पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४३९

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४३६ यच्या मोहक ज्वर (Typhus fiver), आन्त्रिक ज्वर (Typly., लोहेके मोरचेके समान श्लेमा निकलती है। कैटेल oid liver ), बहुमूत्र, कण्ठनलोप ( Laryngitis), न्युमोनियाजनित रोगमें छातीमें वेदना, अत्यन्त श्वास- फुस्फुसप्रदाह ( Pneumonia ) आदि घोड़ाके वाद, कृच्छ, अधिक श्लेष्मानिर्गम और धर्म आदि लक्षण गर्भजात वा प्रसपके वाद, विशेषतः अधिक रक्तसावके विद्यमान रहते हैं। युवाल वा गुटिकाजनित व्याधि वाद यह रोग हो सकता है। कोई कोई कहते हैं, कि और अत्यन्त ज्वर, शोर्णता, दुर्वलता, रात्रिकालमे अति- जिस पशुके यक्षमारोग हुआ है, उसका मांस खाने वा शय धर्मनिर्गम, कभी कभी कम्प उपस्थित और कभी दूध पीनेसे अथवा उस रोगसे आक्रान्त व्यक्तिको प्रश्वास- कभी विकारके लक्षण दिखाई देते हैं। वायुका जो आघाण करता उसे भी यह रोग हो सकता पीड़ाके प्रारम्भमें पहले ब्रढाइटिसका लक्षण दीख है। Dr, Koch का मत है, कि यक्षमश्लेष्मा स्थित पड़ता है। फुसफुसके नोचे वा ऊपरका भाग कभी Tubercle Bacillus के शरीरमें प्रवेश करनेसे यक्ष्मरोग कठिन कभी कोमल और अन्तमें छिद्र लक्षणयुक्त हो होता है। जाता है। वाह्यदृश्यमें किसी प्रकारका परिवर्तन नहीं __ ठंढ लगने, फेफड़े में उत्तेजक और दुर्गन्धयुक्त वायु- होता और न क्षतस्थानमें कोई कमी वेशी ही देखी जाती के धुसने, बहुत शोक या चिन्ता करनेसे यह रोग उत्पन्न है। चोट करनेसे पीड़ित अंशमे अड़ पदार्थकी तरह हो सकता है। घनगर्भ ( Dull ) अथवा ढक ढक शब्द निकलता है। प्रतल यक्षमा ( Acute वा Galloping ththisis ) | कान लगा कर सुननेसे श्वासप्रश्वासमें खांसी-सा शब्द धीरे धीरे बढ़ती है। इस कारण रोगको द्रुतगामी मालूम होता है। अखाभाविक शब्दके मध्य पहले अवस्था देख सुन कर चिकित्सकोंने 'इसका गेलोपिष्टेज' मायेष्ट क्राक्लि ( moist crankling ) और पोछे वृहत्, नाम रखा है। सरस और रियिं रालस : Rales) तथा अन्तमे कैम- रोगाकान्त होने के बाद शरीर दिनों दिन दुबला पतला नस रडूस सुना जाता है। स्वर खन खन करता है। होता जाता है। अन्तमै केवल अस्थिपंजर रह जाता| यह रोग अत्यन्त कठिन है। न्युमोनिया-संक्रान्त है। विशेष परिवर्शन एकमात्र शरीरकं अभ्यन्तर भागमें यक्ष्मा होनेसे वह कभी कभी आरोग्य हो जाती है। किंतु हुआ करता है। मृत्युके बाद शरीर-व्यवच्छेद करनेसे | गुटिकायुक्त होनेसे जीवनरक्षाका उपाय नहीं। मृतदेहमें कभी कभी फेफड़े के ऊपर यक्षमकाप्टर और वलकारक पध्य और औषध व्यवस्थेय है। ज्वर कुजित काशक साथ फुसफुस-प्रदाहका चिह विद्यमान दूर करनेके लिये कुनाइन तथा खांसी, दमा और पसाना रहता है, ब्रङ्काइटिस, ब्रोन्युमोनिया और फुसफुसके। रोकने के लिये डाक्टर एण्डरसन पट्टोपिया इलेक्टको नीचे कोटर देखने में आता है । ट्यु वाकल-जनित सलाह देत हैं। उनके मतसे वरफके जलमे भिगाया रोगमे फुसफुसके ऊपर ही फोटर हुआ करता है । डा० हुआ प्लानेल दिनमे ३ या ४ वार (प्रत्येक वार आध चाटने अणुवीक्षण द्वारा परीक्षा करके देखा है, कि घंटा तक ) ऊपर लगोनेसे बहुत लाभ पहुंचता है। बाडा गुटिका वा दृढ़ अशोका मध्य स्थान कोमल है, उसके पोना और मांसका जूस भो विशेष उपकारक है। छातो | पर पुलटिस, टार्पेण्टाइन छुप और उत्तेजक लिनिमेण्टकी चारों ओर एक बड़ी झिल्लो और बड़ा पड़ा कोप (Giant | cells ) रहता है। मालिशा करे। कुनाइन २ प्रेन, पलभडिजिटेलिस आध नेन और अफोम १ लेनको गोलो बना कर दिनमै तीन ___ इस पीड़ामें चर हमेशा आया करता है। वमन. वार सेवन कराया जा सकता है। इससे बहुत फायदा विवमिपा, क्षु धामान्य, उदरामय, वक्षमे वेदना, खांसी, श्लेष्मद्गम और रक्तोत्काश आदि देखे जाते हैं। कभो पुरानी यमामे (Chronic pthisis )--फुस्फुसके कभी पाडा आरम्भमें हो हिमपोटिसिस् उपस्थित होता एपेक्स ( Apex ) और ऊपरका लोव ( Upper lobe ) है। वझुत ज्वर माता, शरीर शीर्ण हो जाता और होता है।