पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४२०

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४१७ मिल जाता है जिससे आँखका योजक, स्वक, चर्म और . आक्रमण करता है। बच्चेके जन्म लेनेके बाद कुछ दिन मूत्र पीला दिखाई देता है। तक पित्त अधिक परिमाणमें निकलता है। यदि वह ___ किसी किसी चिकित्सकके मससे पित्तका वर्णज आंतके रास्तेसे न निकले, तो जण्डिस होनेकी सम्भावना पदार्थ और पित्ताम्म यकृतमें उत्पन्न होता है। स्रावके है। किसी कारणवश लोहितवर्णकी रक्त-कणके नष्ट रुक जानेके कारण यदि पित्तकोप और पित्तनादियां हो जानेसे चमड़ा पीला हो जाता है। प्रधान पित्तनाली- पित्तसे भर जाय, तो शिरा और लसीका नाड़ी द्वारा के अभाव या सम्पूर्ण अवरुद्धता रहनेसे सांघातिक पित्तका रंग सुख जाता और चमड़े तथा निस्राव आदि जण्डिस होते देखा जाता है। का रंग पीला हो जाता है। दूसरे दूसरे चिकित्सकोंके ____ आम्बिलिकल भेन वा नाभिरज्जुसंश्लिष्ट शिरा मतसे पित्तका वर्णज पदार्थ स्वभावतः ही शोणितमें रहता ( Inibilical reins ) में जव प्रदाह होता अथवा यकत् है तथा वह यकृत द्वारा वाहर निकल जाता है। यदि धमनीके मध्य प्रवाहित सामान्य रक्तपित्तमें मिल कर किसी कारणवशतः यकृतकी क्रिया खराब हो जाय तो वह : यकृत्प्रणालीसे भिनोससके मध्य होता हुआ. रक्तस्रोत क्रमशः रक्तके भीतर सश्चित हो जाता है तथा उसके' जाता है, तव भी यह रोग आक्रमण कर सकता है। त्वक आदि शारीरिक विधान और निस्राव पीले पड़' चर्म, सिरस, कौपिकविधान, मस्तिष्क, स्नायुसमूह जाते हैं। उपरोक्त दोनों मत एक ही कारणसे प्रतिष्ठित और यन्त्रादिमें पीतवर्णतारूप शारीरिक परिवर्तन देखा हुए हैं । पर हां, मत पृथक्ताके अनुसार यह अवरुद्धता- जाता है। अवरुद्धताके कारण पोड़ा उपस्थित होनेसे व्यापार यथाक्रम Obstructire और Suppressireके यकृत् और पित्तका आधार बढ़ जाता है। प्रथमावस्थामें भेदसे दो प्रकारका है। यकृत् आरक्तिम, वृहत् और पीतवर्ण, पीछे रोग पुराना ____यात् प्रणाली ( हेपैटिक एक्ट ) के मध्य पित्तपथरी, होनेसे वह पाटल, सज्ज या काला हो जाता है। गर्भ- गाढ़े पित्त अथवा परागपुर कीट (Round worm, Hy- वती स्त्रो यदि इस रोगसे अधिक दिन आक्रान्त रहे dateds आदिका) के रहने, आँतमें जलन होने के कारण' तो गर्भजात शिशु भी आगे चल कर वह रोग भुगता है। हेपैटिक डक्तके रन्ध्रके सिकुड़ने अथवा अर्वदादि द्वाग यकृत् विशेष लक्षणके मध्य पोड़ाके आरम्भमें मूत्र पीताभ प्रणालीक ऊपर दवाव पड़ने के कारण अवरुद्धता, उसकी। और पोछे योजकत्वक (Conjunctira) तथा चर्म पीत पेशीके आक्षेप और अवशता आदि कारणोंसे हो कामला वर्णका हो जाता है। धीरे धीरे वह पीतवर्णसे पाटलाभ रोग उत्पन्न होता है। कभी कभी पीतज्वर ( Yellow ' कृष्णाम और सन्ज तथा उम्र, वर्ण और चरवीके न्यूना- tever ) चा पौनपुनिक ज्वर ( Relapsing fever ); धिक्यके अनुसार नाना प्रकारका भी हो जाता है। ओठ स्वल्पविराम ज्वर और सविराम वर; सर्पाघात अथवा और मसूड़े का रंग पतले चर्मविशिष्टकी तरह गाढ़ा होता फस्फोरस, पारे, तांबे, पण्टिमणि आदि धातुविषमे है । मूलका. वर्ण कमी जाफरानकी तरह पीला, कभी विपाकता, यकृतको सर्वता, यात्में रककी अधिकता, मेहागिनो काठ वा पोटसुराके रंगका अथवा कुछ सज्ज हो मनस्ताप द्वारा यकृक्रियाका व्यतिक्रम, दूपित वायु जाता है । उसका परिमाण स्वाभाविकसे न्यून होता है। द्वारा रक्तको अपरिष्कृति ; सद्योजात शिशुके न्युमोनिया; यदि उसमें सफेद कपड़ा डुवा दिया जाय, तो वह पीला रोगके कारण रक्तकी अपरिष्कृति ; पाकक्रियाके लिये हो जाता है। रासायनिक परीक्षा द्वारा मूत्रमें पित्त और नियमातिरिक्त पित्तनिस्राव, बहुत दिन तक कोष्ठबद्धता; पित्ताम्ल पाया जाता है। कहीं कहीं अणुवीक्षण द्वारा भातसे रकसाव होनेके बाद यकृत्-शिरा ( Portali मूत्रमें ल्युसिन (Letteinc) तथा टाइरोसिन (Tyrosine) reins) के मध्य स्वल्पशोणितसञ्चालन , इनफ्लुएनजा: नामक दो पदार्थ देखे जाते हैं। आंतमें पित्तके नहीं और पैत्तिक रोगमें पित्तनालो अवरुद्धताके कारण , घुसनेसे मल कड़ा, दुर्गन्धयुक्त और सफेद कीचड़के और कभी कभी जण्डिस एपिडेमिक (बहुव्यापी ) रूपमे । समान हो जाता है तथा उससे उत्तराध्मान, उदरामय व Vol X l, 105