पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४१४

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४११ म्लानि-म्लेच्छ ग्लानि (स० स्त्री० ) ग्लै-नि, स च नित्। १ कान्तिक्षय, | अतएव यही सव जातियां स्वधर्म और आचारका परि- मलिनता। २ ग्लानि, शोक। | त्याग कर म्लेच्छ कहलाने लगी हैं। म्लायिन् ( स० वि०) म्लै-णिनि, युकागमः। १ ग्लानि "गोमांसखादको यश्च विरुद्ध बहु भाषते । । युक्त, ग्लान । २ दुःखी। सर्वाचारविहीनश्च म्लेच्छ हत्पभिधीयते ॥" ग्लास्नु (सं० लि.) क्षीण, शीणताप्राप्त । (प्रायश्चित्ततत्व ) म्लिष्ट (स० त्रि०) म्लेच्छ क्त (क्षुब्धत्वान्तध्वान्तलग्न- महाभारतमें लिखा है, कि जब विश्वामित्र वशिष्ठ- मिष्टविरिब्धेत्यादि । पा ७२।१८) इति सूत्रण निपातितः। देवकी पयखिनो गायको चुरा लाये, तव पयस्विनी १ अस्पष्ट, जो साफ न हो। २ अध्यक्तवाणो बोलने- नन्दिनीने विश्वामित्रको परास्त करनेके लिये अपनी वाला, जो स्पष्ट न बोलता हो । ३ म्लान। पूछसे पहवोंकी, पलानसे द्राविड़ और शकोंकी, योनिसे म्लेच्छ ( स० क्लो० ) म्लेच्छस्तहेशः उत्पत्तिस्थानत्वेना- यवनकी, गोबर, मूत और पावदेशसे शवरकी तथा स्त्यस्य अर्श आदित्वादन् । १ हिङ्गल, हींग। फेनसे पौण्ड, किरात, यवन, सिंहल, वर, खस, चिवुक, "हिङ्गु लन्दरद' म्लेच्छमिङ्गु लञ्चूर्णपारदम् ॥" पुलिन्द, चीन, हूण, केरल आदि अनेक प्रकारके म्लेच्छों- (भावप्रकाश) की सृष्टि की थी। (त्रि०) २ पामर, नीच। ३जो सदा पाप कर्म । "असृजत् पहवान पुन्छान प्रस्रवादाविड़ाञ्छकान् । करता हो, पाप-रत । (पु०) ४ अपभावण, 'कटु वचन । योनिदेशाच्च यवनान शकृतः शवरान् बहून् ॥३६ ५ मनुष्योंकी वे जातियां जिनमें वर्णाश्रम धर्म न हो, मूत्रतश्जासृजत्कांश्चिच्छवरांश्चैव पार्श्वतः । किरात शवर पुलिन्दादि जातियां । हरिवंशमैं लिखा । पौगड़ान किरातान् यवनान सिंहलान् वर्वरान खसान् ॥३७ है इन्होंने आर्यजनोचित सभी धर्मोको छोड़ दिया था।' चिबुकांश्च पुलिन्दोश्च चीनान हूणान सकेरलान् । राजा सगरने अपनी प्रतिज्ञा पूरी तथा गुरुकी आज्ञा- . ससन्ज फेनतः सा गौम्लेच छान बहुविधानपि ॥३८ का पालन करनेके लिये इन लोगोंका धम तथा वेषभूषा- ते विसृष्टै महासन्यैर्नानाम्लेच छगौस्तदा। को हरण कर लिया था। शकोंको आधा शिर मुड़ाने, नानावरणसंछन्नै नायुधधरैस्तथा ॥३६ यवन और काम्बोजोंको समूचा शिर मुंडाने, पारदोंको। अवाकीर्यत संरब्ध विश्वामित्रस्य पश्यतः॥" खुले केश रहने और पह्नवोंको दाढ़ी मूछ रखनेकी आज्ञा । देकर उन्हें वेदाध्ययन और वेदविहित कर्मानुष्ठान करने (महाभारत २१७५ म०) से मना कर दिया था। शब्दकल्पद्रुमकारने भागवतकी .दुहाई दे कर लिखा "सगरः स्वां प्रतिशाञ्च गुरोर्वाक्य निशम्य च । धर्म.जघान वेषां वै वेशान्यत्वं चकार ह ॥ "देवयान्यां ययाते यौ पुत्रौ यदुः तुर्वसुश्च । शर्मि- अर्द्ध शकानां शिरसो मुण्डयित्वा ब्यसनयत् । ष्ठायां त्रयः पुत्राः द्रुह्यु : अनुः पुरुश्च ) तत यदुप्रभृत. जवनानां शिरः सर्व काम्बोजानान्तथैव च ॥ यश्चत्वारः पितुराज्ञाहेलनं कृतवन्तः पिता शप्ताः । पारदा मुक्तकेशाश्च पहलवाः श्मश्रु धारिणः । ज्येष्ठपुत्रं यद् शशाप तव वंशे राजचक्रवत्ती माभूदिति। निःस्वाध्यायवषट्काराः कृतास्तेन महात्मना ।" तुर्चसुद्ानून् शशाप युष्माकं वंश्या वेदवाह्या म्लेच्छा (हरिवंश १५ १०) | भविष्यन्ति। इति श्री भागवतम् ॥" ये लोग अपने अपने धर्मका परित्याग करनेके कारण अर्थात् राजा ययातिके दो स्त्री थी, देवयानी और म्लेच्छ हो गये हैं। क्योंकि बौधायनस्मृतिमें लिखा है । शर्मिष्ठा । देवयानीके गभसे यदु और तुवसु तथा कि, जो गोमांस-खादक, विरुद्ध और बहुभाषी तथा सभी शर्मिष्ठाके गर्भसे द्रुह्य, अनु और पुरु नामक तीन पुत्र प्रकारके आचारविहीन हैं वे ही म्लेच्छ कहलाते हैं। ] उत्पन्न हुए। इन सब पुत्रों मेंसे यदु आदि ४ पुोंने ज