पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३८८

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मोप-मोमवचो '३८५ इस उद्देश्य-सिद्धिके लिये मोम-ध्यवसायी पौले । लाभ पहुंचाता है। मोम चमड़े को शिथिल कर उसे मोमको ले कर फीते अथवा चादरके समान पतला | सुखा डालता है। करते हैं। अनन्तर उसे छत पर अथवा मैदानमें विछा ___ काठकी वस्तुमें दीमक आदि लग कर उसे बहुत कर बीच वीचमें उसके ऊपर जल छिड़का करते हैं । इस | जल्द काम बना देता है। किन्तु मोम और तारपिनको प्रकार वार बार सूयकी किरणसे उत्तप्त होनेसे मोमके / मिला कर यह उसमें लगाया जाय, तो सभी कीड़े मर ऊपर पीलापन रंग जम जाता है। उसका भीतरी और जाते हैं जिससे काठ ज्योंका त्यों बना रहता है। तल भाग उस समय भी पीला हो रहता है। पीछे उसे हिन्दूको पूजा, व्रत और शुभ कर्मादिमें मोमको वत्ती- पुनः गला कर और फीते या पत्तरके रूपमें बना कर का प्रयोजन पड़ता है। दुर्गापूजाके समय मोमको वत्ती 'धूपमें सुखानेसे उसमें सफेदी आ जाती है। इसी प्रक्रिया | जलानेका नियम है। दुर्गादि शक्तिमूर्ति के हाथ मोमके से मोम सफेद बनाया जाता है। कभी कभी सालफ्यु-/ पद्मफूल और मोमके फूलकी मालासे सजाये हुए देख्ने रिक एसिड, वाइक्रोमेट आव पोटाशसे मोमको परिष्कार | जाते हैं। करते हैं। यह लिवारेटेड कोमिक एसिड थोड़े ही समय विशुद्ध मोमकी वत्तीको छोड़ कर वर्तमान चौंकी के अन्दर मोमको साफ बना देता है। बत्तीमें भी अधिक मोम रहता है। मोमवत्तीका व्यवसाय . मोमसे सिलिंवक्स, लिथोग्राफिक केयोन्स और बहुत दिनोंले चला आ रहा है। भारतके सभ्य हिन्दू- माष्टिक आदि बनाये जाते हैं। फिर इसकी वत्तियां भी ! गण तथा वैदेशिक मुगल, पठान, अरवी, पारसी, तुर्क, बनाई जाती हैं जो बहुत ही हलकी और ठंडी रोशनी चीन, रूस, जापान, अंगरेज, फ्रान्स, जर्मनी, अष्ट्रिया, देती हैं। खिलौने और उप्पे आदि बनाने में भी इसका इटलो, स्पेन आदि देशों में करासिन तेल और कोल गैस. ध्यवहार होता है। के आविष्कार होनेके पहले इस मोमबत्तीका विशेष प्रचार औषध भी मोमका यथेष्ट व्यवहार देखा जाता है। था तथा एक समय इसका वे-रोक-टोक वाणिज्य चलता यह स्निग्धताकारक और आदताजनक है। कभी कभी | था। मोमबत्ती देखो। यह १०से २० ग्रेन औषधमें डाल कर रोगीको सेवन मोमजामा ( फा० पु०) वह कपड़ा जिस पर मोमका कराया जाता है। साधारणतः यह मरहमों आदिमें | रोगन चढ़ाया गया हो, तिरपाल । ऐसे कपड़े पर पड़ा डाला जाता है। हिन्दूप्रधान भारतवर्ष में सूअरकी | हुआ पानी आर-पार नहीं होता। चींके बदलेमें मोमका मरहम विशेष आदरणीय है। मोमदिल (फा० वि०) दूसरोंके दुःखसे शीघ्र द्रवित क्योंकि सूअरकी चवीं हिन्दू लोग नहीं छूते। इसके होनेवाला, वहुत कोमल हृदयवाला। . . सिवा सूभरकी चर्वीको अपेक्षा मोम अधिक दिन ठहरती मोमना (हिं० वि०) मोमका-सा, बहुत ही कोमल। . , सड़ कर वरवाद नहीं होता। इसी कारण आयुर्वेद- मोमवत्ती (हिं० स्त्री० ) शिल्पजात पण्यद्रव्यविशेष । मधु- विद्गणं १ भाग पोले मोम और ४ भाग मधुसंयुक्त | मक्खो नामक जीवके शरीरके मलसे इसकी उत्पत्ति है। Ceromel नामक एक मिश्रपदार्थका सूभरकी चवींके | छत्तेमें मक्खी कैसो कुशलताले वच्चोंके लिये गड्ढा बदले में व्यवहार करते हैं। बनाती है उसे देखनेसे चमत्कृत होना पड़ता है। प्रत्येक . सामान्य खुजली या और कोई जखम होनेसे हम गड्ढा चौकोन वना होता है। इस छत्तेसे मधुको लोग उस स्थान पर मोमकी मरहम-पट्टी बांधते हैं। निकाल कर जो सिट्ठी वच जाती है उसे गरम कर चवन्नी भर मोम, छटांक भर नारियलका तेल और दो मोम बनाया जाता है। उस मेमके भीतर वत्ती देकर माने भर आइडोफरम वा गंधक मिलानेसे बढ़िया माम | उसे घरमें जलाते हैं। बनता है। मोम और अफीम वा कुनाईनको नारियल केवल मक्खीका झुण्ड हो इसका मूल कारण है सो के तेलमें गला कर जखम या खुजली पर लगानेसे वहुत नहीं। अन्यान्य प्राणोको चरवोसे वत्ती बनाई जाती है। ___Vol. XVIII, 97