पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४४१

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यक्षमा १२०, दुल और तेज होतो है । शरीरको चरबो क्षयको । शब्द सुना जाता है जिसे कोन्ड ह्योल रेस्पिरेशन प्राप्त होती है, इस कारण रोगी देखनेमे शोर्ण वलहोन (Cogged wheel respiration ) कहते है। कभो और मलिन मालूम होता है। अङ्ग, प्रत्यङ्ग, वक्ष, उदर | कमो श्वास-प्रश्वास शब्द ब्लोयि तथा वडियेल हुआ आदि क्रमशः शीर्ण होता जाता है, किन्तु मुखमण्डल करता है। प्रश्वास शब्द दीर्घ और कर्कश ; सुरुध वैसा शीर्ण नहीं होता। पेशियां शिथिल, केश पतले फुस्फुसका श्वास-प्रश्वास शब्द प्युराइल वा ऊंचा होता और कहीं कहीं बिलकुल सफेद हो जाते हैं, चपड़ा सूख | है । अस्वाभाविक शब्दके मध्य ड्राय काक्लि पाया जाता जाता और शल्कवत् एपिडामिस द्वारा ढक जाता है। | है। जहां ढक ढक शब्द करता है वहां हृपिण्डका शब्द कभी कभी छातोके ऊपर कालोगमा अर्थात् काला दाग जोरसे सुनाई देता है। दक्षिण फुस्फुसके ऊपर वह शब्द दिखाई देता है। उंगलीका अगला भाग मोटा, नाखून | उच्च भावमें सुननेसे एक विशेष चिह्न कहलाता है। वहां- हथेलोकी ओर झुके हुए, दोनों पैर स्फोत, शरीर और का प्लुरा आक्रान्त होनेसे ग्रेजि वा क्रिकि शब्द सुना जा कलक्टाइभाका वर्ण फोका, क्षुधामान्य, तैलाक्त पदार्थमें | सकता है। हपिण्ड, पाकस्थलो, प्लाहा और यकृत् अरुचि, कोष्ठबद्ध, मसूड़े में एक लेोहित रेखा, जोभ फटो | सामान्य परिमाणमें ऊर्ध्वगामी होता है। प्लुराको और लाल, वमन, विवमिषा, अजीर्ण, अन्तमें उदरामय स्थूलताके चाप द्वारा वाई ओर सवक्लेभियन धमनीमें आदि लक्षण वर्तमान रहते हैं । मूत्र लाहिताभ, कभी | ममर शब्द सुनाई देता है। भौफैल रेजोनेन्स बहुत थोड़ा कभी उसमें एलवुमेन वा शर्करा पाई जाती है । पोड़ा | बढ़ता है। कठिन होनेसे भो रोगीके जीवनको आशा रहता है । द्वितीय वा गलनेको अवस्था (Sottening stage)- स्त्रियोंका ऋतु बंद हो जाता है । फुसफुसमें गर्त होनेसे | पोड़ित स्थान अधिक नत और वक्षसञ्चालन मृदु मालूम ज्वरका स्वभाव बदल जाता है। सबेरे ज्वरका सामान्य होता है। वाकविकम्पन प्रथमावस्थाके जैसा होता है। विराम रहता हैं; दो पहरको कुछ जाड़ा दे कर वह बढ़| परिमाण करनेसे खवंता विशेषरूपसे दिखाई देती है। जाता है। उस समय हाथ पैरमें बहुत जलन होती है | प्रतिघात करनेसे प्रायः कई जगह ढक ढक शब्द करता तथा गण्डदेशमै लाल वर्ण दिखाई देता है। दो पहर है। कान द्वारा ब्लोयि वा तियेम रेस्पिरेसन सुनाई रातके वाद पसीना निकलता और ज्वर घटता जाता देता हैं। अखाभाविक शब्दके मध्य मायेष्ट लि और है। इसको हकटिक फीवर कहते हैं। सूक्षम तथा वलि रस निश्वास और प्रश्वासमें सुनने में ___प्रथम वा स्थगित अवस्था (Consolidated stage)| आता है । वाक्प्रतिध्वनि बढ़ जाती है। पूर्वोक्त यन्त्रादि सुप्रा और इनफा क्ल भिक्युलर रिजन भुका हुआ दिखाई | कुछ अपने स्थानसे हट जाते हैं। देता है, किन्तु वह एम्पिसिमायुक्त रहनेसे कुछ उन्नत तृतीय वा गह्वरक अवस्था ( Stage of Excava- मालूम होता है। एपेक्स जब बहुत आकान्त होता, तब tion)-गहरका अग्र प्राचीर जव पतला होता, तव पीडित पार्शका स्कन्ध निम्नगामो दिखाई देता है। इनमाक्लाभिषयुलर रिजन कुछ उन्नत हो जाता है और श्वास-प्रश्वास कालमें पीड़ित स्थान अच्छी तरह सञ्चा। यदि पतला न हो, तो वह स्थान अधिक नत दिखाई देता लित नहीं होता और न वह उतना फैलता ही है। है। निश्वासकालमें पीड़ित स्थान फैल जाता है। छूनेसे गहरमें अधिक श्लेष्मा और पोप रहनेके कारण यकृतका छूनेसे वाकविकम्पन बढ़ता है, किन्तु कभी कभी स्वाभा- | विक अथवा उससे भी कम मालूम होता है । चोट करने- रङ्काल फेमिटस मालूम होता है। उस समय उसका आकार छोटा रहता है। चोट देनेसे गहरके ऊपर कठिन से ढक ढक शब्द होता है। कभी कभी पीड़ाके प्रारम्भ- झिल्ली रहनेके कारण सामान्य ढक ढक आवाज सुनी में प्रतिघातमें होनेसे रैजोनेट शब्द उत्पन होता है। कान लगानेसे श्वास प्रश्वासका शब्द मुडु, कर्कश वा जाती है। पीड़ित फुस्फुसके अन्यान्य अंशोंमें प्रतिघात करनेसे भी ढक ढक शब्द सुनाई देता है। कान लगा जाकि और कभी कभी सुप्रास्पाइजसरिजनमें एक विशेष