पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४६

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मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य ) है। प्राचीन मिस्रके आविष्कारकों द्वारा समाधिस्थान | प्रचार था। उसकी तौल १४०० से १६०० ग्रेन अर्थात् और पिरामिडके गुप्त प्रकोष्ठमें सोने, चांदी, तांबे, इले प्रायः ८भरी थी। क्ट्रम और पीतलकी.अंगूठी जैसी वहुत-सी रिंग आवि ३य तलेमो और उनकी युद्धविशारदा महिषी श्य कृत हुई है। प्रत्नतत्त्वविदोंका कहना है, कि वे सव वार्णिसने अच्छी अच्छी मुहरोंका प्रचार किया था। रिंग मिस्रो सभ्यताके आदि युगकी मुद्रा है। पारसिक | पतिको मृत्युके वाद सम्राशी २य वाणिसने बहुंत दिनों आक्रमणके वादसे मिस्रमें पारसिक मुदा प्रचलित हुई | तक प्रवल प्रतापसे राज्य किया था । मुद्रातलमें वार्णिस- थी। १म दरायुसके शासनकाल में मिस्रके आर्यनदेश की जो लावण्यमयी सौन्दर्यशालिनी मूर्ति देखी जाती है; ( Aryandes) वा आदेश नामक स्थानमें साँचेमें ढलो | वह शिल्पीके असाधारण शिल्पनैपुण्यको सूचक है । मं मुद्रा प्रचलित हुई। इस समयका पेपाइरि वा हस्त क्लिओपेद्राने ताम्रमुद्रा प्रचलित करके उसमें अपनी लिखित प्रन्थ पढ़नेसे नवप्रचलित मुद्राको बातें जानी जा प्रतिमूर्ति अकित की थी। यह भी सौन्दर्यसृष्टिका अनुपम सकती है। उसके पहले इस तरहकी मुद्रा नहीं देगे दृष्टान्त है । इसके बाद फिलोमेटरों की मोहरादि वहुतं जाती । यह नवप्रचलित मुद्रा फिनिक-शिल्पादर्श पर दिनों तक मिस्रमें प्रचलित रही। अनन्तर मिस्रकी बनी है। इसके बाद अलेकसन्दरके शासनकाल में सम्राज्ञी सुप्रसिद्ध ७म क्लिओपेद्राने जिनकी सुन्दरता पर प्रोकशिल्पके नूतन आदर्श पर मोहरें बनने लगीं। १म पराकमो वीरपुङ्गव जुलियस लट्ट हो गये थे, वोरतागर्वित तलेमोके राजत्वकालमें नई प्रणालोसे मुदाशिल्पकी आएटोनो जिन्हें पानेके लिये रोमक साम्राज्यके अतुल प्रतिष्ठा हुई तथा तीन सौ वर्ष तक मिस्रदेशमें यही मुद्रा ऐश्वर्यको तिलाञ्जलि देने पर प्रस्तुत थे तथा जिनकी चलती रही। विरहवेदनासे पागल हो उन्होंने आत्महत्या कर डाली थी, मिस्त्री मुद्रामें जो पारसिक सम्राटोंकी प्रतिकृति अद्वितीय चित्रशिल्पी गिडो जिनकी भुवन-मोहिनी अत्ति है उसका शिल्पसौन्दर्य बड़ा हो सुन्दर है.। साइ. प्रतिमाको अङ्कित कर जगत्में अमर हो गये हैं-सौन्दय- प्रसमें फिनिक तथा अन्यान्य विदेशीय टकसाल घरकी की उस सुवर्ण प्रतिमा-रूपिणी मुद्रातलमें विलास- मुंद्रा भी इस समय बहुत चलित हुई थी। जिस विभ्रममें अपना चित्र दिखलाया था। मुद्रातलमें उनके समय सलौकोय राजे एशियाखण्डमें मुदाशिल्पमें | सौन्दर्यकी अपेक्षा विभ्रमविलासको ही अच्छी तरह उन्नति कर रहे थे, उस समय तलेमोवंशीय मिस्र : अङ्कित किया गया है । इसमें ज्योत्स्नामयो निशीथिनीय- के राजाओंकी मुद्रा मिस्त्री चित्रशिल्पके अनुकरण पर प्रशान्त सौन्दर्यको तरह कमनीय भाव नहीं है। यह बनाई जाती थी। उस मुद्राके एक भागमें १म तलेमी; विलास-विभ्रममण्डिता क्लियोपेद्राकी मूर्ति मरीचिकाकी का मस्तक और दूसरे भागमें उनकी महिपोकी प्रतिमूर्ति | तरह दर्शकके नयनोंको आकृष्ट करती है। है। श्य आसिनो, ४र्थ तलेमी और १म क्लिओपेद्राकी, इसके बाद मिस्त्रमें रोमकाधिकार आरम्भ हुआ। मुद्रामें राजदम्पतीका चित्र तथा दूसरे भागमें अभिषेकमें। इस समय मिस्र में मुद्राशिल्पकी अच्छी उन्नति देखी जाती नियुक्त पुरोहितका चिह्न दिखाई देता है। किसी किसी है। इनमेंसे अलेकसन्द्रिया नगरीका मुद्राशिल्प सौन्दर्य- मुद्राके पश्चाद्भागमें ईग्लपक्षी और वज्रमूर्ति है। कुछ में, वैचित्रमें तथा पुरातत्त्व के रहस्योद्घाटनमें सबसे मुद्राओंमें हस्तिचर्मावृत्त वृपङ्गमण्डित अलेकसन्दरकी श्रेष्ठ है। इन सब मुद्राओंको एक श्रेणीमें सजानेसे मूर्ति चित्रित है। किसी मुदामें पेचकवाहिनी पल्लासको मालूम होता है, कि सम्राट अगष्टसके समय इन सव प्रतिमूर्ति देखी जाती है। मिस्त्रसम्राट २य तलेमीने ' मुद्राओंका आरम्भ तथा आटिलियस डोनेसियसके समय फिनिकिया तक अपना राज्य फैलाया था। उस समय- अवसान हुआ है। इस समय दियोक्लिसियनने फिरसे. को मिस्त्री मुद्रा फिनिकिया देशमें पाई जाती हैं। फिला-, ग्रीक आदर्श मित्रमें प्रचलित किया । जिन सव मुद्राओं भेलफ़सके शासनकालमे' बड़ी बड़ी पोतलकी मुद्राका पर मिस्री और प्रोकशिल्पका सम्मिलन देखा जाता है.