पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४२४

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यकृत इड और सिसिनेटे आव सोडियम पाया जाता है। उक्त , उदरके छिन्न स्थानमें दवाव दे। ऐसा करनेसे वह मातृ-कोषके प्राचीरमें बहुतसे छोटे छोटे डिम्बाकार उप- जलवत् रस चारों ओर फैल नहीं सकता। कभी कभी कोप दृष्टिगोचर होते हैं। उन उपकोषोंमें एचिनोको सिष्टको नष्ट करनेके लिये गैलभेनो-पंचर वा इलेकद्रो कस कीट पाया जाता है। ट्युमर फट जानेसे मृतदेह लिलिसका व्यवहार करना होता है। सिष्टके फिरसे उसका चिह्न रहता है। उत्पन्न होनेसे उसमें टिंचर आइओहिन वा पित्तको इलेकृ - अर्बुद होनेसे यकृत् स्थानमें विशेषतः एपिगाष्ट्रीयममें | | करे। पीपका संचार होनेसे अच्छी तरह काटकर यकृत्की स्फोटककी तरह चिकित्सा करना उचित है। तथा दक्षिण हाइपोकण्डियेक रिजनमें स्फीतता, भार- यकृत्य कर्कटरोग (Cancer of the lirer) होनेसे वोध और आकृष्टता रहती है। उसमें पोप होनेसे शीत कम्पज्वर और अत्यन्त वेदना होती है। कभी कभी | यकृत्के स्थानमें लोलाकार अर्बुद देखा जाता है। कर्कट- प्लीहाकी वृद्धि और उदरी रोग होते देखा जाता है।। को विभिन्नताके अनुसार यकृत् कोमल वा कठिन हुआ अवुद बड़ा होनेसे मसृणता, स्थितिस्थापकता, शिक- करती है। कटा हुआ अश शुभ्र, पीताम, श्वेत और शन और हाइडेटिड फेमिटस मालूम होता है। अर्बुद वीच बीचमें लाल रेखा दिखाई देती है। यकृत् भारी यदि बहुतसे सिप्टोंके बने हों, तो वह लोट्राकार, दूढ़ और और असमान, विधान न्यूनाधिक परिमाणमें विनष्ट और वेदनायुक्त होता है। दक्षिण हाइयोकण्डियेक रिजनमें | चापप्राप्त तथा पोर्टल भेनमें थम्लसिस और पेरिटोनाइरिस अर्बुद होनेसे छातीके ऊपर तक जडता ( Dullnessyi विद्यमान रहना आदि शारीरिक परिवर्तन दिखाई देता फैल जातो तथा उसके भी ऊपर वक्ररेखासी दिखाई देती है। पित्तनालोके रुक जानेस तरह तरहका सिप्ट उत्पन्न है। सूक्ष्म द्रोकर द्वारा परीक्षा करनेसे जलवत् रस होता है। व्यापित प्रकारके कर्कोट रोगमें यकृत् छोटो हो जाती है। निकलता है। रासायनिक परीक्षा द्वारा लवण पाया | ___ यकृतके स्थानमें वेदना होती है, कभी कभी तो वह जाता है। प्लुरिटिक एफियोजन, यकृतका स्फोटक और वेदना असह्य हो जाती है। उदर, स्कन्ध और पीठमें किडनीका हाइडेरिड अर्बुदके जैसा दिखाई देता है, इस भी दर्द मालूम होता है, उदरको शिरापं परिपूर्ण और कारण रोगनिर्णयकालमें कभी कभी भ्रम हो जाया करता फैल जाती है। रोगो शीर्ण, दुर्गल और रक्तहीन हो है, किन्तु हाइडेटिड केमिउस और रोगके आनुपूर्विक जाता है, थोड़ा थोड़ा ज्वर आता, भोजन नहीं पचता विवरण द्वारा इसको अन्य रोगले पृथक किया जा और श्वासकृच्छ तथा सेलिना वर्तमान रहती है । मूत्रमें इण्डिकोनका परिमाण अधिक पाया जाता है। सकता है। यह रोग बहुकालव्यापी होने पर भी यदि उपयुक्त चेष्टा ___ यकृतका सिफिलिटिक गोमेटा, सिरोसिस और पमिलयेड अपकृष्टताके साथ भ्रम हो सकता है। अति की जाय, तो आरोग्य हो जाता है। यकृतके फट जानेसे यन्त्रणा ककेक्सिया द्वारा दूसरे रोगके साथ इसकी जव मन्त्रावरणमें जलन देती है, तब रोगीके जोनेको पृथक्ता जानी जाती है। यह रोग बहुत मुश्किलसे आशा नहीं रहती। चिकित्सा-अर्बुदके ऊपरी भागमें काष्टिक पटोश द्वारा भारोग्य होता है। सुविज्ञ चिकित्सक द्वारा चिकित्सा करानेसे बहुत उपकार हो सकता है। क्षत करके कोषस्थ जलको द्रोकर वा पम्पिरेटर द्वारा ____यकृतू संकोचन (Gindrinker's liver वा Cirrho. वाहर निकलता है। क्योंकि उससे अवुद और उदर | sis of the liver ) खाली पेटमें तीन मदिरा सेवन, प्राचीरके मध्य मिल जानेके कारण उसका रस अन्ना मैलेरिया स्थानमें वास वा दीर्घकाल ग्रीष्म भोग, अधिक वरक मिल्ली (पेरिटोनियम ) में प्रवेश नहीं कर सकता। परिमाणमें गुरुपाक द्रव्यभोजन, पाकक्रियाका व्यतिक्रम, उस रसके पेरिटोनियममें कुछ कुछ प्रवेश करनेसे अत्यंत | स्थानिक पेरिटोनाइटिससे प्रदाहको विस्तृति भादि . प्रदाह उपस्थित होता है। द्रोकरको बाहर करनेसे समय । कारणों से यकृत् संकोचन उपस्थित होता है। Vol. XVIII, 106 .