पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मौय्य ४०७ किन्तु उक्त वंशपरिचयके मध्य चन्द्रगुप्तका कम क्यों। किन्तु विभिन्न पुराणमें मौर्यराजाओंका नाम और शासन नहीं आया, कह नहीं सकते। काल कुछ और प्रकारसे लिखा है। जैसे- पौराणिक मतसे महानन्दिसे हो क्षत्रिय राजवंशका ब्रह्माण्डपु० विष्णुपु०. मत्स्यपु० भागवतपु० ध्वस हुआ। मालूम होता है, कि इसी मतका समर्थन ११ चन्द्रगुप्त २४ चन्द्रगुप्त चन्द्रगुप्त करते हुए मुद्राराक्षस नाटककारने चन्द्रगुप्तको 'वृषल' २। विन्दुसार वा विन्दुसार वारिसार कहा है। किन्तु उत्तरापथके संस्कृत नेपाली वौद्ध-ग्रन्थ भद्रसार २५ में तथा दक्षिणापथके पाली बौद्ध-प्रन्धमें मौर्यवशको ३। अशोक ३६ अशोक अशोक अशोक विशुद्ध क्षत्रिय बतलाया है। यहां तक कि सन्नाट अशोक ४ । कुणाल ८ सुयशा सुयशा जब रोगसे मरणापन्न थे, उस समय तिष्यरक्षिताने ५। वन्धुपालित ८ दशरथ दशरथ सगल उन्हें प्याज खानेकी व्यवस्था दी थी। इस पर उन्होंने ६। हर्ष ८ कहो था, 'देवि! अह क्षतियः कथं पलाण्डु परिभक्ष- । सम्मति सङ्गत यामि।" (दिव्यावदान ) अर्थात् मैं क्षत्रिय हूं, किस शालिशूक १३ शालिशूक शालिशूक प्रकार प्याज खाऊंगा। प्रियदर्शी देखो। । देवशर्मा ७ सोमशर्मा सोमशर्मा अशोककी ऐसी उक्तिसे स्पष्ट मालूम होता है, कि वे/१० । शतधन्वा शतधन्वा शतधन्वा केवल नामके क्षत्रिय नहीं थे, परन् आहार व्यवहारमें ११। वृहद्रथ वृहद्रथ क्षत्रियोचित नियमका पालन कर चलते थे। चन्द्रगुप्तके पुराणके मतसे वृहद्रथ मौर्यवंशीय अन्तिम राजा थे, समय मौर्याधिकार समस्त उत्तर-भारतमें फैला हुआ | किन्तु वौद्ध लोग इसे खोकार नहीं करते। चीनपरि- था। पीछे उनके पोते अशोक प्रियदशीने हिमाचलसे ले | ब्राजक यूपनचुवंगने दावेके साथ कहा है, कि मगधा- कर कुमारिका तक अपना अधिकार फैलाया, किन्तु धिप पूर्णवर्मा ही अशोक वशके अन्तिम राजाथे। कर्ण- उनके वंशधरोंकी वैसी ख्याति, प्रतिपत्ति और आधिपत्य सुवर्णराज शशाङ्कने जव वोधिवृक्ष नष्ट करनेको चेधा को, था वा नहों, सदेह है। प्रियदर्शीने अन्तमें वौद्धधर्म ग्रहण तव इन पूर्ण चर्म राजाने हो (प्रायः ५६० ई में ) बोधि- किया था, किन्तु उनके उत्तराधिकारियोंने ठीक उसो | वृक्षको पुनः सञ्जीवित किया था। प्रकार बुद्ध, धर्म और सड़को सेवा की थी, ऐसा मालूम । इधर नेपाली वौद्धग्रन्थ दिव्यावदानमें लिखा है, कि नहीं होता। उनके पोते दशरथके अनुशासनसे जाना पुष्यमित्र हो मौर्यवंशके अन्तिम राजा थे। दिव्यावदान- जाता है, कि उन्होंने जैन आजीवकोंकी सेवामें प्रचुर दान में अशाकस पुष्यमित्र की पुरुषपरम्परा इस प्रकार लिखी किया था। है-अशोक, उनके लड़के वृहस्पति, गृहस्पतिके लड़के विष्णु, वायु, ब्रह्माण्ड, मत्स्य और भागवतपुराणके | वृषसेन, वृषसेनके लड़के पुष्यधर्मा और पुष्यधर्माके लड़के मतसे मौर्यवंशीय १०१११ राजाओंने १३७ वर्ष राज्य | पुष्पमित वा पुष्यमित्र थे। इस पुष्पमित्रसे ही मायवश किया था। महावंशके मतसे चन्द्रगुप्त ३ वर्ष, विन्दु- समुच्छिन्न हुआ। सार २८ वर्ष और अशोक ३७ वर्ष राज्य कर गये हैं। "यदा पुष्यमित्रो राजा प्रभाति तदा मौर्यव'शः समुच्छिनः।" __ पुष्पमित्र शब्द देखो। (दिब्यावदान)

  • "मोरियाने खत्तियानं वशे जात सिरिधरान् ।

सम्भवतः मौर्यवंशका राज्य खो जाने पर भी इसका चन्द्रगुचोति पुन्नत्तन चानको ब्राह्मणो ततो ॥" प्रभाव हठात् विलुप्त नहीं हुआ। यहां तक, कि ५०० (महावंश ५॥१३ ) | शकमें उत्कीर्ण वदामीकी गुहालिपिसे जाना जाता है, + दिव्यावदान (Edited by E. B. Cowel, p. 409.) कि चालुक्पराज कीर्तिवर्माने दक्षिणापथकी नल, मौर्य