पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३९७

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मोहताज-मोहन अन्यान्य कुपथगामी लोग प्रकाश्य स्थानमें किसी प्रकार मणियार और किञ्जर नामक स्थानके जलाशयमें ये लोग अन्याय आचरण न करे, इस ओर भी इनका विशेष लक्ष्य मछली पकड़ा करते हैं। किञ्जरमें जाम तमाची नामक रहता था। एक सिन्धुसामन्तराजके प्रासादका भग्नावशेष देखा मोहताज ( अ० वि०) १ धनहीन, गरीव । २ जिसे किसो | जाता है । प्रवाद है, कि राजाने नूरेन नामक एक धोवर- चातकी अपेक्षा हो। की लड़कीको व्याहा था। कवि शाहभट भी अपने प्रन्थ- मोहताजी (हिं० स्त्री० ) मोहताज होनेको क्रिया या | में इस घटना का उल्लेख कर गये हैं। भाव। इन लोगोंका चरित्र कलपित है। सतीत्व किसको मोहन (सं० पु. ) माहयतीति मुह णिच् ल्यु। १ धुस्तूर- | कहते हैं, ये लोग जानते तक भी नहीं। शराव, अफीम, वृक्ष, धतूरेका पौधा। २ कामदेवके पांच वाणों में से एक भांग आदि मादक वस्तुका सेवन इनका नित्यकर्म है। वाणका नाम। ये तैरनेमें बड़े दक्ष होते हैं, वचपनसे ही तैरना सीखते "कामस्यैते जगज्जेत्रमोहनास्त्राधिदैवतम् । हैं। पीर और मुल्लाओंका आस्ताना तथा मसजिदमें तद्रूपहृतचित्तोभत समाधिस्थेव तत्क्षयाम् ॥" जा कर नमाज आदि पढ़ना इनका धर्म है। सिन्धुनद- (कथासरित्सा० ७१२१३२ ) को ये लोग खाजा खिजिर समझ कर उसको भक्ति ३ नृपविशेष, एक राजाका नाम । ४ मोह लेनेवाला करते और कभी कभी नदीके किनारे आ उसकी पूजा ध्यक्ति, जिसे देख कर जो लुभा जाय । ५ श्रीकृष्ण । ६ करते हैं। बडामुशी नामक दलके सरदार सामाजिक एक वर्णवृत जिसके प्रत्येक चरणमें एक सगण और लड़ाई झगड़े का फैसला करते हैं। एक जगण होता है । ७ एक प्रकारका तान्त्रिक | । झावरश्रेणोके धीवर कुम्भीर और शिशुक खाते है। प्रयोग जिससे किसोको चेहोश या मूच्छित करते हैं। ये लोग समाजमें नोच समझे जाते हैं। ८ प्राचीनकालका एक प्रकारका अस्त्र जिससे शत्रु मूच्छित किया जाता था। कोल्हको कोठा अर्थात् | मोहन -१ अयोध्याप्रदेशके उनाव जिलेको एक तहसील । वह स्थान जहां दवनेके लिये ऊखके गाँड़े डाले जाते। भूपरिमाण ४३७ वगमील है। मोहन औरस, अशीवान, हैं। इसे कुडी और धगरा भी कहते हैं। १० वारह झालोतर-अजगांव और गौडिन्द्र-प्रसन्दन नामक चार परगना ले कर यह उपविभाग संगठित है। मात्राओं का एक ताल । इसमें सात आघात और पांच खाली रहते हैं। २ उक्त उपविभागका विचार-सदर और जिलेका मोहन ( हि० वि०) मोह उत्पन्न करनेवाला। . एक नगर । सई नदीके किनारे अक्षा० २६ ४६ ५५” उ० तथा देशा० ८० पू०के मध्य विस्तृत मोहन-मोहन-सप्तशतीप्रणेता एक कवि । मोहन-सिन्धुप्रदेशवासी मत्स्यजीवी जातिविशेष। ये है । मुसलमानी अमलमें यह स्थान वहुत समृद्धिशाली था । अभी वाणिज्य समृद्धिका बहुत कुछ हास हो लोग पहले हिन्दू थे, पोछे मुसलमान संसगमे आ कर गया है। इसका प्राचीन नाम मैना वा भावापुर है। मुसलमान हो गये। आरलिता नगरके रहनेवाले अरवों- | नगरके दक्षिण सई नदीके ऊपर एक पुल है। इसे को ये लोग अपनो पूर्वपुरुप मानते हैं। मछलीको अयोध्यापति नवाव सफदरजङ्ग के मन्त्री महाराज नवल- पकड़ कर बाजार में वेचना इनको जातीय व्यवसाय है। रायने वनवाया था। पुलको वगल में एक ऊंचा टूटा फूटा इन लोगोंके मध्य बुन्दरी, कराचा, लाना, झावर स्तूप देखमेसे वह एक प्राचीन दुर्गका भग्नावशेष समझा और वुङ्गारा नामक पांव खतन्त्र दल हैं। मोहनोंकी जाता है। अभी प्राचीन मुसलमान फकीरोंका समाधि- आकृति प्रकृति उतनी खराब नहीं है। वचपनमें इनका मन्दिर इसके ऊपर शोभा दे रहा है। गालवर्ण और मुखाकृति सुन्दर रहती है। हमेशा धूप यहांके अधिवासिगण सम्भ्रान्तवंशीय मुसलमान और घृष्टिमें रहनेसे रंग खराब हो जाता है। मानयर,