पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३८९

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मोमवती.. किसी किसी देशमें ऐसा पेड़ पाया जाता है जिसके | को ढालू गड्ढा हो जाता है। उत्तप्त तरल मोम निर्यासमें चर्वीके जैसा जलनेवाला पदाथ है। उसे कैशिक आकर्षणशक्तिके वश हो कर बत्तोमेंमें चढ़ती है अन्यान्य द्रयोंके साथ मिलानेसे रोशनी देने लायक उप और लौके साथ भाप बन कर उड़ जाती है। फूंक कर युक्त बत्ती बनती है। दीपमाला-विभूषित सुरम्य राज- बुझा देने पर भी एक धुआँ सा ऊपरको उड़ता रहता प्रासादमें वत्तीकी रोशनी जैसी शोभामय और सुखप्रद | है। बत्तीको विना छुआये उस भापमें जलती हुई है, वैसी ही दरिद्रके घरों में भी। दिल्लीके सुसमृद्धराज- दियासलाई लगानेसे वत्ती फिरसे जलने लगेगी। इससे कक्षमें बत्तीके प्रकाशकी अतुल शोभा जैसी मनोहारी है, | अनुमान होता है, कि मेद वा मोमसे उत्पन्न भाप ही हमेसा अर्कोसे ढके हुए घास आदिसे रहित लापलैण्ड- वास्तवमें जलता रहता है। . . : वासीकी वासभूमि उत्तर महासागरकूलमें तथा उसके ___ जलती हुई मोमवत्तीकी लौ गोलाकार होती है, आसपासके द्वोपोंमें भी वह मनुष्यका एकमात्र आनन्द उसके ऊपरका अंश बारीक और सूई-सा पतला होता दायक है। उस शीतप्रधान देशमै जव वहांके लोग एक | है। लोके चारों तरफका वाहरी हिस्सा ही जल कर वर्षसे ऊपर सूर्यमुख देखने न पाते, तव इसी बत्तीका प्रकाश करता है, मध्यभागमें भेद या मोमकी भाप रहती प्रकाश उन लोगोंके उस अभावको दूर करता है। है। जब लौ अच्छी तरह जलती रहती है, तब आलोक ___वहांको चरवीको बनी हुई बत्ती ही सूर्यालोकके शिखाकी बोहरकी वायु आलोक-मध्यस्थित वाष्पमें बदुलेमें व्यवहत होती है। यही चरवी उन लोगोंका प्रवेश नहीं कर पातो और मध्यस्थित वायु कभी भी खाद्य और परिधेय है। परिधेय कहनेसे गावाच्छादक शिखाके बाहरकी वायुके माथ मिल नहीं सकती। वस्तुका ही बोध होता है, किन्तु यहां पर उसका तात्पर्य पर्याप्त वायुके न होने पर वत्ती बुझ जाती है .कुछ और है। पहनावा जिस प्रकार गरमी और ठंडसे | अथवा अच्छी तरह जलती नहीं है। इस समय हम शरीरको बवाता और हृष्ट पुष्ट रखता है उसी प्रकार उसमेंसे ज्यादा धुआं निकलते हुए देखते है, शिखाके बत्तीकी रोशनी भी उनके खुले बदनको ठंड लगनेसे भीतरकी वायु कुछ थोड़ी-सी बाहर निकल आती है। बचाती है। वे लोग हमेशा इसीके उत्तापसे शरीरकी | बिना चिमनोको मट्टोके तेलको ढिवरोमेसे जो धुआं रक्षा किया करते हैं। निकलता है, उसका कारण है उत्थित वायुके समान वाह्यजगत्में चरबी. जिस प्रकार वायुके संयोगसे | वायुका अभाव । इस धुआं में अङ्गारमें अंगारके अणु प्रचुर अग्नि द्वारा जलतो तथा गरमी और रोशनी देती है, परिमाणमें विद्यमान रहते है। उसी प्रकार हम लोगोंके शरोरके रक्तमें वह प्रविष्ट हो मोमबत्तीको लौके वाहर उत्तापका आधिक्य देखा कर वायुकोषमें जब लाई जाती, तब अम्लजन संश्लिष्ट) जाता है। उस उत्तापके कारण ही उत्तप्त स्थानके मेद हो कर हम लोगोंके शरीरमें गरमी देती है। खाद्यद्रव्यका वाष्पले अंगारके अणु परमाणु विश्लिए हो जाते हैं और मेदोमय वा श्वेतक्षारविशिष्ट. पदार्थ ही उत्तापशक्तिका | पृथक रहते हुए ही वे जल कर भस्म हो जाते हैं । उत्पादक है। . . ___उदजन शिखामें स्वाभाविक उज्ज्वलता नहीं होती। . .इसके रासायनिक उपादानोंमें. हम अङ्गार, उदजन | कोई कठिन पदार्थ इसमें डालनेसे उस. पदार्थक पृथक् और .औक्सिजन देखते हैं ; कृष्णवर्ण अङ्गारने उद्जन और पृथक परमाणु लौमें.दग्ध होकर उजाला करते हैं। जलती हुई औक्सिजनके साथ रासायनिक संयोगसे.मिल कर कैसी . वत्तीमें प्रधानतः तीन चीजें मिलती हैं। पहले तो, घरमें जो अपूर्व श्वेतमूर्ति धारण की है। मोमबत्ती जलाते समय जाले पड़ जाते हैं, उसमें उसका कुछ अश . मिल जाता उस रासायनिक क्रियाका विश्लेषण होता रहता है। है। दूसरे, इसकी उदजन वाष्प अम्लुजनके साथ रासा- अग्निशिखाके उत्तापसे इसका कठिन शरीर गलता रहता| यनिक संयोगले मिल कर जलीय वाप्पके रूपमें परिणत हो जाती है। तीसरे इसका अगार उपादान वायुके है। सूतकी. वत्तीके चारों तरफ कटोरीकी तरह भीतर