। अतएव आत्यंतिक समान है। प्रलयके बाद फिर सृष्टि नहीं होती। इस प्रलयको . कार्यब्रह्मका विनाश होनेसे सभी कार्योंका जो विनाश महाप्रलय कहते हैं। होता है उसका नाम प्राकृत प्रलय है। ब्रह्माका आयु- नित्य, नैमित्तिक और प्राकृत प्रलयका क्रम सृष्टि- काल द्विपरार्द्ध-परिमित है। इस आयुष्कालके अव. क्रमके विपरीत क्रमसे जानना होगा। सृष्टिक्रमसे यदि सान होनेसे कार्यब्रह्मका विनाश होता है। कार्यब्रह्मके प्रलय हो, तो पहले उपादान कारणका विनाश और विनाश होनेसे उसमें अधिष्ठित ब्रह्माण्ड, तदन्तर्वत्तों चतु- पोछे तदुपादेय कार्यका विनाश होगा, किन्तु यह बिल- देश लोक, तदन्तर्वत्तों स्थावर जङ्गमादि प्राणिदेह, कुल असम्भव है। क्योंकि उपादान कारणके विनष्ट भौतिक घटपटादि तथा पृथिव्यादि सभी भूतवर्ग प्रलीन होनेसे कार्य किसका आश्रम किये हुए रहेगा। यह हो जाते हैं। मूल कारणभूत प्रकृति वा माया सभो देखा जाता है, कि मट्ठोके बने हुए धड़े आदि जब टूट प्रलीन होते हैं, इसोस इसका नाम प्राकृत प्रलय है। यह फूट जाते तब फिर वे मिट्टोमें ही मिलते हैं। पहले प्रलय मायासे हुआ करता है, परब्रह्मसे नहीं। क्योंकि । मट्टोका विनाश और पीछे उससे प्रस्तुत घड़े मादिका