पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३७८

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मोतमूलर-मोक्षिण ३७५ उस वंशके आनन्दगजपति महाराज उस वेद-मुद्रण कार्यके अशोकके शासनकाल तक श्रुतियुग विद्यमान था, इसके उत्साहदाता हो कर सर्वजनपूज्य होचें, इसमें आश्चय हो वाद लिपियुगका आरम्भ हुआ । भारतवर्यमें लिपि- क्या ? ऋग्वेदकी प्राचीनता खोकार कर अध्यापक मोक्ष- प्रणालो विस्तृत होनेके बाद विभिन्न बौद्ध और हिन्दू मूलरने लिखा है,-"After the latest researches | धर्मग्रन्थ और उपाख्यानादि रचे गये थे। into the history and ehronology of the books ____ मोक्षमूलरने वैदिक साहित्यको तीन भागोंमें विभक्त of the Old Testament we may now safely call किया,-१ संहिता, २ ब्राह्मण, ३ उपनिषद् । उनकी the Rig-reda the oldest book, not only of | कल्पनाके अनुसार ईसाजन्मके पहले १००० से ६००के the Aryan humanity, but of the whole world, मध्य ब्राह्मणकाल, उसके बाद ४०० ई० तक उपनिषद्- and may hope that काल है, अतएव वेदसंहिता ईसाजन्मके १००० वर्ष यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले। पहले की है। यह मत कहां तक सत्य है, उस पर पीछे तावडेंग्वेदमहिमा लोकेषु प्रचरिष्यति ॥" विचार किया जायगा। वैदिक साहित्यका कालनिर्णय वैदिकयुगके प्रतिपाद्य चारों वेद, ब्राह्मण और उप करनेमें अध्यापक प्रवर जैसी भूल कर गये हैं, पौराणिक निषदादि वेदान्त, दर्शन और विभिन्न पुराण, धर्मशास्त्र | साहित्य और प्राचीन काव्यादिका कालनिर्णय करने में और संस्कृत नाटकादिकी आलोचना कर अध्यापक वैसे ही वे प्रत्नतत्वविदोंके निकट हास्यास्पद हुए है। मोक्षमूलर इङ्गलैण्ड और अमेरिकामें प्राचीन भारतका वेद और पुराण देखो। एक साधन-प्रभाव फैला गये हैं। उनके लिखे हुए अन्ध १८२३ ई०में जन्म ले कर प्राच्य और प्रतीच्य जगत् हो इस उद्दीपनाका प्रधान कारण है। उन्होंने केवल तथा आर्य संस्कृत भाषाके साथ प्रतीच्य भाषाओंका दूसरेके आविष्कृत तत्त्वका जनसाधारणके निकट भिन्न शब्दसामञ्जस्य दिखलाते हुए महामति मोक्षमूलर २०वी देशीय भाषामें प्रकाशित ही नहीं किया, वरन् प्राचीन सदीके आरम्भमें ही इस लोकसे चल बसे । संस्कृत साहित्यको मथ कर उसमेंसे एक ऐतिहासिक तत्त्वका भी उद्धार किया था। उन्होंने ही सबसे पहले | मोक्षलक्ष्मीविलास (सं० पु०) काशी विश्व श्वरके पास- संस्कृत साहित्यको श्रुति और स्मृति पुराणादि नामसे का एक मंडप। दो भागोंमें बांटा है। भारतवर्षमें हस्तलिखित लिपिका | | मोक्षवत् (सं० नि०) मोक्षः विद्यतेऽस्य मोक्ष-मतुप मस्य प्रचार होनेके पहले वेदादिका श्रुति पुरुषपरस्पराकी रक्षा व। मोक्षयुक्त, जिसकी मुक्ति हो गई हो। करनेके लिये गान होता था, इस कारण ब्राह्मण समाजमें मोक्षविद्या ( स० स्त्री० ) वेदान्तशास्त्र। शाखा, चरण, प्रवरादि विभाग संघटित हुए। क्योंकि मोक्षशास्त्र ( स० क्ली० ) मोक्षप्रद शास्त्र । जिस शास्त्रमें एक ब्राह्मण समाज वा श्रेणीके लिये समस्त वैदिक । मोक्षविषयक उपदेश है। साहित्यका स्मरण रखना बहुत कठिन है । इस श्रुति- मोक्षशिला (सं० स्त्री० ) जैन मतानुसार वह लोक जहां युगमें श्रौत और गृह्यसूत्रसाहित्यकी सृष्टि हुई। श्रौत जैन धर्मावलम्बो साधु पुरुष मोक्षका सुख भोगते हैं, और गृह्यसूलके साथ साथ प्राचीन ब्राह्मणसमाजी शाखा, स्वर्ग । चरण और प्रवरादि विभागका आचार-व्यवहार निर्देश मोक्षसाधन (स० क्ली०) साध्यतेऽनेनेति साधनं, मोक्षस्य कर धर्मसूत्र रचा गया था। धर्मसूत्रके वाद धर्मस्मृति- साधनं। मोक्षका उपाय, योगादि जिले अवलम्बन कर का अभ्युदय हुआ। मनुसंहिता (स्मृति ) इसी प्रकार | जीव मुक्तिपथका पथिक होता है, तपस्या। एक धर्मसूत्रके ऊपर प्रतिष्ठित थी। वर्तमान आविष्कृत | मोक्षा (स. स्त्री०) मोक्षदा देखो। मानवसूत्र उसका प्रमाण है। मोक्षिण (सं० वि०) मोक्षः अस्यास्तीति मोक्ष-इनि । उनके मतसे अति प्राचीन कालसे ले कर वौद्धराज | मोक्षयुक्त, वह पुरुष जिसको मुक्ति हो गई हो।