पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४७३

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४७० पज्ञोपवीत इस प्रकार आल्याहुति द्वारा होम कर अग्निके पोछे आचाय इस प्रकार माणवकके हाथ पकड़ कर पश्चिमकी ओर आचार्य उदगम कुशसे प्राङ्मुख हो निम्नलिखित मन्त्रसे जप करें। ऊर्ध्वभावसे धैठे। इस समय माणवक अग्नि और प्रजापति पिरग्न्यादरयो देवता उपनयने माणवक आचार्यके वीच कृताञ्जलिपुटसे आचार्याभिमुख हो उद- हस्ताबाय जपे विनियोगः।' “ओं अग्निस्ते हस्तमग्रहीत गन कुशसे ऊर्ध्व भावसे बैठे। अभी वटुकको दाहिनी | दाहिनी सविता इस्तमप्रहीत् अयं मा हस्तमप्रहीत् मित्रस्त्वमसि ओरसे कोई मन्त्रवान् ब्राह्मण वटुक और आचार्यकी | मर्मणा अग्निराचाय स्तव।" पीछे आचार्य माणवक- हस्ताञ्जलि उदकसे पूर्ण करे। पोछे आचार्य इस उद- को निम्न मन्त्रसे प्रदक्षिण करा कर पूर्वाभिमखो करे। काञ्जलि देख कर निम्नोक्त मन्त्र जप करें। ___ 'प्रजापति पिः सूर्यो देवता उपनयने माणवकस्या- 'प्रजापतिऋषिरनुष्टुपच्छन्दो अग्निवायुसूर्यचन्द्रादयो वर्तने विनियोगः। ओं सूर्यस्यांवृतमन्ववत्तख श्री देवता उपनपने आचार्य स्य माणवक प्रेक्षमाणस्य जपे माणस्य जपे अमुक देवशमन्निति' यह पढ़ कर माणवकका नाम चिनियोगः।' (गोभिलगृ० १।६।१४) कहें। पीछे आचार्य पहले माणवकका दक्षिणास्कन्ध “ो आग्रन्त्रा समगन् महि प्र सुमत्यं युयोतन । और पोछे नामिदेश स्पर्श कर यह मन्त्र पढ़ें। अरिष्टाः सञ्चरेमहि स्वस्ति चरतादयं ॥" ___ 'प्रजापति पिनाभ्यन्तरौ देवते उपनयने ब्रह्मचारि- (मन्त्रब्राह्मण १।६।१४) नाभिदेशस्पर्शने विनियोगः। "ओं प्राणानां ग्रन्थि- अनन्तर आचार्य उदकाञ्जलि हो उदकाञ्जलियुक्त रसि मा विनसोऽन्तक इद ते परिददामि" ( म०मा० ३॥ माणवकको यह मन्त्र पढ़ावें । 'प्रजापति पराचार्यों ६।२०) अमुक देवशर्माण' यह कह कर माणवकका नाम उच्चारण करें। देवता उपनयने माणवकवाचने विनियोगः।' (गाभिल | अनन्तर आचार्य माणवकके ऊपरी भागमें यह मन्त २२१०२१) 'लों ब्रह्मचर्य मागामुपमानयस्व ।' पढ़ कर उसे स्पर्श करें। ( मन्त्रब्राह्मण १।६।१६) ____ 'प्रजापति पिर्वायुदेवता उपनयने ब्रह्मचारिनाम्यु जसके वाद आचार्य माणवकको निम्नोक्त मन्त्रसे परिस्पर्शने विनियोगः।' 'ओं अहुर इद ते परिददामि' उसका नाम पूछे। ( म०वा. १६२१) 'श्रीममुकदेवशर्माण" कह कर माण- प्रजापतिविमग्नर्देवता आचार्य ब्रह्मचारिणो- वकका नाम उच्चारण करें। आचार्य फिरसे माणवकके वचनप्रतिवचने विनियोगः। (गोभिल २।१०।२२) हृदयदेशको निम्नलिखित मन्त्रसे स्पर्श करें। 'ओं कोनामासि' (मा० शा१७) प्रजापत्ति षिः कृशानुदेवता उपनयने ब्रह्मचारि- पीछे वटुक निम्न मन्त्रसे देवताश्रय, गोताश्रय या| हृदयस्पर्शने विनियोगः । "ओं कशन इदं ते परिददामि" नक्षत्राश्रय करे, "असौ नामास्मि।" ( म०मा० १।६।१७) १७ ( म०मा० १।६२२) श्रीअमुकदेवशर्माण" कह कर माण- अर्थात् हे गुरो ! मेरा यह नाम है, ऐसा कहे। वकका नाम उच्चारण करना होगा। पीछे दाहिने हाथसे तव भाचार्य और वटुक दोनों उदकाञ्जलि परित्याग आचार्य माणवकका दाहिना स्कन्ध छू कर यह मंत्र पढ़े। करें। पीछे आचार्य दाहिने हाथसे बटुकका सांगुष्ठ | प्रजापतिऋषिः प्रजापतिर्देवता उपनयने ब्रह्मचारि- दाहिना हाथ इस मन्त्रसे पकड़ें।। दक्षिणस्कन्धः स्पर्शने विनियोगः। "ओं प्रजापतये त्वा 'प्रजापति षिः सविताश्विपूषाणो देवता उपनयने । लाश्विपूषाणो देवता उपनयन | परिददामि" (म०वा० १६२३) 'श्रीअमुकदेवशर्मन' कह आचार्यस्य माणवकहस्तग्रहणे विनियोगः।' | कर माणवकका दाहिना कंधा छुए और यह मंत्र पढ़े। 'प्रजापति ऋषिः सवितादेवता उपनयने ब्रह्मचारि- "ओं देवस्य ते सवितुः प्रसवे अश्विनोबाहुभ्यां पूष्णो | हस्ताभ्यां हस्त गृहनामि" (मबा० १।६।१८) 'अमुक वामस्कन्धस्पर्शने विनियोगः । “ओं देवाय त्वा सवित देवशन्निति।' परिददामि" ( म०मा० २६१२४) 'श्रीअमुक देवशर्मन् । कह कर माणवकका नाम ले। यह कह कर माणवकका नाम कहें।