पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४७८

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४७) यज्ञोपासक-यति रौरव और पार्वत वस्त्र तथा वैश्यका आजाविक वस्त्र , यतकर (स.पु.) यमनकर्ता, वह जो प्रतिवन्ध करता होगा। परन्तु क्षोम, शाण और कम्बल वस्त्र ब्राह्मणादि , हो। तीनों वर्ण धारण कर सकते हैं। यतन (सपु०) यत्न करना, कोशिश करना। ____भिक्षानियम-ब्राह्मणकुमार कहे, "भवति भिक्षा यतनीय ( स०नि०) यत्-अनीयर् । यत्न करने योग्य, देहि", क्षत्रियकुमार, 'भिक्षा भवतो ददातु और वैश्य- कोशिश करने लायक । वालक 'देहि भिक्षा भवति' ऐसा कहे। यतम (सत्रि०) यत् ( या वहूनां जातिपरिप्रश्ने ऽतमज । यदि माता भिक्षा दे, तो सवोंको 'ओं स्वस्ति' कह | पा ५३९३) इति डतमच । वहुतों से एक । कर ग्रहण करना चाहिये। ब्राह्मण सात कुलमें, क्षत्रिय यतमान ( सं० पु०) २ यत्न करता हुआ, कोशिशमें लगा तीन कुलमें और वैश्य दो कुलमें भिक्षाचरण करे। स्तेन हुआ । २ अनुचित विपयोंका त्याग और उचित विषयों- अर्थात् चोर और पतित व्यक्तिको छोड़ कर गांवमें और, में मन्द प्रवृत्तिके निमित्त यत्न करनेवाला। सभोके यहां भिक्षा मांग सकते हैं। यतर (स' त्रि०) यत् ( किं यत्तदो निधिर्धारणे दयोरेकस्य ___ ब्रह्मचारीको भिक्षामें जो कुछ मिले उसे वह आचार्ग-1 डतरच । पा ६३९२) इति डतरन् । दोमेसे एक । के निकट समर्पण करे। आचार्य वह भिक्षा ले कर यतरश्मि (सं० त्रि०) यता वाक यस्य । संयत वाक्ययुक्त । पुनः शिष्यको लौटा दें। इसके बाद आचार्यको यथा यतथ्य ( स० वि०) प्रयत्नवान्, कोशिश करनेवाला ( विहित सभो अगिकार्य करने होंगे। विशेष विवरण यतव्रत ( स० वि० ) यतं व्रतं यस्य । संयमरूपव्रत- अथर्ववेदीय कौशिकसू. और केशवपद्धति देखो। धारी, बहुत संयमसे रहनेवाला। यज्ञोपासक (सं० पु०) १ यज्ञपूजाकारो। २ यज्ञकारी, यतस् ( स० अव्य ) तद् ( पञ्चम्यास्त्रसिल्। पा ५॥३॥७॥ वह जो यज्ञ करता हो। इति तसिल ततोऽध्ययत्वं । १ हेतु । २ जिसके द्वारा । यज्य (सं०नि०) यजन करने योग्य । ३ जिससे । ४ जिसमें। यज्यु (सं० वि०) यजतीति यज् ( यजिमनिशुद्धिदसिजनिभ्यो यतस्नु च ( स० वि० ) उद्यतनुक, तैयार सुवा । युच् । उण ३।२० ) इति युच् । १ यजुर्वेद-वेत्ता ब्राह्मण ।। | यतात्मन् ( स० वि०) यत आत्मा चस्य। संयतचित्त, २ यजमान। संयमी। यज्वन (सं० पु०) यज्ञ (सुयजोर्ड निप् । पा ३।२१०३ ) इति ड्वनिप् । विधिपूर्वक यज्ञकारी, वह जो शास्त्रा. | यति (सं० पु०) यतते चेष्टते मोक्षार्थमिति यत् ( सर्वधा- नुसोर यक्ष करते हैं। तुभ्य इन् । उण_४।११७ ) इति इन्। १ निजितेन्द्रिय यज्वनापति (सं० पु०) चन्द्रमा। प्राम । पर्याय-यतो, भिक्षु, संन्यासी, कान्दो, रक्त यज्विन् (सं० त्रि०) यज्वा, यज्ञ करनेवाला। वसन, परिव्राजक, तापस, पराशरी, परिकांक्षा, सङ्करी, यज्वन देखो। परिरक्षक । ( हेम) यडर (हिं० पु० ) एक प्रकारकी पक्षो । जो यति हैं अर्थात् मोक्षपरायण है, वे अवि- यण्व (सं० क्लो०) सामभेद । मुक्त क्षेत्र या मुक्तिधाममें वास करेंगे। . यत् (सं० अध्य०) हेतु । मनुका कहना है, स्नातक द्विजोंको यथा शास्त्र गृह- यत ( सं त्रि०) यम-क्त, मस्य लुक् । १ नियन्त्रित, स्थाश्रम धर्मका पालन कर वानप्रस्थका आश्रय करना नियमित । २ दमन किया हुआ, शासित । ३ प्रतिबद्ध । चाहिये । गृहस्थ जव देखें, कि उनका शरीर कांपने रोका हुआ। और वाल पकने लगा है और उनके पुत्रका भी पुत्र हो यतगिर ( स० वि७). यता संयता गीर्वाक यस्य । संयत | गया, तब उनको जङ्गलका रास्ता दृढ़ना चाहिये । वान- . वाक, ठीक वचन। - प्रस्थ-आश्रममें अपने जीवका तीसरा भाग विता कर