पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३८

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मुद्रातत्त्व (पाच्य) जनक शिल्पनैपुण्य दिखाई देता है। इसके एक भागमें | किसी राजाने ७००वों सदीके पहले जिस मुद्राका प्रचार चक्रका चिह्न और दूसरे भागमें रमणीकी मूर्ति है । उसको किया उसे देखनेसे यह स्पष्टतः वाविलनीय रौप्यमुद्रा-सी वगलमें ईग्ल पक्षो अपनी चोंचको फैला कर एक अजगर प्रतीत होतो है। इसके एक तरफ चतुष्कोणक्षेत्र और सांप निगल रहा है। किसी मुद्रामें वंशीवादनोधता। दूसरी तरफ तीन रेखामान है। मुद्रातत्त्वज्ञ हेड साहव- रमणीमूर्ति नाव पर बैठी हुई है। का कहना है, कि वह फिनिकीय मुद्राके अनुरूप है। साइक्लोडिस और स्पोरेडिस नगरीको मुद्रामें एक लिदियाके राजाने क्रिसस (Craesus) वाविलनीय मुद्राते सुन्दर चित्र है । किसी मुद्रामें मद्यपान (Amphora) और कम धजनकी मुद्रा तैय्यार की, पर रौप्यमुद्रा वाविलनीय दाखका धौद तथा कुछ सुन्दर, मछलियोंको मूर्ति है।। मुद्रासे अभिन थी। पश्चिम-उपकूलपत्ती प्रीक नगर- किसी मुद्रा में वकरे और मछली एकत्र चित्रित हैं । अब वासियोंने इस मुद्राका अनुकरण कर सर्वत्र ही मुद्रा शिष्ट मुद्राओंमें पोसिदन तथा आमको प्रतिमूर्ति देखी । ढालना शुरू कर दिया। कुछ हो दिन बाद पारसिक जाती है। अभ्युदय के समय लिदिया मुद्राको स्वतन्त्रता विलुप्त हो एशिया-खण्ड । गई। पाश्चात्य पण्डितोंके मतसे एशियामें सबसे पहले एशियामाइनरके वस्फोरस प्रदेशकी पीतल मुद्रा एशिया-माइनरको मुद्रा बनाई गई । यह कहां तक बहुत लम्बी और भारी होती है । इसके एक तरफ सत्य है अब तक भी स्थिर नहीं हुआ है । यहांकी : पार्सिनस और दूसरी तरफ मेटुसाको मूर्ति है। फिर मोहर आदि चार श्रेणोमें विभक है. १लो-स्थानीय वस्फोरस प्रदेशके राजाने महानुभव मिथदतिसको स्वर्ण- प्राचीनतम सुवर्ण मुद्रा तथा इलेक्ट्रम ( Electrum ), मुद्राका नया प्रचार किया। इसमें सामान्य शिल्प- री-लिदियान, ३री-ग्रोक आदर्शयुक्त, ४थी-पार- , चातुर्ग देखा जाता है । सिनापि-नगरकी मुद्रामें सिक आदर्शयुक्त । प्रसिद्ध सिजिकस नगरकी टकसालमे फ्रिजियादेशके मुकुटालंकृत एक नवीन युवककी सौम्य- सबसे पहले मुद्रा प्रस्तुत हुई। मूर्ति है। किसी मुद्रा में चन्द्रमाका चिह्न खाँदा हुआ ___उस समयकी मोहर आदिमें विशेष कुछ शिल्प- है। पित्तलमुद्राके ऊपर होमरकी मूर्ति है। इस समय नैपुण्य नहीं है। इसके बादकी मुद्राएं ग्रीक मुदाका । मुद्राशिल्प क्रमोन्नतिको सीढ़ी पर चढ़ रहा था। आज अविकल अनुसरण है-अलेकसन्दरके समय यहाँको कलको मुद्रामें एक तरह सिनोपिदेवीका मुखमण्डल और मुद्राको कारीगरी संसार भरको मुंद्राओंसे बढ़ी चढ़ी। दूसरी तरफ मत्स्य-शिकारोद्यत ईगलमूत्ति अंकित है। थी। बादमें जव ईसाजन्मके १६० वर्ष पहले मागेन- हिराक्लिया नगरकी रौप्यमुद्रा बड़ी ही सुन्दर है। इसमें सियर-युद्ध में सर्वत्र ही रोमकी विजयपताका उड़ने लगी। सिंहचर्मामृत हिराक्लिसको प्रतिमूर्ति है। उस समय रोमक-मुद्रा होका सब जगह प्रचार हुआ। इस एशियाखण्डमें जब पीक-आदर्शका अनुकरण होने लगा । समय मुद्रामें प्रोक-धर्मशास्त्रका पूरा परिचय मिलता है।। तव सबसे पहले माइसियान नगरमें मुद्रा प्रचार हुआ था। ___ आज तक पृथ्वीमें जितनी मुद्राएँ आविष्कृत हुई | सिजिकस नगरकी मुद्रामें बहुत कुछ रहस्य देखने में हैं उनमें एशिया-माइनरके लिदिया नगरकी इलेक्ट्रम- आता है। ई०सन्के ४७८ वर्ष पहले सिजिकसनगरमें मुद्रा ही सर्वापेक्षा पुरानी है। यह ईसाजन्मसे वों मोहरका व्यवहार देखा जाता है। यह वाविलनकी मोहर सदोके शुरूकी वनी है । इजाइनाकी रौप्यमुद्रा प्राचीनता- | जैसी है और बहुत भारी है। इसमें नाना प्रकार के में द्वितीय है। | जीवजन्तुओंके मस्तक अंकित है । किसी मुद्रामें सिंहके इलेक्ट्रम मिश्रधातु सोनेमें चौथाई भाग चांदी है। नीचे एक मछली विशेष निपुणताके साथ चित्रित है। यही धातु सवोंसे अधिक समय तक टिकतो है। इसका लाम्पास्कन नगरकी म दाम एक सुन्दरीको प्रति- मूल्य चांदीसे तेरह गुणा अधिक है । सिदियाके | मूर्ति है। उसके वाल पंडी तक लटक रहे हैं। पार्गा-