पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३८०

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. मोघता-पोचस्रव . ३७७ "यदन्यगोषु वृषभो वत्सानां जनये च्छतम् । . 'अमुक्को मोचकश्चायमकालः कालचोदकः। गोमिनामेव ते वत्सा मोघं स्कन्दितमार्षभम् ॥" . (शिवपु० वायुस० २।५१) (मनु ६५०) मोधन (सं० क्लो० ) मुचल्युट । १ मोक्ष । मुक्ति करना । २ हीन। (पु.) ३ प्राचीर । "अवतीर्य रथातूर्णं कृत्वा शौचं यया विधि! मोधता (सं० स्त्री० ) मोघस्य भावः तल-टाए। मोघत्व, रथमोचनमादिञ्च सन्ध्या मुपवियेशह ॥" (भारत) निष्फलत्व। २ कम्पन, कांपना।शाठ्य, शठता। ४ वंधन आदि मोधपुष्पा (सं० स्त्री० ) मोघं पुष्पं रजो यस्याः। वन्ध्या। खोलना, छुड़ान । ५ दूर करना, हटाना । ६ रहित करना, (राजनि०) ले लेना। मोचनकर्ता, छुड़ानेवाला। मोघा (सं० स्त्रो०) मोध-स्त्रियां टाप । १ पाटला, पाडर "धन्यं यशस्य निखिलाघमोचनं रिपुक्षयं स्वस्त्यनं तथायूषम् ।" का वृक्ष ।२ विडङ्गा वायविडंग । ३ पदरी, वेर । ४ | (भाग० ६ । १३ । २३) निष्फला। मोचनपट्टक (सं० लो०) १ वह वस्तु जिससे जल मोधिया (हिं० स्त्री०) मोटी मजवुत और अधिक चौड़ी छांका जाय। २ जलपरिष्कारक, पानी साफ करनेवाला । नरिया । यह खपरैली छाजनमें बड़ेरे पर मैगरा वांधनेमें मोचना (हिं० क्रि०)१ छोड़ना । २ गिरांमा, वहाना। काम आती है। ३ छुड़ाना, मुक्त करना । (पु०) ४ लोहारोंका एक औजार मोधिया-राजपूताना और मध्य भारतमें रहनेवाली एक जिससे वे लोहेके छोटे छोटे टुकड़े उठाते हैं। ५ हजामो- असभ्य जाति । यह पहले दस्युवृत्ति द्वारा अपनी का वह औजार जिससे वे बाल उखाड़ते हैं। जीविका चलाती थी। अभी अंगरेजोंके कठोर शासन- मोचनिका (स. स्त्री० ) मोचनी, भटकटैया। से डर कर बहुत कुछ शान्त हो गई है। मोचनिर्यास (सं० पु०) मोचस्य निर्यासः । मोचरस, मोधिया-पूर्व बंगाल और आसामवासी एक जाति।। सेमरका गोंद । मोचरस देखो। सम्भवतः इसकी उत्पत्ति मगजातिसे हुई है। मोचनी (सं० स्रो०) मोचयति रोगात् संसारादिति वा मोधोलि ( सं० पु०) प्राचीर। | मुच् णिच् ल्यु, स्त्रियां ङी । १ कण्टकारी, भटकटैया। मोध्य (सं० पु०) विफलता, नाकामयावी। २मोक्षकीं। मोगराज-बंगालका एक राजा। मोचनीय (सं० वि०) मुव-सनीयर् । मोचनयोग्य, मुक्ति मोच (सं० क्ली०) मुञ्चति त्वगादिकमिति मुच्-अच्। करने लायक । १ कदलीफल, केला । (पु०) २ शोभाङ्गन वृक्ष, सहि-मोचपुष्पा ( स० स्त्री० ) १ बन्ध्या स्त्री, वांझ स्त्री । २ जनका पेड़। ३ सेमलका पेड़। ४ पांडरका पेड़। (स्त्रो०)। कदलीवृक्ष, केलेका पेड़। ५ शरोरके किसी अंगके जोड़की नसका अपने स्थानसे | मोचयित स० वि०) मुच्-णिच-तृत् । मोचनकर्ता, मुक्ति इधर उधर खिसक जाना, चोट या आघात आदिके देनेवाला। कारण जोड़ परकी नसका अपने स्थानसे हट जाना। मोचरस (सं० पु०) मोचस्य रसः। शाल्मलिनिर्यास, इसमें वह स्थान सूज आता है और उसमें बहुत सेमरका गोंद । पर्याय मोचनुत्, मोचनाव, मोचनिर्यास, पीड़ा होती है। पिच्छिलसार, सुरस, शाल्मलीवेष्ट, मोचसार । इसका मोचक (सं० पु०) मोचयति संसारादिति मुच-णिच् | गुण-कषाय, कफ-वातनाशक, रसायन, वल, पुष्टि, ण्वुल । १ मोक्ष, मुक्ति । २ कदली, केला । ३ शिग्रु, वर्ण, वीय, प्रज्ञा और आयुर्वर्द्धक माना गया है। सहिजनका वृक्ष । ४ विरागी, विषय-वासनासे मुक्त । (राजनि०) ५मुष्कक वृक्ष, मोरवा नामक पेड़ । (त्रि०) ६ मुक्ति- मोचसार (सं० पु. ) मोचरस, सेमरका गोंद। . कारक, छुड़ानेवाला। . मोचनव (सं० पु०) मोचरस देखो। Vol. XVII1 95