पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४५४

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यज्ञ-यज्ञकोप उन 'नेताग्नि' साध्य यागोंको ऋतु अर्थात् सप्त सोम- के चरणों के वाक्यको हो प्रवर कहते हैं। वैदिक मन्त्रा- संस्था कहते हैं। ताग्नि यथा-१म गाह्य, श्य न्तर्गत शब्दादिके परिवर्तन तथा यज्ञीय संकल्प वाक्य 'दक्षिण' और ३य 'भाहवनीय आश्वलायनके श्य १० २य | और आशीर्वादमें यजमानादिके नाम ग्रहण यथाक्रम ऊह मोर य सूत्र में गार्हपत्यात्मिकको पिता; दक्षिणाग्निको और नामधेयग्रहण नामसे मन्त्रांशविशेषमें सन्निविष्ट पुत्र और आहवनीयाग्निको पौत्र कहा है। विशेषतः शतपथ- हुए हैं। में ।।।४ आदि और कात्या श्री०सु० २१२६ और ५८६ २ विष्णु । ( भारत १३१६६।११७) आदि देखो। छान्दोग्य उपनिषद्के २२.४।११ और ४।१३।१ | यज्ञक ( सं० पु०) यज्ञ-खार्थे कन्। १ यज्ञ । २ याजक, तथा मनुके २३ अध्याय २३१ श्लोकमें भी बेताग्निका | यज्ञ करनेवाला। परिचय है। यज्ञकर्ता (सं०नि०) यज्ञ करनेवाला, याजक । आध्वयु को ही यज्ञमात्रका प्रधान कर्ता जानना यज्ञकर्मन ( सं० क्ली०) यशरूपं कर्मधा ११ यज्ञरूप काम चाहिये । आध्वयु के क्रियागुणसे हो यज्ञ संगठित यज्ञ। २ यज्ञका काम। ३ ब्राह्मण । ब्राह्मणोंके यक्ष ही होता है। होता, ब्रह्मा और उद्गाता उसके अलङ्कार- एकमात्र अवश्य कर्त्तव्य कर्म है। (रामायण ॥१३६३६) स्वरूप हैं। अर्थात् यजुरूप यज्ञदेहमे अक् जिस प्रकार यहकल्प (सं० पु०) विष्णु । भूषणस्वरूप है, सामरूप मणि भी उसी प्रकार उसमें यज्ञकाम ( स० वि०) यज्ञाभिलाषी, यज्ञकी इच्छा करने आश्रित रह कर यागके सौष्टवको बढ़ाती है। वाला। होममातमें सर्पणशील घृत (गव्य घृत) को होयकार (सं०नि०) यज्ञकारी, यज्ञ करनेवाला। आहुति देंगे तथो जुहूको हो केवलमात्र होमसाधन ( यज्ञकारी (संपु०) यज्ञकार देखो। पान समझगे। आधारादिके लिये जुहू द्वारा असम्पाद्य यज्ञकाल (सं० पु०) १ यज्ञादिके लिये शास्त्रों द्वारा कार्यमें स्त्र व ही होमसाधन पात्र होगा। विशेष उल्लेख निर्दिष्ट समय । २पौर्णमासी, पूर्णिमा । नहीं रहनेसे आहवनीयाम्निमें ही आहुति देनी यज्ञकीलक (सपु०) यूपकाष्ठ, काठका वह खूटा जिसमें चाहिये । प्रति कार्यकी समाप्तिमें जुहू आदि । यज्ञके लिये बलि दिया जानेवाला पशु बांधा जाता था। यशपात्रोंको उष्णोदकादि द्वारा ऊपर कहे गये नियमोंसे संस्कृत करना होगा। उनके नष्ट होने पर फिरसे दूसरा | यज्ञकुण्ड (स । यज्ञकुण्ड (सली० ) यज्ञस्य कुण्डः । यज्ञका कुण्ड। ग्रहण करनेका नियम है। नित्याग्निहोत्रकारीको चाहिये. जिस कुण्ड में होम किया जाता है उसको यज्ञकुण्ड कहते कि वे अग्न्याध्यानकालसे ले कर यावजीवन यज्ञपात्रकी हैं। हाथ भर चौकोन तांवेकी धातुसे होमके लिये जो यत्नपूर्वक रक्षा करें। उनके मरने पर उनकी चिता पर | कुण्ड तैयार किया जाता है वही होमकुण्ड कहलाता शवके ऊपर यथाविधि और यथास्थान पात्रोको सजा | है। इस होमकुण्डके ऊपर स्थण्डिल चना और संस्कार कर जलानेका नियम है। जिन दो लकड़ियोंको रगड़ कर उसमें होम करना होता है। कर अग्नि निकाली जाती है उन दो अरणियोंका सत्कार यज्ञकर ( स० त्रि.) यज्ञ करोतीति कृ-विवएतकच। भी इसी नियमके अधीन है। १ यागकर्ता, यज्ञ करनेवाला । (पु.) २ विष्णु ।३ मन्त्र और ब्राह्मण प्रन्थ यज्ञके प्रमाण हैं। इसलिये | सह्याद्रिवर्णित एक राजा। उन प्रन्योंके अनुसार सभी यज्ञ समाप्त करना उचित है। यज्ञकृन्तन (स० क्लो०) यज्ञका अशविशेष । वैदिक मन्त और ब्राह्मणभागमे जो सब वचन अग्नात | यक्षकेतु ( स० पु० ) १ यज्ञवित् । २ यज्ञप्रज्ञापक, वह जी नहीं हैं अर्थात् वेदमें अपठित हैं उन्हें मन्त्र नहीं कह | यज्ञकी क्रियाओंका ज्ञाता हो। ३रामायणके अनुसार सकते। वे प्रवर, ऊह आदि कहलाते हैं। यागों में देव- एक राक्षसका नाम । वरण और मनुष्यवरण-ऋत्विकादिके इन दोनों प्रकारः । यज्ञकोप (स० पु०) १ यज्ञद्वपी, वह जो यज्ञसे द्वेष करता