पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४८३

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४८० यत्नवदन्यथाक्रतु बिल्कुल ही नहीं समझ सकता तब उसे खा लेता यथाकर्त्तव्य ( स० त्रि०) यथा-क-तव्य । कर्तव्यानु- है। (भाषापरिच्छेद १४८-१५०) रूप, जैसा करना चाहिए वैसा । २ उद्योग, कोशिश। ३ उपाय, तदबीर । ४ रक्षाका यथाकर्म ( स० अव्य० ) कर्मके अनुरूप, कामके मुता- आयोजन । ५ रोग शान्तिका उपाय, उपचार । विक। यत्नवत् (सं० दि०) यत्नः विद्यतेऽस्य मतुप् मस्य वा यथाकर्मगुण (स० अध्य) कर्मगुण अनतिक्रम्य इत्यव्ययो- यत्नविशिष्ट, यत्नमें लगा हुआ। भावः। कर्श और गुणके समान, कर्म तथा गुणको यत्नाक्षेप (स'० पु० ) अलंकारशास्त्रोक्त आक्षेपभेद।। अतिक्रम न करके। यत्र (सं. अव्य० ) यत्-सप्तम्यां बल् । जहां, जिस यथाकल्प (स अव्य०) संकल्पानुरूप, शास्त्र के मुताविक । जगह। याकाण्ड (सं० अन्य ) काण्ड ' अर्थात् शाखाके यत्रकाम (सं० अव्य०) यथेच्छा या इच्छानुसार। अनुरूप। यत्रकमावसाय (सं० पु०) योगियोंको एक शक्तिका | यथाकाम (स' नि० ) १ जिस प्रकार कामनाविशिष्ट । नाम, अणिमादि आठ सिद्धियोंमेंसे एक, इच्छानुसार ( अव्य ) २ कामनानुरूप, इच्छानुसार । योगियोंका किसी जीवदेह या शून्यमार्ग आदिमें जाना । यथाकामिन् ( स० नि०) यथा कामयते इति कामि- यत्रकामावसायिन् (सं० त्रि०) यत्रकामावसाय-शक्ति- णिनि, यद्वा काममनतिक्रम्य प्रवृत्तिरस्यास्तीति यथाकाम विशिष्ट, अपनी इच्छानुसार शून्यमार्ग में जानेवाला 'अत इनिठनाविति' इनि । स्वेच्छाचारी, अपनी इच्छा- योगो। के अनुसार काम करनेवाला । पर्याय स्वरुचि, यत्रतत्र (सं० अध्य० ) १ जहां तहां, कुछ यहां कुछ वहां। स्वच्छन्द, श्वेरो, अपावृत, स्वतन्त्र, निरवग्रह, नियन्त्रण । २ जगह जगह, कई स्थानोंमें । (जटाधर) यत्रतत्रशय (संत्रि .)जहां तहां सोनेवाला। यथाकाम्य ( स० क्ली० ) यथेष्ट, कामनानुरूप । यत्रत्य (संत्रि .) जहांसे उत्पन्न। यवसाय प्रतिश्रय ( सं त्रि. ) जहां रात्रिका प्रारम्भ हो | यथाकाय ( स० अव्य० ) कायके अनुरूप, आकृतिके समान । वहीं रहना। यथाकार (सं० अध्य० ) जिस प्रकारसे। यत्रस्थ ( स० वि०) यत्र तिष्ठति स्था-क। जहां तहाँ यथाकारिन् (स'० वि०) यथा करोति कृ-णिनि । स्वेच्छा- रहनेवाला। चारी, मनमाना काम करनेवाला। यत्राकूत ( स० क्ली० ) संकल्प, मनमें जो इच्छा हुई हो। यथाकार्य ( स० त्रि०) यथाकर्त्तव्य, जैसा करने योग्य । यतु (स' स्त्री० ) छातीके ऊपर और गलेके नीचेकी यथाकाल ( स० पु०) १ उपयुक्त समय, शुभकाल । मंडलाकार हड्डी, हसली। । (अव्य० ) २ उपयुक्त समयमे । यथऋषि (स अश्य० ) ऋषि अनुसार । यथाकुल (स० अध्य०) कुलके अनुरूप, कुलधर्मानु- यथय ( स० अव्य० ) १ ऋतुके समान । २ निर्दिष्ट 'समयके अनुसार, यथासमय। . यथत्तक ( स० वि०) निर्दिष्ट ऋतुसम्बन्धीय। यथाकुलधर्म (स'. अव्य० ) कुलधर्मानुसारसे, जिस यथर्षि ( स० अव्य० ) ऋषिकथित वाक्यानुसार । कुलमें जिस प्रकार नियम हो उसके अनुसार । यथा ( स० अध्य० ) सादृश्य, जिस प्रकार, जैसे, ज्यो। यथाकृत ( स० वि० )१ रीत्यनुरूप, जैसा किया या पर्याय-वत्, वा तथा, एव । स्वीकृत किया हुआ है। १ ( अन्य० ) २ कृतानुरूप । यथाकनिष्ठ (सं० अध्य०) कनिष्ट अनतिक्रम्य इत्यव्ययी- यथाकृष्ट ( स० अध्य० कृष्टानुरूप, चार बार कर्षण । भावा यथाकनिष्ठ । कनिष्ठको अतिकम न करके । यथाक्रतु (सह वि०) कल्पनानुरूप। । सारसे।