पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४०३

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४०० मौकूफो–पोखरी रोका गया, नौकरीसे अलग किया गया। ४ अधिष्ठित | मौखर (सं० त्रि०) मुखर-अण। मुखरका भाव, बहुत मुनहसर। अधिक या बढ़ चढ़ कर बातें करना। मौकूफो (फा० स्त्री०) १ मौकूफ होनेकी क्रिया या भाव । मौखरी-उत्तर भारतका एक प्राचीन राजवंश। किस २ कामसे अलग किया जाना, वरखास्तगी। ३ प्रतिबंध, | समय इस राजवंशका प्रथम आधिपत्य विस्तृत हुआ, रुकावट। यह मालूम नहीं। अशोकलिपिकी तरह प्राचीन अक्षर मौक्तिक (सं० क्लो०) मुक्तेव मुक्ता-( विनयादिभ्यष्ठक । पा| पालिभाषामें 'मोखलिनम्' शब्दाडित मोहर (Seal) आवि- ५।४।३४ ) इति ठक् । १ मुक्ता । विशेष विवरण मुक्ता शब्द-| कृत होनेसे मालूम होता, कि मौर्यवंशके प्रभावकालमें में देखो। २ अन्न। इस वंशका अभ्युदय हुआ था, किन्तु उस समय इस मौक्तिकतण्डुल (सं० पु०) मौक्तिकमिव शुक्लः तण्डुलोऽस्य । वंशके कौन कौन राजा किस किस देशमें राज्य करते धवलषावनाल । सफेद मक्का, बड़ो ज्वार। थे, वह आज तक भी स्थिर नहीं हुआ है। गुप्तवंशके मौक्तिकदाम (सं० पु०) धारह अक्षरोंका एक वर्णिकछंद । | साथ मौखरीराजका एक समय सम्वन्ध था, यह शर्व- इसके प्रत्येक चरणमें दूसरा, पांचवां, आठवां और ग्यार- वर्माकी उत्कीर्ण लिपिसे जाना जाता है। गुप्तवंशके हवां वर्ण गुरु और शेष लधु होते हैं अर्थात् इसके प्रत्येक | साथ मौखरियोंकी लड़ाई भी छिड़ी थी। आदित्यसेनकी चरणमें चार जगण होते हैं। अप्सड़-लिपिमें लिखा है, कि मौखरीवंशने हूणोंको मौक्तिकप्रसवा (सं० स्त्री० ) मौक्तिकस्य प्रसवा। शुक्ति, परास्त करके अच्छी ख्याति पाई थी। दामोदरगुप्तने उस सीप। मौसरोवंशको परास्त किया था। मौक्तिकमाला ( सं० स्त्री०) १ ग्यारह अक्षरोंको एक ___ नाना स्थानोंसे आविष्कृत उत्कीर्ण लिपिकी सहा- वर्णिक वृत्तिका नाम । इसके प्रत्येक चरणका पहला यतासे हम १० मौणारी राजोंके नाम पाते हैं। जैसे-- चौथा, पाँचवां, दसवां और ग्यारहवां अक्षर गुरु और १म हरिवर्मा-महिषी जयस्वामिनी । शेष लघु होते हैं तथा पांचवें और छठे वर्ण पर यति श्य आदित्यवर्मा-(१मके पुत्र ) महिषी हगुप्ता । होती है। इसे अनुकूला भी कहते हैं। २ मुक्तामाला, ३य ईश्वरवर्मा-(श्यके पुत्र । मुक्ताका हार। महिषी उपगुप्ता। ईश्वरवर्माने धारा, अन्ध्र, सुराष्ट्र मौक्तिकरत्न (सं० क्लो० ) मौक्तिकमेव रत्नं । मुक्तारत्न। आदि राजाओंके साथ युद्ध किया था। मौक्तिकशुक्ति (सं० स्त्रो०) मौक्तिकानां शुक्तिः। शुक्ति, ४र्थ ईशानवर्म-(३यके पुत्र ) महिषी लक्ष्मीवती। सोप। ५म शवैवर्मा-(४थके पुत्र ) मगधराज दामोदर- मौक्तिकावलि (सं० पु०) मौक्तिकस्य आवलिः । मुक्तावली, | गुप्तके समसामयिक । मोतीकी माला। ६ष्ठ सुस्थितवर्मा-मगधाधिप महासेनगुप्तके सम- | सामयिक। मौश्य (सं० क्ली० ) मूकस्य भावः मूक-(वर्गादृढादिभ्यः | ७म अवन्तिवर्मा-स्थाण्वीश्वराधिप प्रभाकरवद्धन. ध्या च । पा ५२१२१२३ ) व्यञ् । मूकका भाव। के समसामयिक। मोक्ष (सं० क्लो०) सामभेद, एक प्रकारका साम गान। | म ग्रहवर्मा-(७मके पुत्र ) इन्होंने सम्राट हर्ष- मौक्षिक (सं० त्रि०) ग्रहणके अन्तमें प्रहमोक्षसम्वन्धीय। मौख ( सं० क्लो० ) मुखस्येदमिति मुख-अण्। १ मुख- | देवकी वहन राज्यश्रीको व्याहा था। श्रीहर्षचरितमें इनका परिनय आया है। ये मालवराजके हाथसे मारे गये थे। सम्बन्धाधीन पाप, मुखसे होनेवाला पाप। यह अभक्ष्य | हम भोगवर्मा-इनका मगधाधिप आदित्यसेनकी भक्षणरूप है। अभक्ष्य भोजन करनेसे जो पाप होता है | कन्यासे विवाह हुआ था। नेपालके लिच्छविराज श्य उसे मौख कहते हैं। (प्रायश्चित्तवि०) २ एक प्रकारका | शिवदेव इनके जमाई थे। मसाला। (त्रि०) ३ मुखसम्बन्धी।