पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४२८

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यकृत • यदि नासायन्त्र हो कर रक्त निकलता हो, तो एको। भूगर्भस्थ कूपका धातवजलका एकल सेवन करनेसे नाइट, वेलेडोना, अर्णिका, वागलिक एसिडका प्रयोग करे लाभ पहुंचता है। और पेट. पर वरफकी थैलो रखे और शीतल जल पीने- सामान्य विवृद्धो (Simple Hypertrophy of the को दे। उदरान्त्रसे नाव मिकलने पर हममेलिस, गलिक liver) पोडोफिलम और नक्स विशेष उपकारी है। यकृत्- वा टानिक एसिड और सलफरको काममें लावे | cirrh- का हाइडेटिभ अवुद होनेसे अम्बा-प्रिसिया, फल्क-कार्य, hosis रोगको शेषावस्थामें Ascites और anasarca आर्स, मार्क, पालसाटिला, सावाडिल्ला, ग्राफाइटिस, उदरी होनेसे आर्स, चायना, कोपेवा, डिजिटालिस और धानम और सलफरका व्यवहार किया जा सकता है। इलेटोरेयमका प्रयोग करना चाहिये। आवश्यकतानुसार सुईसे विद्ध कर, छुरोसे काट कर और यकृत् में पीप वा स्फोटक होनेसे रोगकी अवस्था इलेक्ट्रिसिटीसे उसे फाड़ कर औषधादिका निषेक करना देख कर चिकित्सा करनी चाहिये। यह रोग औषध | चाहिये । जल, आइयोडिन सोल्युसन, पोर्टसुरा और द्वारा आरोग्य होने की सम्भावना नहीं। लीभर एवसेस । पित्तका प्रधानतः इअक्सन करते देखा जाता है। .. पक जानेसे कंपनी के साथ साथ ज्वर आता है जिससे नाड़ी धीरे धीरे क्षीण हो जाती है। मष्टार्ड लिष्टर वा __यकत्में कर्कट रोग ( cancer of the liver) नाना वेलेडोना-प्लिष्टर द्वारा वह बहुत कुछ हास हो जाता है। प्रकारले हुआ करता है। क्षतकी आकृति वा स्थानानुसार उस स्फोटकको चीर फाड करा कर वहतसे रोगी अब वह विभिन्न नामसे परिचित है; १कोमल कंकररोग हो गये हैं। ( medulary cancer ), २ मस्तिष्काकृति ( Encepha- . मार्कसल उपदंशजमित होसे मार्क टो आइयो loid cancer ), ३ कर्कटवत् (Carcinoma);-४ कोड़क- डाइड, हेपर सलफर, एसिडम नाइट्रिकम् , लाको सिस, मदृश मांसपिण्डमय और ५ कृष्णकर्कटरोग ( Melano- लाइकोपोडियम आदिका अवस्थानुसार प्रयोग किया tic cancer ) आदि विभिन्न प्रकारके सरल 'और जा सकता है। Taxy, Lardaceous और Amyloid सुसाध्य यकृत क्षतमें कोनियम, बेल, म्युरेट आव वैरा- liver रोगमें मार्कप्रटो आइओडाइड, आर्सेनिक, आसा- इटा, एकोनाइट डिजिटेलिस, मेजरिउन, सोलेनम नाइ- फोरिडा, फस, साइलिसिया, हेपर साल और सलफर ग्राम, व्राइभोनिया, आस, फोस्फरस, मार्क आवडी, देवे । यदि गरमीका घाव (Syphilis) हुआ हो, तो आज नाइद्रस, नक्स, चायना, कोपेवा, लाइकोपोडियम् । पोटाशि आइओडाइड, आइडिन, माटो सिरप फेरी, पोडोफिलम्, भेरेट-आलव, पालसाटिला आदि औषधों- आइयोडाइड और आइलासापेल उडहल आदि निर्भरका का लक्षणानुसार व्यवहार करनेसे विशेष फल पाया जल बहुत लाभजनक है। वैक्सि लीभरके साथ यदि जाता है। यदि उदरकी क्रिया में कोई गड़बड़ी हो, तो फुसफुसमें फोड़ा हो जाय, तो कैल्क-क, चायना, पाटाश, नक्सममिकाके साथ इपिकक वा क्रियोसोट (Creasot) आइयोडाइड, लाइकोप, फस्फरस, शानम तथा अन्यान्य का सामान्य मात्रामें सेवन कराना फलप्रद है। . .. . रोग संयुक होनेसे घायमा, कुटना, आर्सेनिक, कार्वोभे रक्तहीनता ( Anaemia) के लक्षण दिखाई देनेसे जिटेब्लिस और सलफरका प्रयोग किया जा लौहघटित औषधादिका प्रयोग करना उचित है । भाइयों- डाइड, लाकटंट एमनिया-साइड्रेट, फास्फेट तथा डा० ___चरवीसे युक्त बढ़ी हुई यकृत्को द्वितीयावस्था | मर्गान-कृत मिश्र औषध Ferr, Ammocitrate cum नक्स, पालस; पोडाफ और सलफरका सेवन तथा | strych, 0. Quinae, C, Dig ; काडलिभर आयल आदि स्वभावके ऊपर निर्भर करना हो उचित है। डा० विलि- खानेको देवे । यदि वमनके लक्षण दिखाई दे, तो उक यम-मर्गान-उद्भावित फेरि पमन् साइट्रास, कमष्ट्रिकनि, मिश्र औषध ( compound )-का परिष्कृत नारियलके कम जिजिटालिक और टानविग, मोफट आदि स्थानों में | तेल, पेपसिन अथवा पानक्रियेटिन अथवा डाक्टर Vol. IVILL 107 सकता है