पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४

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हिन्दौ वि!वकोष अष्टादश भाग मुण्डा-छोटानागपुर अञ्चलमें रहनेवाली द्राविड़, जातिकी उत्पत्ति हुई। दूसरे दम्पतीने उद्भिज खाद्य असभ्य जातिविशेष । इनके आचार-व्यवहार सन्थालोंकी पसन्द किया-उस वंशसे उत्पन्न सन्तान ब्राह्मण और हो वा कोलजातिसे मिलते जुलते है। मुण्डा शब्दका क्षत्रिय कहलाये। पोछे जिसने मछली और.वकरा लिया अर्थ ग्रामका मण्डल है। सन्थाल लोग इसके अनुरूप उसके लड़के शूद्र जिसने सीप और घोंघेका मांस लिया मांझी शब्दका व्यवहार करते हैं। उसके वंशधर भुइया और जिसने सूअर लिया वे संथाल मानवजातिके उत्पत्ति सम्बन्ध में मुण्डा लोगोंमें एक | हुए । जो थोड़े दम्पती वच रहे उन्हें कुछ भी नहीं मिला। प्रवाद इस प्रकार है-ओटवोरम और शिवोगा नामक इस पर प्रथम और द्वितीय दम्पतीने अपने अपने हिस्सेसे स्वयम्भू तथा जगतके आदिपुरुषन पहले एक वालक और उन्हें थोड़ा थोड़ा दिया। वे लोग घासिया कहलाये। वालिकाकी सृष्टि की। पीछे सन्तानवृद्धिके लिये उन्हें घासिया लोग परिश्रम नहीं करते केवल शिकार करके एक निर्जनगिरि गुहामें भेज दिया। किन्तु यौवनसीमामे अपना गुजारा चलाते हैं। पदार्पण कर वे दोनों भाई वहनके जैसे प्रेममें दिन विताने | मुण्डागण प्रधानतः १४ श्रेणियों में विभक्त हैं। इनमें लगे। सृष्टिका विस्तार न हुआ देख खयम्भूने धानकी खरियामुण्डा, महिलोमुण्डा, ओरांवमुण्डा, भूमिहारमुण्डा शराव प्रस्तुत की। उस शराबको पी कर वे दोनों और मानकीमुण्डा ही प्रधान हैं। महिलीमुण्डा मतवाले हो गये। पीछे उन्हींसे १२ पुत्रकन्या उत्पन्न | सूअरको पवित्र समझ कर उसकी पूजा करते हैं, इसीसे हुई। भाई वहनसे एक एक दम्पतीकी सृष्टि हुई। तव सूअरका मांस वे लोग नहीं खाते । किन्तु ये लोग सृष्टिकर्ता शिवोङ्गाने उन लोगोंके खानेके लिये तरह इतने मांस-लोलुप हैं, कि सूअरका सिर बाद देकर वाको तरहके खाद्यपदार्थ सामने रख दिये और जो जिसकी | अंगका मांस खानेसे वाज नहीं आते। रुचि हो वह लेनेको कहा। तदनुसार प्रथम । मुण्डा लोग केवल पितृकुलमे विवाह नहीं करते. और द्वितीय दम्पतीने गाय और भैंसका मांस मातृकुलमें कोई छान वीन नहीं है । निम्न श्रेणीके लोगों पसन्द किया। पीछे उसीसे हो, कोल और भूमिज- ' में यौवन-विवाह प्रचलित है। सिन्दूरदान हो विवाहका