पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४३

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' मुद्रातत्त्व (माच्य) पराक्रमसे राज्य किया था। उनको मुखाङ्कित मुद्रा गोमेधयक्षके समाप्तिकालमें गोवध कर पूर्णाहुति देने पर अभी भी पाई जाती है। उनके मुखमण्डलमें अवला- थे, इसी समय इन्द्र वा जियसवाहन ईगल निहत वृषका 'जनसुलभ लालित्यका अभाव देखा जाता है। इतिहास- एक पांच ले कर उड़ गया। जो यज्ञाधिपति थे तथा उनके चरित्र पर दोपारोपण करता है । शिल्पीके शारीर- मख अंशमोजिमों में अग्रणी थे उन्हींका वाहन गोमांस विज्ञानके साथ मानसचित्रका सामञ्जस्य देखनेसे शत- ले गया, इसे यज्ञका शुभ लक्षण समझ कर राजाने मुद्रा- 'कण्ठसे उन्हें धन्यवाद देना होगा। इनके ८म पुत्र । तलमें इस स्मृतिको संरक्षित किया था। जियसकेसि- अन्तियोफसने अच्छी मुद्रा प्रचलित की थी। परवत्तों यसके मन्दिरमें का एक प्रस्तरमय लिङ्गदेवता मुद्रातल. मुद्रामें आर्मेनीय सम्राट् टाइनेनिमका होरासे जड़ा। में अङ्कित है। वह यज्ञक्षेत्र और लिङ्गमन्दिर उस समय हुआ मुकुट शिल्पसौन्दर्यका परिचायक है। मुद्राके दूसरे तीर्थ समझा जाता था, उसका प्रमाण मिलता है । राजकीय भागमें अरनि ( Oratne ) अन्तियोकके चरणों में लेट मुद्रामें सिरियाके वहुतसे राजाओंके नाम पाये जाते हैं। 'रहा है । इससे इतिहासके अनेक तत्व मालूम साल पिसियस, उरेनियस और आण्टोनाइस आदि हुए हैं। । रोमक सम्राटोंके भी चिह्न मुद्रातलमें अडित हैं। सिरियादेशके अन्यान्य नगरोके मध्य सिरहम और भेलेरिया तथा दी ओक्लिसियोनके नाम भी मुद्रामें हिरापोलिस नगरकी मुद्रा ही उत्कृष्ट है। इन सन । खोदित हैं। मुद्राओं के तलमें अनेक प्रकारको उत्कीर्ण लिपि देखने में अपामिया नगरमें सलेकीय राजाओंकी नामाडिन्त याती है। वे सब ग्रीकशिल्पके आदर्शसे बिलकुल । मुद्रामें हाथोकी प्रतिमूर्ति देखनेमें आती है। एमेसा 'विभिन है। सिरियाको प्राचीन मुद्रामें प्राच्यशिल्पका' नगरकी मुद्राके एक अंशमें मन्दिर मध्यवर्ती प्रस्तरमयो सम्पूर्ण विकाश दिखाई देता है। किसीमें दिव्यलावण्य ! (शिव ) लिङ्गमूर्ति है। अलावा इसके नाना गूढार्थक परिशोभिता किरातवेशा भवानीको एक अनुपम सौन्दर्य- । आध्यात्मिक चिह्नका परिचय पाया जाता है । कुछ शालिनी सिंहवाहिनो शूलधारिणी रमणो मूर्ति है। तान्त्रिक यन्त और वीजांकुरादिके अनुरूप हैं। यह एशिया किसीमें दो सिंहों के रथ पर देवीमूर्ति बैठी हुई हैं। यह माइनरको प्राचीन लिपिसे शोभित है, इसमें प्रोक-सादृश्य मूर्ति सम्पूर्ण रूपसे शैवलोदेवीकी तरह है। का लेशमात्र नहीं। सिविया और फिनिकिया आदर्श ____ अन्तियोक और अरन्तिस नगरको मुद्रा भी प्राच्य पर निर्मित हीरा-खचित मुकुटभूपिन एक अवगुण्ठन- शिल्पके आदर्श पर बनी है। इससे अनेक ऐतिहासिक / वती लावण्यमयो ललनामूर्ति अङ्कित है। इस स्थान- तस्य जाने जा सकते हैं। परवत्तोंकालकी मुद्रा में प्रोक को अधिकांश मुहरों में मन्दिर मध्यस्थ प्रस्तरमय लिङ्गकी और लाटिन लिपि देखनेमें आती है तथा मुद्रोत्कीर्ण प्रतिकृति तथा एक प्रकारका त्रिपन लिङ्गके समीप देखो ..लिपि द्वारा ४ सदीका परिचय मिलता है। इनमेंसे | जाता है। हेलियोपोलिस नगरको मुहरोंके दोनों पाय फर्सेलियन, सिजारियस और माक्रियम असई विशेष- में दो प्रकाण्ड मन्दिर हैं। एक मन्दिरमें शस्यशीर्षालं-

रूपसे उल्लेखयोग्य है। किसी मुद्रामें काराकेल्लाका कृत एक देवीमूर्ति तथा दूसरे मन्दिरमें नाना प्रकारके

मुखमण्डल, किसी अन्तियोक बैठे हुए है और उनके 'पूजोपकरण देखे जाते हैं। .पदतलसे अरन्तिस नदी वह रही है। सुप्रसिद्ध प्राच्य- . एशियाके मध्य फिनिकियाकी मुद्रा हो सर्वापेक्षा वहु- - शिल्पी युटिडाइडस इस शिल्पकीर्तिके निर्माता हैं। संख्यक तथा विविध वैचित्रविशिष्ट है । फिनिक वणिकों- किसी मुद्रामें दीर्घ जटाशीप तालवृक्ष जटाजूटधारी ने जलधि-नन्दिनी लक्ष्मीको प्रसन्न करनेके लिये सागर . संन्यासीकी तरह दण्डायमान है । हाडियनकी समकालीन सागरमें वाणिज्य जहाज भेजा था। कमलाने चञ्चलताका त्याग कर उन सवोंकी वहुत दिनों तक आराधना की थो- ..मुद्रामें ईगलपक्षी यैलका एक पांच ले कर भाग रहा है। इसके सम्बन्धमें ऐसा कहा जाता है, कि कोई राजा | . अन्तमें अपनी चञ्चला नामकी सार्थकता दिखलाई थी।