पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४०८

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मौनय-मौग्य ४०५ पक धनीने उनके लिये एक गुफा वनवा दी थी। इस । सरदार । ३ छोटे छोटे फूलों वा कलियोंसे गुथो हुई गुफामें जा कर प्यारीलाल पहलेकी अपेक्षा और अधिक / लम्बी लम्बो लटोंवाला घौद, मंजरी! ४ गरदनका दृढ़तासे योगसाधन करने लगे। इसी समय उन्होंने ! पिछला भाग जो सिरके नीचे पड़ता है, गरदन । मौनव्रतका अवलम्वन किया था। वे किसीसे बातचीत मौरजिक (स० वि०) मुरजस्तद्वादनं शिल्पमस्य मुरज- नहीं करते थे। इसी प्रकार छः महीने के बाद मौनीवावा- (पा ४१४१५५) इति ढक् । मुरजबादक, मृदंग वजाने- वाला। के नामसे उनकी प्रसिद्धि हुई। मौनीवावाके दशनके लिये समय समय उनकी गुहाके | मौरना ( हिं० कि० ) वृक्षों पर मंजरी लगना, आम आदि. के पेड़ों पर वोर लगना। वाहर बड़ी भीड़ लग जाया करती थी। सभी अपने अपने मौरव ( त्रि०) दैत्यराज मुरुका वंशोद्भव । दुःखके निवारणके लिये मौनीवावाके समीप जाया करते | मौरसिरी (हिं. स्त्री० ) मौलसिरी देखो। धे। पूर्वोक धनीने एक बार कहा था "पहले मैं बड़ा दरिद्र था जिस दिनसे मौनीवावाकी कृपा हुई है उसो मौरी (हिं० स्त्रो०) छोटा मौर जो विवाहमें वधूके सिर दिनसे हमारे धनकी वृद्धि होने लगी है।' मौनीवावा पर वांधा जाता है। मौरूसी (म०वि०) वाप दादाके समयसे चला भाया अपने शरीरको रक्षाका कुछ भी प्रयत्न नहीं करते थे। वे | में | हुआ, पैतृक। पाव भर दूध और एक छटाक विल्वपत्रका रस पीते थे। ७१ वर्षको अवस्थामें सन् १८६६ ई० में उनको मृत्यु हुई । मौर्य (सं० क्लो०) मूर्खस्य भावः व्यञ् (वर्णदृढ़ादिभ्यः मानेय (सं० पु०) मुनेरपत्यं पुमान् मुनि (इतश्चानिन् । ध्यञ्च । पा ५१४१२३ ) मूर्खका भाव यां धर्म, बेवकूफी। मौर्य (सं० पु०) मुराया अपत्य मुरा-ण्य | मुराका पा ४।१।१२२ ) इति ढक् । गन्धचंगणविशेष, गन्धों अपत्य, चन्द्रगुप्त। और अप्सराओं आदिका एकम्गतृक गोत्र । इन जातियों मौर्य-भारतका एक पराक्रान्त प्राचीन राजवंश । वहुत- में माताका गोत्र प्रधान होता है। क्योंकि इनके पिता से पुराणोंका मत है, कि चन्द्रगुप्तमे ही मौर्यवंशका अभ्यु. अनिश्चित होते हैं। दय हुआ है। विष्णुपुराणके टीकाकारने लिखा है- मौन्दा--नागपुर जिलान्तर्गत एक बड़ा गांव । यह अक्षा० "चन्द्रगुप्त नन्दस्यैव ल्यरस्य मुरासशकस्य पुत्र मौर्याणां २१.८ उ० तथा देशा० ७६ २२° पू०के मध्य कानाटो प्रथमम् ।" अर्थात् नन्दके मुरा नामक एक स्त्रो थी, उसी नदीके किनारे अवस्थित है। यह स्थान यशोवन्तराय स्त्रीके गर्भ से चन्द्रगुप्तका जन्म हुआ था। ये ही मौर्य गुजरके अधिकारमें है। यहां उनका बनाया हुआ एक राजाओंमें प्रथम थे । मुद्राराक्षसके ४थ अङ्कमे "मौयोऽसौ किला है। स्थानीय कपड़े के. कारवार के कारण यह ) स्वामिपुत्रः परिचरणपरो मित्रपुत्रस्रवाह" इत्यादि मलयकेतु- स्थान प्रसिद्ध है। की उक्ति द्वारा चन्द्रगुप्तको नन्दका पुत्र कहा जा मौर ( हि० पु०) १ एक प्रकारका शिरोभूषण। यह ताड़: सकता है। पत्र या खुखड़ी आदिको बनाया जाता है । २ शिरोमणि, दक्षिणा पथसे जो एक संस्कृत ग्रन्थ आविष्कृत हुआ है, उसमें भी लिखा है, कि नन्द राजाओंके मध्य सर्वार्थ-

  • "गन्धर्वाप्सरसः पुपया मौनेयास्तु निवोधत ।

सिद्धि एक थे। उनके दो स्त्री थी, मुरा और सुनन्दा । चित्रसेनोग्रसेनौ तु ऊर्णायुवनिधस्तथा ॥ मुराके गम से मौर्य और सुनन्दाके गर्भ से नवनन्द धृतराष्ट्रस्तथोमांश्च सूर्यवर्चास्तथैव च । उत्पन्न हुए। सर्वार्थसिद्धिने आगे चल कर नवनन्दको युगवत् तृणापत कार्यों निदिश्चित्ररथस्तथा ॥ राजा और मौर्यको सेनापति बनाया था। यथासमय त्रयोदशः शालिशिरः पर्यन्यश्च चतुर्दशः। इत्येते देवगन्धर्वाश्चतुस्त्रिंशन्छुभान्सरा ॥" मौर्यके १०० पुत हुए जिनमेसे एकमात्र चन्द्रगुप्तने ही नवनन्दके कराल कवलसे रक्षा पाई थी। चन्द्रगुप्त शब्दमें (अग्निपुराण) विस्तृत विवरण देखो। . Val, XVIII, 102