पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३७६

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मोक्षमूलर ३७३ उसमें दुरूह और दुर्बोध अंश जोड़ देना अच्छा होगा।" एलि, थिवो और इङ्गलैण्डके प्रसिद्ध ह० ० विलसन __इस वाईस वर्षके युवकको यह कठिन कार्य | आदि संस्कृताध्यापकोंसे आन्तरिक श्रद्धाके साथ अकु- ण्ठित भावमें सहायता पाई थी। कर डालनेको धुन लग गई । इसके पहले मुद्रित पण्डित वेद-सङ्कलन कालमें १८३०को ये आक्सफोर्ड विश्व- वर डा० रोसनके वनाये हुए वेदभागके कुछ अशों पर विद्यालयके Deputy Tarlorian Professor of Mo. इनकी दृष्टि पड़ी। लाख चेष्टा करने पर भी ये सारे dern languages पद पर नियुक्त हुए। इस समय यूरोप महादेशमें एक जगह एक सम्पूर्ण वेदग्रन्थका संग्रह भारत-तत्वसम्बन्धीय उपदेश देनेके लिये इन्होंने वक्तृता न कर सके । जर्मनी और फ्रान्सके पुस्तकालयोंमें संगृहीत धोंसे भिन्न भिन्न अशोका उद्धार कर थे | दी। चार वर्ष तक इसी पद पर रह कर १८५४ ई में सहकारीसे प्रकृत अध्यापक ( Professorship )-पद १८४६ ई०में इङ्गलैएड गये और आक्सफोर्ड विश्वविद्या- पर इनकी तरक्की हुई। १८५६ ई० में इन्होंने बडलियन लयकी विख्यात वडलियन लाइब्रेरी संगृहीत हस्त- लाइब्रेरीके क्युरेटर पदको सुशोभित किया था। इसके लिखित प्राचीन ग्रन्धोंसे पूर्वसंगृहीतांशोंका पाठोद्धार वादसे हो ये यश सौरभ और उपाधि रत्नसे अच्छी तरह करने लगे। • इस समय प्रगाढ़ पण्डित राजनीतिकुशल जर्मन राज- सम्बर्द्धित हुए । इस समय केम्ब्रिज और एडिनवरा विश्वविद्यालयसे इन्हें L. L. D को उपाधि मिली । दूत धैरन वुनसेनके साथ मोक्षभूलरका परिचय हुआ। पीछे ये फ्रेञ्च इन्सटिट्यूटके वैदेशिक सभ्यपद पर वे इन ज्ञानसन्धित्सु दरिद्र जर्मन युवकके अध्यवसाय नियुक्त हुए। पर बड़े मुग्ध और सन्तुष्ट हुए । पीछे उन्होंने भारत- इस समय इन्होंने प्राच्य धर्मशाखसम्बन्धमें प्रायः ५० वाणिज्यमें प्रसिद्ध इष्टइण्डिया कम्पनीको वेद छपवानेका प्रन्धीका अनुवाद किया तथा बहुतसे विभिन्न संस्कृत कुल खर्च देनेके लिये राजी किया । अगरेज-वणिक- साहित्य और उनमें भी किसी किसीका अनुवाद करा समितिको सहानुभूतिसे उल्लासित हो युवक मोक्षमूलरने कर छपवाया और प्रचार किया। विभिन्न प्राच्यदेशके घेदके भाष्य और मूल संग्रहरूप महाकार्यमें हाथ धर्मशास्त्रोंको मथ कर यह अगरेजी भाषामें जो सब प्रन्थ लगाया। सङ्कलन कर गये हैं, वह विद्यार्थीमात्रके पढनेको वस्तु . १८४६से १८७३ ई० तक असाधारण अध्यवसाय है। इन्होंने वैदेशिक पुराणशास्त्र-सागरमें डूव कर 'पुरा- और अटूट परिश्रम कर मोक्षमूलरने अपना बहुत समय तत्त्वका समन्वय' नामक प्रथ रचा है। इन्होने आक्स- वेदसङ्कलनमें ही विताया। १८४६, १८५३, १८५६ और फोर्ड, केम्ब्रिज, ग्लासगो, एडिनवरा आदि विश्वविद्यालय १८६३ ईमें आक्सफोर्ड विश्वविद्यालयके छापेखाने में के छालोंको अपनो गभीर गवेषणा और असामान्य उनके सम्पादित ऋग्वेदका एकसे छ: भाग तक मुद्रित प्रतिभाके परिचय स्वरूप जो सरल वक्तृता और उपदेश हुआ। १८७४ ई०की १४वी सितम्बरको आक्सफोर्ड में | दिया था वही पुस्तकके आकारमें मुद्रित हुआ। इनमें रह फर इन्होंने अपने ऋग्वेदग्रन्थके छठे भागको उपक्रम- Science of language, India what can it teach णिका शेष की। इसी दिन लण्डन शहरमें प्राच्यभाषा us? Chips from a German Trorkshop, story o विदोंकी महाजातीय समितिको पहली बैठक हुई । (The Sanskrit literature, Sir system of Hindu Philo- first day of the International Congress of orie sophy मादि उल्लेखनीय हैं । इनके लिखे अङ्रेजीथों- ntalists in London)। वेद-सङ्कलनमें इन्होंने प्रसिद्ध | की भाषा इतनो उज्ज्वल तथा भाव पेसा गम्भीर है, उसे फरासी पण्डित अलेकसन्दर भान हम्पोल्ट और अध्या पढ़नेसे स्वभावतः ही मनमें भक्ति और श्रद्धाका उदय पक इ वुनौफ, सिभेलियर चुनसेन, मिल, द्रिथेन् , रोअर, होता है । माधुर्यमयी संस्कृत भाषाके गौरवव्यञ्जक वाली, गोल्डस्टुकर, वैलएटाइन, भावदाजी, थियोडर, भावोच्छसि आपे आप पाठके मनमें आग्रह उत्पन्न कर औफेक, डा० फिट्ज़ एडवर्ड हाल, प्रो० होग, कावेल, | देता है। ___Vol, xvll1, 94