पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४६१

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४५६ यज्ञोपवीत उपनयनकालमें यदि मुअतृणका अभाव हो, तो। इन्द्रियकामनामें ग्यारहवें वर्ष में और पशुकामनामे वार- ब्राह्मण कुश, अश्मन्तक और वल्वजको भी मेखला धारण ) हर्वे वर्णमें उपनयन होगा। फिर यह भी लिखा है, कि कर सकते है। आजकल उपनयनकालमें कुशकी हो| ब्रह्मवर्गस कामना करके ब्राह्मणका पांचवे वर्णमें उप- मेखला बनाई जाती है। नयनसंस्कार हो सकता है। बलाथों क्षत्रियका छठे दण्डधारणके विषवमें ब्राह्मणको पलाशका, क्षत्रिय- वर्ष में तथा अर्थाथी वैश्यका आठवें वर्णमें भी उपनयत को बिल्वका और वैश्यको यज्ञहूमरका दण्डधारण करने | हो सकता है। विष्णुवचनमें भी लिखा है, कि धन- कहा है। इस दण्डका परिमाण ब्राह्मणका केश तक, कामीका छठे वर्णमे, विद्याकामोका सातवें वर्णमें, सभी क्षलियका ललाट तक और वैश्यका नासिका तक होना | प्रकारके कामनाविशिष्ट व्यक्तिका आठवें वर्णमें तथा चाहिये। कान्स्वाभिलाषी व्यक्तिका नवें वर्णमें उपनयनसंस्कार हो आज कल उपनयनकालमें विल्य, याहूमर और सकता है। बांसका हो दण्ड ग्रहण करते देखा जाता है। किन्तु नृसिंहवचनमें लिखा है, कि सूर्यके उत्तरायण होने पर इस दएडके धारणमें तीनों वर्णोकी भिन्न भिन्न प्रकारको यज्ञोपवीत-संस्कार करना चाहिये। वेदोंमें ब्राह्मण आदि व्यवस्था लिखी है। तीनों वर्णोके दूसरे दूसरे समयमे भी यज्ञोपवीत-संस्कार ___ अष्टम वा गर्भाप्टम वर्णमें हो ब्राह्मणका उपनयन | करनेकी वात देखी जाती है। ब्राह्मणका वसन्त ऋतुमे, होना चाहिये। पारस्करगृह्यसूत्रके भाष्यमै गदाधरने क्षत्रियका प्रीष्ममें और वैश्यका शरत् ऋतुमें यज्ञोपवीत- नाना प्रमाणादि दिखलाते हुए कहा है, कि छठे और संस्कार करना लिखा है। मासके सम्बन्धमे ज्योतिपमें सातवें वर्णमें भी उपनवन हो सकता है। इसमें कुछ लिखा है, कि माघ आदि पांच महीने अर्थात् माघ, विशेषता भी देखी जाती है, अर्थात् ब्रह्मवर्चसकी कामना| फाल्गुन, चैत्र, वैशाख तथा ज्येष्ठ-इन्हों पांच महीनों में करके सातवें वर्ष में, आयुष्कामनामें ओठवें वर्ष में, यज्ञोपवीत करना शास्त्रसम्मत है। उपनयन शुक्लपक्षमें तेजस्कामनामें नवें वर्षमें, अन्नादिकामनामें दश वर्षमें, | कया जाता है, किन्तु शेष तीन तियि अर्थात् त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या इन तीन तिथियोंको छोड़ कर

  • "अत्र भिक्षाचर्यचरणं १ भवत पूर्वा ब्राह्मणो भिक्षेत २ कृष्णपक्षमें भो उपनयन हो सकता है । जन्मनक्षत्र, जन्म-

भवन्मध्या राजन्यः ३ भवदन्त्यां वैश्यः १४ मातरं प्रथमा-1 मास और जन्मतिथि भी उपनयन नहीं देना चाहिये। मेके 10 भाचार्याय भैक्षं निवेदयित्वा बागपतोऽहशेष तिष्ठे-/ बड़े लडकेके लिये ज्येष्ठमास भी निषिद्ध है । परन्तु दित्येके 15 अधःशाध्यक्षारलवनाशी स्यात् ।१० दण्डधारण- प्रति प्रसव-वचनसे मालूम होता है, कि वशिष्ठके मतसे मग्निपरिचरणं गुरुशुश्रूषा भिक्षाचर्या १११ मधुमांसमजनोपर्या- जन्मदिन, गर्राके मतसे ८ दिन, अनिके मतसे १० दिन, सनस्त्रीगमनानृतादत्तादानानि वर्जयेत् ।१२ अष्टाचत्वारिंशत् , भागुरिक मतसे जन्मपक्ष हो निषिद्ध है, इन सबको बाद वर्षाणि वेदब्रह्मचर्य चरेत् ॥१३ द्वादश द्वादश वा प्रतिवेदम् ।१४ देकर जन्ममासमें उपनयन हो सकता है। कोई कोई यासांसि शाणक्षौमाविकानि १६ ऐणेयमजिनमुत्तमरीयं ब्राह्म कहते हैं, कि जन्ममास जो निषिद्ध बतलाया है, उसका पास्य १७ रौरवं राजन्यस्य ।१८ आज गल्य' वा वैश्यस्य १६ तात्पर्य यह फि प्रथम दश दिन बाद दे कर किया जा सर्वेषां वा गव्यमसति प्रधानत्यात् ।२० मौली रशना ब्राह- सकता है । उपनयनमें वृहस्पतिशुद्धिका अच्छी तरह यास्य १२१ धनु राजन्यस्य २२ मौवी श्यस्य २३ है। वृहस्पति यदि बारहवें, आठवें मुखाभावे कुशाश्मन्तकवल्वजानां ॥२४ पासाशो ब्राह्मणस्य और चौथे धरमें हों, तो उपनयन-सस्कार किसी हालत- दयडः १२५ वैल्या राजन्यस्य [२६ औदुम्बरो वैश्यस्य ।२७ से नहीं हो सकता। यदि वृहस्पति अतीव दुष्ट वा सिंहराशिस्थ हों, तो केशसम्मितो ब्राह्महत्य। ललाटसम्मितः क्षत्रियस्य । भाण- सम्मितो वेश्यस्य ।" (पारस्करगृह्य २।५ कपिडको) भी चैत्रमासमें उपनयन दिया जा सकता है, किन्तु दूसरे विच