पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४८

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मुद्रातत्व (पाश्चात्य) समय अर्थात् ईसाजन्मसे पहले १६ अब्द तक प्रथम । मुद्रा मुद्राशालामें सजाई गई हैं उनमें निम्नलिखित प्रति युग तथा इस समयसे ले कर ४७६ ई०सन् तक द्वितीय ! मूर्ति देखनेमें आती है। युग है। प्रजातन्त्रका मुद्राशिल्प ठीक किस समय १-रोमाधिष्ठात्री देवो रोमा, जुपितर, पेतिल्लिया, . आरम्भ हुआ था, प्रत्नतत्त्वविद् उसे आज भो न बता । जुनिया देवी और नेपचुनका मस्तक। सके हैं। इस सम्बन्धमें नाना मुनिका नाना मत है। २-पविन प्राकृतिक पदार्थ, पवित्न जीवजन्तु पर हां, प्राचीनतम रोमकमुद्रामे रोमको पौराणिक ' आदि। कहानी के अनेक मूलसूत्र पाये जाते हैं। ३-प्रतिष्ठित नगरादिके अधिष्ठात्री देवता आदि। रोमकी प्राचीन मोहरें पीतलकी होतो थों। उनमें जैसे, हिम्पानियाकी केरिसा, रोमको जुलिया और अलेक- किसी प्रकारका चित्र नहीं रहता था। गोल और सन्दियाको एमिलिया इन सव देवीकी भुवन मोहिनी चौकोन पोतलके टुकड़ोंका हो व्यवहार होता था। उस मूर्ति मुदाशिल्पके चरमोत्कर्षको प्रमाणित करती है। के बाद उनमें छाप पड़ने लगी। मुद्रातत्त्वज्ञ पण्डितों-, ४--कल्पित पौराणिक चित्र आदि। जैसे, हस्ति- का कहना है, कि ये प्रथम छापयुक्त पीतलको मुद्रा लिया वा पावर, पाल्लर, होनस. भिर्रास और मुसिया सावियस डालियस द्वारा बनाई गई हैं। इन मुद्राओंमे आदि। भेंड़े. वैल, केकड़े, सूअर आदि जीवजन्तुओंके चित्र ५-कल्पित दानवादि, जैसे, सिल्ला ( Scylla) देखे जाते हैं। बहुतोका कहना है, कि ये सव ६-वर्गीय पूर्वपुरुषोंकी प्रतिमूर्ति । जैसे-जुमा मुद्रा ई०सन्की ५वीं शताब्दीके पहलेकी नहीं हैं। इस वा कालपूर्णिया, मास्कस,मार्सियम। समय चौकोन पीतलकी मुद्रा गोलाकारमें परिणत हुई। -पूर्वपुरुषोंको कीर्तिकहानी, जैसे-मार्कस लेपि. उसके बादके युगमें पिरहासके समय हाथीको प्रतिमूर्ति दसकी प्रतिमूर्ति अथवा तलेमी एपिफेनसको मुकुर अङ्कित हुई। मुद्रातत्त्वज्ञ ममसेन कहते हैं, कि लेकस- पहनाने में उद्यत एमिलिया देवो। जुलिया पापिरियाने ई०सन्के ४३० वर्ष पहले नई मुद्रा -नाना प्रकारको ऐतिहासिक घटनाओंका स्मृति चलाई। किन्तु इनके शासनकालमें मुद्रा इतनी थोड़ी चित्र। संख्या में छपती थी कि प्रजा वकरे भेड़े आदि दे कर -सम्राट् अथवा सेनापतिको प्रतिमूर्ति। मालगुजारी चुकाती थी। खरोद विक्री और वाणिज्य रोमक-मुद्रा द्वारा रोमका यथार्थ इतिहास अच्छी ध्यवसायमें भी यही प्रथा जारी रही। जो हो, पर इतना तरह नहीं मालूम । रोमकोंने सर्वा शमें प्रीकशिल्पका जरूर है, कि प्राचीन रोमकमोहरादि प्रोकमुद्राके अनुकरण किया था सही, किन्तु वे किसी अंशमें अनुकरण पर ढाली जाती थी। इसके पीतलके टुकड़ों उनसे बढ़ कर नहीं किले । रोमक मोहरादिमें देव- पर जुपिटरका मुख अङ्कित है। ई०सन्के २७० वर्ष देवोके चित्रकी अपेक्षा ऐतिहासिक घटना ही अधिक पहले रोममें पहले पहल चांदीकी मुद्राका प्रचार हुआ। परिमाणमें चित्रित है। बहुतोंमें राजोचित प्रधानता ई०सन्के २२८ वर्ष पहले 'भिकोरियाटस' नामक नया देखी जाती है। फलतः रोम कभी भी मुद्राशिल्पमें रुपया चलता था। सल्लाके समयमें हो सबसे पहले प्रोकका मुकावला नहीं कर सकता। मार्कस अरेलियस- . रोममें मोहर प्रचलित हुई। ईसाजन्मके ४६ वर्ष पहले , की मुहरोंसे अनेक ऐतिहासिक तन्त्र जाने जाते हैं। उनमें जुलियस सीजरने नई मुहर चलाना आरम्भ किया। इन , रोम सम्राट् और सम्राज्ञीको सुन्दर प्रतिमूर्ति भी अडिन्त सव मुद्राओं में "0" के जैसा साङ्कोतिक चिह्न है। इन- है। सम्राटके मस्तक पर राजच्छन वा राजमुकुट और में जेनस वाइफ्रनस ( Jonus Bifrons ), पितर, सम्राशीका मुख अर्भावगुण्ठित है, किन्तु जिन्होंने यौवन पल्लास, हरकुलेश, मार्करी तथा रोमाधिष्ठात्री रोम । सीमामें पदार्पण नहीं किया है उनका मुख विलकुल देवीको प्रतिमूर्ति देखी जाती है। इस श्रेणीको जो । खुला है।. अलावा इसके ऐतिहासिक घटनाका संपूर्ण Vol, XVIII. 12