पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४०५

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४०२ मौण्ड्य-ौषा ___२ मूढ़ता। (पु.) मूढस्योपत्यं ( कुर्वादिभ्यो गयः। "मुद्गलस्य तु दायादो मौद्गल्यः सुमहायशाः ।" पा ४११५१) इति पय। २ मूढपुत्र । मौण्ड्य (सं० क्ली० ) मुण्ड-व्यञ्। केशवपन, मुण्डन । . (हरिवंश ३२७०) २ मुद्गल ऋषिके गोत्रमें उत्पन्न पुरुष । "या तु कन्या प्रकुर्यातू स्त्री सा सद्यो मोण्ड्यमर्हति । मौद्गल्यायन (सं० पु. ) गौतमबुद्धके एक प्रधान शिष्यका अंगुल्योरेव च छेदं खरेनोद्वहनं तथा ॥"(मनु० ८७०) नाम । मौत (म० स्त्री०) १ मरनेका भाव, मरण । २ वह मौद्गल्यीय (सं० वि० ) मुद्गल (कुशाभ्वादिभ्यश्छन् । पा देवता जो मनुष्यों वा प्राणियोंके प्राण निकालता है, ४॥२८०) इति छन् । १ मुद्गल ऋषि जिस देशमें रहते मृत्यु । ३ मरनेका समय, काल । ४ अत्यन्त कष्ट थे उस देशमैं । २ मुद्गलसे निवृत्त । ३ मुद्गलनिवास। आपत्ति। ४ मुद्गलके आस पासका देश । मौताद (अ० स्त्री०) मात्रा। मौद्रिक (सं० त्रि०) मुद्गैः क्रोतं ( तेन क्रीतं । पा ।।३७) मौन (सं० क्ली० ) मूत्र-अण् । मूत्र सम्बन्धीय। मौद (सं० पु० ) मोदेन प्रोतमधीयते विदुवा । (छन्दो। मुद्ग-ठञ् । मुद्ग द्वारा क्रीत, मूंगसे खरीदा हुआ। ब्राह्मणानि च तद्विषयाणि च । पा ४१२६६) इति मोद-अण् । मौद्रीन (सं० त्रि०) मुद्गेन जीवति खम् । १ मुद्ग द्वारा मोद नामक छन्दोवक्ता, अध्येता वा ज्ञाता अर्थात् यह जीविका निर्वाहकारी, जो मूगका व्यवसाय कर अपनी छन्द जो बोलते हैं या अध्ययन करते हैं अथवा जिन्हें गुजर करता हो । (क्लो०) मुदानां भवनं क्षेत्र- मालूम है। मिति मुद्ग ( धान्यानां भवने क्षेत्र खञ् । पा ५।२।१ ) इति मौदक (सं० क्ली०) १ मोददृष्ट । (नि.) २ मोदकसम्ब- खा । २ मुद्गभवोचित क्षेत्र, वह खेत जिसमें मूग न्थीय। उत्पन्न होती हो। मौदकिक (स० वि०) प्रकृता मोदकाः ( समूहवञ्च बहुषु । पा | मौधा-युक्तप्रदेशके हमीरपुर जिलान्तग त एक तहसील । ५।४२ ) इति मोदक-ठक । प्रकृत मोदक, प्रस्तुत मोदक। यह अक्षा० २५ ३० से २५५२ उ० तथा० देशा० मौदनेयक (सं० त्रि.) मोदेन ( कत्यादिभ्यो ढकन । पा} ७६°४३ से ८० २७ पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरि- २६४ ) इति ढकञ्। मोदनकर्तृक अनुष्ठेय। | माण ४५२ वर्ग मील और जनसंख्या ६० हजारके करीब मौदयानिक (सं० त्रि०) मोचमान ( काश्यादिम्यष्ठञ् भिठौ।। है। इसमें मौधा नामक १ शहर और १३० ग्राम लगते पा ४।२।११६ ) इति जि । मोदमानसम्बन्धी। | हैं। इसके पूर्व में केन और पश्चिममें विरमा है। तह- मौदहायन (सं० पु०) मोदहायनका गोलापत्य । सोलको अधिकांश भूमि उर्वरा है। मौद् (सं०० त्रि.) मुद्गन संसृष्टः (मुद्रादण् । पा ४।४ २५)। २उक्त तहसीलका एक नगर । यह अक्षा० २५४० इति मुद्-अण। मुद्गसंसृष्ट, मुद्गयुक्त। मुद्ग या मूगके | उ० तथा० देशा० ८० पू०के मध्य विस्तृत है। जन- संयोगसे जो कुछ रांधा जाता है उसे मुद्ग कहते हैं। । संख्या ६ हजारसे ऊपर है । ७१३ ई०में मदनपाई नामक मौद्गल (सं० पु०) मुद्गलस्य ऋषेोत्रापत्यं ( करावादिभ्यो एक परिहार राजपूतने इस नगरको वसाया । इलाहाबाद- (गोत्रः। पा ४।२।१११) इति अण् । मौद्गल्य, मुद्गलऋषिके के मुगल-शासनकर्त्ताके लड़के दलीर खांके मारे जाने गोत्रमें उत्पन्न पुरुष ।. पर यहां उसका मकबरा तैयार किया गया था। यहां मौद्गलि (सं० पु० ).काक, कौमा। ... चौखारीके राजा खुमानसिंह और गुमानसिंह द्वारा प्रति- मौद्गल्य (सं० पु०) मुद्गलस्थापत्यमिति मुद्गल-व्यञ् । १ ष्ठित एक भग्न दुर्ग देखने में आता है। वांदाके मुसल- मुद्गल ऋषिके पुत्रका नाम। ये एक गोत्रकार ऋषि थे। मान राजा अली बहादुरने उस दुर्गके अपर पत्थरका इस गोत्रके पांच प्रवर थे, यथा:-और्च, च्यवन, भार्गव, एक मजबूत किला वनवाया था। सिपाही-युद्धके समय महाराष्ट्र-सेनापति भास्कररावने इस दुर्ग पर कचीढ़ाई जामदग्न्य और आप्नुवत्।