पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३९६

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मोषक-पोह-तसीव ३३३ मोषक (सं० पु०) मुष्णातीति मुष्-ण्वुलः । तस्कर, करना यही मोहका कार्य है। . यह मोहजन्य पाप प्राय- श्चित्तसे विनष्ट होता है। .. . . . . घोर। "अकामातः कृतं पापं वेदाभ्यासेन नश्यति । मोषण (सं० क्ली० ) मुष ल्युट् । १ लुण्ठन, लूटना। २ चोरी करना। ३ छोड़ना। ४ दध करना। ५ वह जो कामतस्तु कृतं मोहात् प्रायश्चित्त पृथग्विधै ॥ अत्र मोहादिति को मोहः- चोरी करता या डाका डालता हो। मोषयित्नु (सं० पु०) १ ब्राह्मण । २ कोकिल, कोयल । मोहशब्देन देवेन्द्र ! बुद्धिपूर्वोव्यतिक्रमः। उच्यते पण्डितैर्नित्यं पुराणे सांशपायनः ॥" मोषा (सं० स्त्री०) १ चौर्य, चोरी। २ डकैती। (प्रायश्चित्तविवेक) मोषित (सं० त्रि०) मुष-तृण। १ मोषणकर्त्ता, वह जो चोरी करता हो ।२ चौर, चोर। पद्मपुराणके भूमिखण्डमें मोहकी वृक्षरूप. कल्पना की माष्ट्र (सं० त्रि०) मुष-तृच् । मोषक, चोर । गई है। उक्त वृक्षका बीज लोभ, मूल मोह, स्कन्ध, असत्य. शाखा माया, पन दम्भ और कौटिल्य, पुष्प सभी मोह (सं० पु० ) मोहनमिति मुह-भावे धनं। १ मूर्छा, वेहोशी। २ अविद्या। अविद्यासे मोहकी उत्पत्ति होती कुकार्य, सुगन्ध पिशुनता और अज्ञानफल अधर्मपोषक है। ३ दुःख, कष्ट । मत्स्यपुराणमें लिखा है, कि ब्रह्माको है। जो यह वृक्ष लगाता है उसका पतन निश्चय है। वुद्धिसे मोहको उत्पत्ति हुई है। (पद्म भूमिख० ११ अ०) ४ भ्रम. भ्रान्ति। ५ शरीर और सांसारिक पदार्थों- "बुद्ध मोहः समभवदहङ्कारादभून्मदः । को अपना या सत्य समझनेको बुद्धि जो दुःखदायिनी प्रमोदश्चाभवत् कपठान्मृत्युलॊचनतो नृप ॥" मानी जाती है। प्रेम, प्यार। ७ साहित्यमें ३३ (मत्स्यपु० २ अ०) संचारी भावों से एक भाव, भय, दुःख, घबराहट, गोतामें लिखा है, कि क्रोधले मोहको उत्पत्ति होती | अत्यन्त चिन्ता आदिसे उत्पन्न चित्तकी विकलता। . है। जीव विषयकी चिन्ता करते करते उसमें सङ्गाभि- | मोहक (सं० वि०) १ मोहोत्पादक, मह उत्पन्न करने- लाप होता है, विषयसङ्गसे कामना, कामनाको पूरी न | चाला | २ मनको आकृष्ट करनेवाला, लुभानेवाला। होनेसे क्रोध, क्रोधसे मोह, मोहसे स्मृतिभ्रंश,और स्मृति- मोहकार (हिं० पु०) पीतल या तावके घड़े का गला समेत भ्रंशसे बुद्धिनाश तथा बुद्धिके नाश होनेसे विनाश | मुहंड़ा। होता है। मोहठा (सं० पु० ) दश अक्षरोंका एक वर्णवृत्त । इसके "ध्यायतो विषपान पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते ।। प्रत्येक चरणमें तीन रगण और एक गुरु होता है। इसे सङ्गात् संजायते कामः काभात् क्रोधोभिजायते ।। | वाला भी कहते हैं। क्रोधोदभवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः। ' मोहड़ा (हिं० पु०) १ किसी पात्रका मुह या खुला भाग। स्मृतिभ्र शाबुद्धिनाशो बुद्धिनाशाद् विनश्यति ॥" २ किसी पदाथका अगला या ऊपरी भाग। मुह, (गीता २ अ०) खामोहरा देखो। जगत्में ममत्व बुद्धि हो मोहका स्वरूप है, 'मेरा घर मोहजनक (सं० पु० ) मोहस्य जनकः । माहोत्पादक, मोह मेरा लड़का, यह सव मेरा है, इस प्रकार ममत्व वुद्धिको | उत्पन्न करनेवाला। हो मोह कहते हैं। मोह-तसोव-नवाव-सरकार में नियुक्त राजकर्मचारी । "मम माता मम पिता ममेयं गृहिणी गृहम् । । शहरके आस पासके बाजारों में ये व्यवसायियोंके कामों- एतदन्यं ममत्वं यत् स मोह इति कीर्तितः ॥" की देखभाल करत थे। अलावा इसके बाजार दरको . (पद्मपु०क्रियायोगतार) ठीक करना, वटखरे आदि पर निगाह रखना इनका धर्मविमूढ़ताको मोह कहते। जान बूझ कर पाप | प्रधान काम था। फिर शरावी, दुष्प, लम्पट और Vol. xVIIT 99