पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४०९

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मौर्य दक्षिण-देशीब वौद्धग्रन्थों में मौयवशको उत्पत्ति और प्रत्नतत्त्वविद् राजा राजेन्द्रलाल मित्रका कहना है, प्रकारसे दिखलाई गई है। 'बुद्धघोषरचित विनयपिटककी | कि नेपाली बौद्ध ग्रन्थ पढ़नेसे विन्दुसारको चन्द्रगुप्त स्यान्तसपादिकर नामक टोका और महानाम स्थविर का पुत्र वा मौयवंशीय नही कह सकते । चन्द्रगुप्त मौर्य- कृत महावंशटीकामें लिखा है,- वंशके प्रथम और शेष राजा थे। किन्तु यह वात ठीक चन्द्रगुप्तकी माता मोरिय-नगराधिपकी पटरानी थो। नहीं जंचती। एक दुर्दान्त राजाने मोरिय-नगरको जीत कर राजाको नेपालो बौद्धग्रन्थ दिव्यावदानमें विन्दुसार और मार डाला। उस समय उनको पटरानी गर्भवती थी। उनके पुत्र अशोकको मौय ही बतलाया गया है। सभी वे अपने बड़े भाईकी सहायतासे पुष्षपुरमें भाग आई | पुराण, पालि महावंश और दोपवंशके मतसे चन्द्रगुप्तके और वहां रहने लगीं। यथासमय उनके एक पुत्र उत्पन्न बाद उनके लड़के विन्दुसार राजा हुए थे। विन्दुसार- हुआ। वही पुत्र पीछे चन्द्रगुप्त मौर्यवंशीय राजकुमार | के बाद अशोकने राजसिंहासन को सुशोभित किया। कहलाया। किन्तु नेपाली बौद्ध प्रथमें चन्द्रगुप्तका नाम नहीं आया जैनाचार्योका मत कुछ और है। उत्तराध्ययनटीका है तथा मौर्यराज अशोकका ऐसा परिचय है, और हेमचन्द्र के स्थविरावलि-चरितमें इस प्रकार लिखा राजगृहके राजा विम्बिसार थे। चिम्बिसारके पुत्र अजातशत्रु, अजातके उदयो, उदयोभद्रके मुण्ड, मुण्डके "राजा नन्दके मयूरपोषकगण जहां रहते थे उस काकवी, काकवोंके सहली, सहलीके तुलकुची, मयूरपोषक ग्राममें चाणक्य परिवाजकके वेशमें भिक्षाके | तुलकुचोके महामण्डल, महामण्डलके प्रसेनजित्, प्रसेन- लिये वहां उपस्थित हुए। मथूरपोषकके दलपतिकी | जित्के नन्द, नन्दके विन्दुसार और विन्दुसारके बड़े कन्या उस समय भासन्न-प्रसवा थी। उसफी चन्द्रपान पुत्र सुसोम और छोटे पुत्र अशोक थे। करनेकी इच्छा हुई। किस प्रकार उसकी इच्छा पूरी हो, (दिव्यावदान-पाशुप्रदावदान) घरवालोंने चाणक्यसे यह बात कही। चाणक्यने कहा, पौराणिक लोग नन्दके साथ मौर्यवंशका सम्बन्ध 'यदि उत्पन्न होते ही वह पुत्र मुझे दिया जाय, तो मैं जानते थे, यह वात पहले ही लिखी जा चुकी है। अभी उपाय बता सकता है।' इच्छा पूरी नहीं होनेसे गर्भ | नेपाली वौद्ध प्रथमें उसीका समर्थन देखा जाता है। नाश होगा, इस प्रकार आशङ्का कर उसके माता पिता चाणक्यकी बात पर राजी हो गये। अनन्तर चाणक्यने गुषिणीं तत्र संक्रान्त पूर्णेन्दु तमदर्शयत् । उपरमें एक वस्त्रसे ढका हुआ गुप्त छेददार तृण-मण्डप पिवेत्युक्त्वा च सा पातुमारेभे विकसन्मुखी॥ और नीचे जल-पूर्ण पात्र प्रस्तुत किया। पूर्णिमाकी सापायथा यथा गुप्तपुरुषेण तथा तथा। रातको गर्भिणीने उस जलके भीतर प्रतिविम्वित पूर्ण- प्यधीयत पिधानेन तच्छिद्र तार्णमयडपम् ॥ चन्द्रको देखा और चन्द्रसुधा पान कर परितृप्त हुई । गुप्त- पूरित दोहदे चैव समयेऽसूत सा सुतम् । छेददार तृणमण्डपके मध्य चन्द्रसुधा पान करके पुत्र चन्द्रगुप्ताभिधानेन पितृभ्यां सोऽम्यधीयत ॥ • उत्पन्न हुमा था। इस कारण उसका नाम चन्द्रगुप्त चन्दवच्चन्द्रगुप्तोऽपि व्यवईत दिने दिने। पड़ा। ये मयूरपोषक-कुलसे उत्पन्न हुए हैं। मयूरपोषककुलोत्पलिनीवनमासकः ॥" (परिशिष्टपर्व ८२३५ २४६ )

  • "चाणक्योऽकारयच्चाथ सच्छिद्र' तयामण्डपम् ।
  • Dr. R. Mitra's Indo Aryans, Vol, 11

'. पिधानधारिण गुस' तदूद्ध चामुचन्नरम् ॥ . "त्यागशूरो नरेन्द्रोऽसौ अशोको मौर्यकुखरः । .. तस्याधो ऽकारयामास स्थातच पयसाभृतम् । जम्बूद्वीपेश्वरो भूत्वा जोतोऽर्द्धामलकेश्वरः॥" उर्जरोकोनिशीथे च तन्दुः प्रत्यविम्बत ॥ .. (दिव्यावदान-अशोकावदान २६) ।