पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४२३

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४२०. यकत मरहम आदिका उस जखमको भरनेके लिये व्यवहार। उसका आवरक विधान फैल जाता है। काटनेसे रक्त करे। रोगीके लिये कुनाइन, रिप्टिल, पार्थिवाम्ल तथा नहीं निकलता तथा वह सफेद और पांशुवर्णका दिखाई दुर्बल होनेसे वलकर औषधका सेवन लाभजनक है। देता है। कटा हुआ अंश चिकना होता है। आइयोलिन दर्द दूर करनेके लिये अफीमका प्रयोग करे । दूध, दालका | मिलानेसे उसका रंग पलट जाता है। जूस पथ्य देना आवश्यक है। ____ इस समय रोगी यकृत्स्थानमें भारी, आकृष्टता और - यकृत्को पीतवणे खर्वता (Acute yellow atro- | अस्वच्छन्दता मालूम करता है। उसके साथ साथ phy of the liver )-बहुतेरे इसे यकृत्विधानका | यकृत् धमनीमें रक्तस्रोतको अवरुद्धता और न्यावाके विस्तृत प्रदाह कहते हैं। फोस्फोरस द्वारा शरीर विषाक्त, लक्षण दिखाई देते है। उसके बाद पुराना मन्त्रावरण- दारुण मनस्ताप, मलेरिया स्थानमें वास, अन्तिाचार, प्रदाह और उदरी रोग उपस्थित होता है। अन्यान्य सुरापान और उपदंशादि रोगोंसे यह रोग सहजमें आक्र. लक्षणों के मध्य दुर्बलता, रक्ताल्पता और रक्तकी तरलता मण कर सकता है। देखी जाती है। छूनेसे यकृत् कड़ी मालूम होती है। रोगके आक्रमण करनेसे यकृत् खव हो जाती है। घ्यायाम, बलकारक औषध, सुपथ्य और प्रस्रवणादिका वह देखने में कोमल, पीलाएन लिये हुए लाल धातव जलपोन इस रोगका महौषथ है। स्वास्थ्यरक्षाकं और उसका कैपल्युल सिकुड़ा हुआ मालूम होता है। लिये वायुपरिवर्तन विशेष हितकर है। पीडाकी प्रथमावस्थामें उसका विधान आरक्तिम दिखाई यकृत्का हाइडे रिड अर्बुद-(HI datid tumour) देता है। अणुवीक्षण द्वारा सभी कोप ध्वंसप्राय तथा । कुत्ते और चीता वाधको मातमें एक प्रकारका कीड़ा उनके बदले में नैलविन्दु और वर्णजपदाथ दृष्टिगोचर | ( Tape-vorn ) रहता है । जमीन पर आनेसे उसका होते हैं। अन्नमें तो और भी दूसरे दूसरे स्थानोंमें | अडा नाना स्थानोंमें फैल जाता है। जब वह खाद्यके रक्तस्त्रावका चिह्न मौजूद रहता है। साथ मनुष्यके शरीरमें प्रवेश करता है, तब पित्तनालीके ___ यकृत्में जो कभी कभी विभिन्न प्रकारकी अपकृष्टता | मध्य हो कर अथवा पाकाशयके प्राचीरको भेद कर ( Degeneration ) देखी जाती है उनमें चरवी और यकृत्के भीतर चला जाता है। यकृत्के मध्य अडोंके मोमयुक्त यकृत्की होनता उल्लेखनीय है। अधिक फूटनेसे पचिनोकोकस, होमिनिस नामक स्कोलेक्स भोजन, सुरापान, यक्ष्मा, कर्कट और पुराने आमाशय (Scolex) वा नया कोड़ा उत्पन्न होता हैं। उनकी आदि दीघकालस्थायी रोग तथा शिथिल स्वभावसे हो उत्तेजनाके कारण एक आधारकी जैसी मिल्ली (Ger. प्रधानतः यकृत्का वसाजन्य रोग ( Fatty lirer वा | minal membrance ) पैदा होती है। उस झिलीकी Irepar Adiposum ) आक्रमण करता है। उस समय प्रत्येक तहमें गोल कोष वा सिष्ट (Cyst) उत्पन्न हुमा यकृत् विलकुल गोल और चिकनी, पीली, छूनेमें मुला- करता है तथा प्रत्येक सिष्टके भीतर बहुसंख्यक छोटे यम और स्थितिन्थापकताहीन होती तथा सहजमें छिन्न | छोटे डिम्वाकार कीट दिखाई देते हैं। आइसलैण्ड और हो जाती है। काटनेसे तेल निकलता है। कटे हुए | औष्ट्रेलिया द्वीपमें यह रोग मध्यवयस्क तथा दरिद खएडके ऊपर कागज रखनेसे वह तैलाक्त हो जाता है | व्यक्तियोंके मध्य सदा देखा जाता है। तथा वह इथरसे गलता है। प्रायः सैकड़े पीछे ४० से हाइडेरिड अर्बुदके चारों ओर कठिन सफेद वा पोली ४५ भाग तैलाक्त पदार्थ तथा ओलिन, मारिन और झिल्ली रहती है। उनके मध्य कुछ सफेद, मुलायम और कोलेष्ट्रिन रहता है। पांशुवर्णके कोष देखे जाते हैं जिन्हें मातृकोष कहते हैं। स्कुफ्युला वा केरिज आदि प्राचीन रोग मलेरिया | उसके भीतर वर्णहीन स्वच्छ जलवत् पदार्थ रहता है। ज्वरसे ..myloitl of waxy liver रोगकी उत्पत्ति होती| उसका आपेक्षिक गुरुत्व १०७ से ११५ है, प्रतिक्रिया है। रोगके आक्रमण करनेसे यकृत् वड़ी होती और क्षारधर्माकान्त है। रासायनिक परीक्षासे उसमें क्लोरा-