पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४३०

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४२७ यक्ष-यक्षकृत्य हैं तथा हाथ पैर धोर काले रंगके होते हैं। ये लोग / माननेमें कुछ भी सङ्कोच नहीं होता, कि यक्षगण अलौ- प्रचेताकी संतान हैं। किक थे। यक्षोंके सम्बन्धमै आज कल के विद्वानोंमें दो "प्रचेतसः मता यक्षास्तेषां नामानि मे शृणु। प्रकारके मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वानोंका अनुमान है, केवलो हरिकेशश्च कपिलः काञ्चनस्तथा। कि यू अथवा यहूदियोंको मिस्रवासी हिक्सो ( usks ) मेघमाली च यक्षाणां गण एष उदाहृतः ॥" कहा करते थे। उसीके अपभ्रंशसे यक्ष शब्द हुआ है। (अग्निपुराणा) यक्षगण कुवेरके धनरक्षक थे। आज भी हम लोगोंमें इनकी नामनिरुक्ति- 'यक्षका धन' यह प्रवाद प्रचलित है। इस प्रवादका "मैव भोः रक्ष्यतामेष यरुक्त राक्षसास्तु ते । यर्थ समझा जाता है, 'महापणका धन' । इस प्रवादके ऊचुः खादामइत्यन्ये ये ते यज्ञास्तु वक्षयात् ॥" द्वारा भी यक्षोंका महाकृपण होना सावित होता है । उस (विष्णुपु० ११५॥४१) समयके यू या यहूदी भी सूद जाते और महाकृपण हुआ ब्रह्माने जव इस जगतकी सृष्टि की, तब उनके रजोः । करते थे। मरचेंट आव वेनिस नामक नाटकमें महाकवि मातात्मिका दूसरा शरीर धारण करनेसे उन्हें क्षुधा और पीयाने शाईलाक नामक जिस यहदीका चित्र न हुआ। क्षधातुर हो उन्होंने क्षुत्क्षामाको अङ्कित किया है उससे पूर्वोक्त वात प्रमाणित होती है । रचना की। वे सबके सव कुरूप और दाढ़ी मूछवाले | मालूम पड़ता है इसी कारण यक्ष और यू अथवा यहूदियों थे। जब वे अपने मालिकको खाने दौड़े, तब उनमेंसे । को एक पायम लोग मानते हैं। जिसने कहा, 'ऐसा मत करो, इनकी रक्षा करों' वे राक्षस ___ दूसरे पक्षका कहना है, कि हिक्स (ह्यक्ष ) यक्ष, ये और जिसने 'इन्हें पकड़ो नामओ' कहा, वे यक्ष कहलाये। शब्द सादृश्यवाचक अवश्य है, परन्तु हिक्स शब्द यहूं- फिर भी लिखा है,- दियाँका वाचक नहीं है। मिस्रदेशका एक राजवंश हिक्स "धातुर्यतत्यथोक्तस्त्वददने क्षयणे च सः। नामसे मशहूर है। हिक्स जिस देश पर चढ़ाई करते, ययक्षतयुक्तवानेष तस्माट्यतो भवत्ययम् ॥" उसे छार वार करके छोड़ देते थे। दुर्घषता और (अग्निपुराण) अत्याचारपरायणतांके कारण ही भारतीय उनको यक्ष यक्ष धातुका अर्थ अदन तथा क्षपण है। जिन्होंने | कहने लगे होंगे। हिक्स अथवा वक्ष एक समय मिस्रके 'खायेंगे' ऐसा कहा था उनका नाम यक्ष हुआ। राजा थे यह वात इतिहाससे प्रसिद्ध है। मिस्रदेशके यक्षगणका उल्लेख पुराण आदि शास्त्र प्रन्थों में रहने शिलालेखों तथा स्तम्भोंसे यह वात प्रमाणित है। पर भी इस समय इस बातका पता लगाना बडा कठिन (भारतवर्षीय इतिहास) है, कि उनका स्थान कहां था. इस समय वे किसी रूप में यक्षकई म (सं० पु०) यक्षप्रियः कई मः। एक प्रकारका वर्तमान हैं वा नहीं। मनुसंहितामें लिखा है, कि वहिषद | अंग-लेप । यह कपूर, अगुरु, कस्तूरी और ककोल मिला नामक अलिपुतसे यक्षगण उत्पन्न हुए। कर बनाया जाता है। कहते हैं, कि यक्षोंको यह अंग- ____बहुतोंकी धारणा है, कि यक्षगण एक अलौकिक प्राणी| लेप बहुत प्रिय है। है। इस धारणाका मूल क्या है, इसका पता लगाना यक्षकन्याकासाधन (सं० क्लो०) तन्त्रोक्त कुमारीसाधन प्रकार कठिन ही नहीं, किन्तु नितान्त असम्भव भी है। पुराणों भेद । तथा कथासरित्सागर आदि प्रन्थोंमें ऐसी अनेक कथाएं | यक्षकूप (सं० पु०) पुराणानुसार पुण्यतोया पुष्करिणी- लिखी हैं जिनमें मनुष्योंके साथ यक्षोंके वैवाहिक भेद । सम्बन्धका वर्णन है। शास्त्र ग्रन्थों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, | यक्षल्य-काश्मीरमें रहनेवाली एक जाति । इस जातिके वैश्ष आदि वर्गों के वंश वर्णनके साथ ही यक्षवंशका भी लोग कबसे लाशको निकालते थे । यक्षको तरह पहनावा वणन पाया जाता है। इन सब बातोंको देखते इस वातको पहननेवालेको यक्षकृत्य और मनुष्यरूपधारीको मनुष्य-