पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३७४

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मोक्ष-पोतमूलर ३७१ - नित्य शुद्धादि स्वभाव पुरुषका बन्धन है, प्रकृति योग "जरामरणमोक्षाय मामाशिता यतन्ति ये। व्यतीत संभव नहीं होता । अतएव इसी प्रकृतिके ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्म कर्म चाखिलम् ॥" बन्धनसे मुक्त होने के लिये जीवमात्रको ही चेष्टा करना (गीता० ७११६) विधेय है। | मोक्षक (सं० पु.) मोक्षतीति मोक्ष ण्वुल । १ मुष्ककवृक्ष, मुक्ति सम्बन्धमें यह मत है. कि आत्मामें जो सुख मोखा नामक पेड़।२ मोक्ष शब्दार्थ । (त्रि०)३मोचन- दुःख मोहादि प्राकृतिक धर्म प्रतिविम्वित हुआ है उसके कर्ता, मोक्ष करने या देनेवाला। तिरोहित होनेसे हो आत्माको मुक्ति होती है। जिस 'असन्धितानां सन्धाता सन्धितानाञ्च मोक्षकः।' प्रकारसे हो प्राकृतिक सम्बन्धका उच्छेद होना ही परम- ( मनु ४१३४२) पुरुषार्थ है। | मोक्षण (सं० पु०) मुक्तिदान, मोक्ष देनेकी किया। मुक्ति होनेसे आत्मा किस अवस्था में रहती है वह मोक्षणीय ( स० त्रि०) मोक्ष-अनीयर् । क्षेपणीय। वचनातीत, वद्ध अवस्थामें जाना नहीं जाता। सुषुप्ति "पापा बुद्धिरियं राजन् दैवेनापि कृता यदि । इसका कई एक दृष्टान्त हो सकता है। इस मतसे पञ्च तथापि मोक्षणीयोऽर्थो नैव बुद्धिमतां भवेत् ।।" विंशतितत्त्वमें ज्ञान या तत्वके स्वरूप साक्षात्कार होनेसे (गौ० रामा० २२०१६) दुःखकी आत्यन्तिक निवृत्ति होती है-दूसरे उपायसे | मोक्षतीर्थ (सं० क्ली० ) मोक्षप्रद तीर्थ । तीर्थभेद, मोक्ष- नहीं। वानप्रस्थ हो, संन्यासी हो अथवा गृही हो | प्रदायक ताथ । पञ्चविंशतितत्त्वमें पूर्ण ज्ञान लाभ कर सकने पर मी मोक्षद (सं० वि०) मोक्षं ददाति दा-क। मोक्षदाता, मोक्ष आत्यन्तिक दुःख मोचन हो जाता है तथा किसी समय देनेवाला। में भी उसे और दुःख में अभिभूत होना नहीं पड़ता। मोक्षदा (सं० त्रि०) १ मुक्तिदायिनी, मुक्ति देनेवाली। "पञ्चविंशतितत्त्वज्ञो यत्र कुत्राशमे वसेत् । (स्त्री०) २ अगहन सुदी एकादशी । जटी मुगडी शिखी वापि मुत्यते नात्र संशयः॥" | मोक्षदेव (सं० पु०) चीनपरिव्राजक युएनचुवंगको उपाधि । पञ्चविंशतितत्त्वज्ञ पुरुष जटी, मुण्डी, शिखी अथवा मोक्षद्वार (सं० पु०) १ मुक्तिका उपाय । २ सूर्य । ३ काशी। जो कोई आश्रमवासी क्यों न हो मुक्ति लाभ करना हो | मोक्षधर्म (सं० पु.) १ मुक्तिविषयक धर्म । २ महाभारत- के अन्तर्गत पर्वाध्याय। होगा। | मोक्षपति (सं० पु० ) तालके मुख्य साठ भेदोंमेंसे एक। तत्त्वज्ञान होने पर भी देहसत्वमें परममुक्ति यो । इसमें १६ गुरु ३२ लघु गौर द्रुत माताएं होती हैं। कैवल्य नहीं होता। तव भी पूर्वानुभूत संस्कारका शेष मोक्षपुरी (सं० स्त्री० ) काशीक्षेत्र आदि सात पुरी । अयो- रहता है। तत्तुज्ञान अज्ञानसंस्कारको दग्ध करने पर ध्या, मथुरा, माया, काशी, काञ्ची, अवन्तिका और द्वारा- भी वह दग्धवीजको तरह आभासभावमें अवस्थित रहता वती ये सब पुरी मोक्षदायिका हैं इसीसे मोक्षपुरी कही है। शरीरपातके बाद वह निरवशेष हो जाता है। गई हैं। सुतरां तव प्रकृत विदेह कैवल्य वा आत्यन्तिफ दुःख "अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका। निवृत्तिरूप मोक्ष सुसम्पन्न होता है। (साख्यद०) पुरी द्वारावती चैव सप्त ते मोक्षदायिका ||" (स्कन्दपु०) - मुक्ति शब्द देखो। | मोक्षमहापरिषद् (सं० स्त्री०) बौद्धोंकी प्रधान धम - २ पाटलिवृक्ष, पाँडरका पेड़। ३ मोचन, किसी समिति । प्रकारके बंधनसे छूट जाना। ४ मृत्यु, मौत । ५ पतन, | मोक्षमूलर ( Max fuller )-शमण्यदेश (जमनी )-वासी गिरना । विश्लेष, शास्त्रों और पुराणों के अनुसार जीवका | एक विख्यात संस्कृतशास्त्रवित् पण्डित । शब्दशास्त्र जन्म और मरणके बंधनसे छूट जाना। (Philology ) में उनकी विलक्षण वुद्धि थी। १८२३