पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४४३

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यक्ष्मा-यक्षमान्तकलौह भ्रमण करना स्वास्थ्यप्रद है। यदि रोगी ऐसा न कर सूचना तथा आभ्यन्तरिक सोडि-सलफो-कालस, क्ष- सके, तो गाड़ीसे भी भ्रमण कर सकता है । जलन देनेसे। येट आव सोडियम, थाइमल, टेरिविन् आदि सेवन करना उसोके अनुसार चिकित्सा करनी चाहिये। रोगोको । चाहिये। दूध, मांसका जूस आदि वलकारक पदार्थ स्वास्थ्योन्नति और रक्तकी गुणवृद्धिके लिये नाइट्रिक | खानेको देना चाहिये । मदिराके मध्य थोड़ा सेरि, सलफ्युरिक अथवा फोस्फरिक एसिड डिल , जेनसियन, वीयर वा आरेजवाइनका व्यवहार किया जाता है। कलम्बा और कैसकेरिला आदि तिक्त बलकारक औषधों- कोई कोई गदहो और वकरीके दूधको वहुत उपकारी के साथ प्रयोग करना कर्तव्य है। अन्यान्य ओषधोंमें | बतलाते हैं। कुनाइन, सैलिसिन, ष्ट्रीकनिया आदिका प्रयोग करे। ___ उदरामय रोगमे विशमथ, सवनाइद्रस, पलभडोभारी विशेष ओषधोंके मध्य काडलिभर आयल, सिरप हाइ- और क्लोरोडाइन इत्यादिको व्यवहार करे। कोई कोई पोफस्फेट आव लाइम, पैनक्रियेटिक-इमोलसन, सल- कास्यवहार करनेकी सलाह देते है। किन्तु इस प्रकार- फाइड आव कैलसियम, भावेस्कम थैप्सस, एक्ताह की चिकित्सा द्वारा आज तक कोई फल नहीं देखा गया आव मल्टिन, कौमिस वा मलिकवाहन आदि व्यवहार्य है। है। समुद्रवायु सेवन यक्ष्मरोगमें बहुत उपकारी है। कोई कोई ग्लिसिरिन वा आलिभ आयल देनेको कहते विशेषतः प्रथमावस्थामें बहुत कुछ फलदायक है। है। काडलिभर आयलके बदले में मुरहल, ग्लिसिरिन् पीडाको प्रथमावस्था । और दूधका पानी व्यवहृत होता है। रिफेरिकुइनी एकसाइद्रस ५ग्रेन नैशधर्म रोकनेके लिये आक्साइड आव जिङ्क, टिं टिजिञ्जिवारिस १० बुंद बेलेडोना, लाइकर मफिया, सलफ्युरिक तथा गैलिक इनः कलम्बा १ औंस एसिड आदि दे अथवा आगर्टिन वा पद्रोपिया इञ्ज कसन दिनमें ३ बार करके। करे। डाकर मारेल ( Dr. Jarrel ) पाइक्रोटक्सिन् रिओलियम मुरही १॥ ड्राम १ का ६० भाग प्रेन अथवा ५ मिनिम (बुद) मास्केरिन लाइकर पोटासी १० बुंद सोल्युसन रातको सोनेके समय व्यवहार करनेकी सलाह लाइकर एमोनिया फोट आध वृंद ओलियम कैसी उसका भाधा खांसीको उग्रता रोकनेके लिये आसिमेल सिलि, सिरप आध ड्राम सिरप टोलू, टिं कैम्फर कं, डोभर्स पाउडर, क्रोटन क्लोरा- जल इल, ब्रोमाइड आव एमोनियम, लैकरिक एसिड (१० बुद होमियोपायिक मतसे यक्षमरोगकी भिन्न भिन्न करके दिनमें दो बार ) नाना प्रकारका लिटस, पुनस अवस्थामे भिन्न भिन्न प्रकारका औषध व्यवहृत होता भार्जिनस, टिं जेलसिमियम, बेलेडोना और कोनायम है। सुविज्ञ चिकित्सकोंका कहना है, कि सभी अवस्था आदि ओषधका व्यवहार करे। रोगके बलावल और लक्षणानुसार औषधका व्यवहाइ ____पीड़ित स्थानके ऊपर फोमेण्टसन, पुलटिस, मष्टर्ड करना चाहिये। प्लष्टर, क्लिष्टर, क्रोटन आयल, लिनिमेण्ट, टाटर एमेटिक आवेनमेण्ट इत्यादि मालिश करनेके लिये ध्यवहृत यक्ष्मान्तकलौह (सं० क्लो० ) यक्ष्मानाशक औषधविशेष । प्रस्तुतप्रणाली-रास्ना, तालोशपत्र, कपूर, शिलाजित, होता है। १ औंस श्लेष्मा दुर्गन्धमय होनेसे क्रियोसोट, आइभोडिन, | त्रिकटु, त्रिफला, त्रिमद (विडङ्ग मोथा और चितामूल) कालिक एसिड, आयल, युकैलिप्टस, टेरिविन्, पाइन | प्रत्येक एक एक भाग तथा कुल मिला कर जितना हो आयल, आइयोडोफरम्, मेन्थल, सल्फ्यु रस एसिड, उतना लोहा, इन्हें एकत्र कर मर्दन करे। इसका दूसरा हाइडोक्लोरिक एसिड इत्यादिको गरम जलमें गला कर नाम रास्नादिलौह है। इस औषधका सेवन करनेसे