पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९

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मुद्रातत्त्व (माच्य) चित्र यदि जानना हो, तो रोमकमुद्रा देखो, उससे कुल । नाम 'दारिक' बात मालूम हो जायंगी। प्रीक शिल्पके अनुकरण पर और रुपयोंका नाम 'सिग्ली' था। मोहरादिके एक ओर धनुर्धारी पारस्य-सम्राटकी मूर्ति रोमकोंके इतिहांसमें वीच बीचमें जैसा परिवर्तन हुआ और दूसरी ओर नेमियन सिंहकी प्रतिकृति अङ्कित है। था, रोमकी मुद्रा ही उसका अपूर्व निदर्शम है। रोमको । किसीमें हीराक्लिस सिंहके साथ अपना विक्रम दिखा की देव-देवियां प्रीक-देवदेवीकी हूबहू अनुकरणमान | रहा है। फर्णावगासको प्रतिमूर्ति अकित मुद्रा अत्यन्त है, शिल्प भी प्रोक शिल्पको छायाके सिवा और कुछ सुन्दर है। अलेकसन्दरने पारस्यदेश जय किया था सही नहीं है। ई०सन्के पहले एशिया खण्डमें भी मुद्रा- किन्तु उसको स्वाधीनताको वे सपूर्णरूपसे विलोप न शिल्पकी जैसी उन्नति हुई थी, रोममें उसका सौवां कर सके थे। पार्णिय-साम्राज्य पहले पारस्यके अधीन भाग भी नहीं हुई। कितु सम्राट अगष्टसके शासन- था, पीछे ई०सन् २४६ वर्ष पहले पार्शियोंने वागी हो कालमें रोममें शिक्षा-सभ्यताके नवयुगका आविर्भाव । कर पारस्यके दासत्व बंधनको तोड़ ताड़ कर विशाल हुआ 'अगष्टन' युगको रोमकके इतिहासमें स्वर्ण युग स्वाधीन साम्राज्यकी नोव डाली। आगे चल कर वे कहा है। इस युगका साहित्य मानो पृथ्वीमे अविः रोमके साथ प्रतियोगिता करनेमें समर्थ हुए थे । पार्मिय मश्वर निदर्शन छोड़ गया है। इस युगके मुद्राशिल्पने मुद्रामें प्रोफशिल्पको छाया देखी जाती है । एक पृष्ठ पर भी उसी तरह सर्वाङ्गीण उन्नति की थी। राजाका मस्तक और दूसरे पर स्वदेशके स्वाधीनता- रोमक-मोहर और रुपपेमें अङ्कित लिभिया, जास्ति- संस्थापक बड़ी बड़ी आंखवाले अर्सकेस धनुर्वाण सिया और प्रवीणा पनिपिनाका चित्रशिल्प सौन्दर्गाका हाथमे लिये खड़े हैं। उसके नीचे अनेक प्रकार- अनुपम दृष्टान्त है। ऐसा नैसर्गिक हावभावसे भरा सुन्दर की उत्कीणं लिपि है। अर्सकेस-वंशीय ११वें राजा- चित्र कहीं भी देखनेमें नहीं आता । रोमक-सम्राट की प्रतिमूर्ति मुद्रातलमें अङ्कित देखी जाती नृशंस नीरोका चित्र देखनेसे उसका मुखमण्डल आन्त- है, किसी किसीमें सलौकिय , ( Seleucid ) रिक भावोंसे पूर्ण मालूम पड़ता है। राजाओंका शिल्पानुकरण देखा जाता है। पार्थिय मोहर प्राच्य-मुद्रा। और रुपयेमें उत्कीर्ण लिपिकी तरह दीर्घ अक्षरमाला मुद्रातत्त्वज्ञ पण्डितों ने प्राग्यश्रेणीमें निम्न- पार्थिय साम्राज्यके १७वें राजा फ्रओतेस तथा उनको लिखित प्रदेशोंको स्थान दिया है, प्राचीन पारस्य माता सम्राज्ञी मूसाकी प्रतिमूर्ति शिल्पसुषमाका आश्चर्य साम्राज्य, अरव, आधुनिक पारस्य, अफगानिस्तान, निदर्शन है। पारस्य प्रदेशमें शासनवंशके राजाओंने भारतसाम्राज्य, चीनसम्राज्य और जापान आदि देश || पराक्रान्त हो कर २२६ ई०में पार्शिय-साम्राज्यको ध्वंस प्राचीन प्राच्य मुहरादिमें सबसे पहले पारद वा पार्थिय, कर डाला। अद्देशी वा अक्षत्र इन लोगोंके अननायक ( Parthian ) तथा पारस्यमुद्राका उल्लेख किया जा थे। इस वंशके सम्राटोंने स्वर्णमुद्राका प्रचार किया। सकता है। भारतीय मुहरादि भी ग्रीक, संस्कृत,अरव, पारस्य उसके एक भागमें मुकुटालंकृत राजमस्तक और दूसरे आदि भाषाकी नाना प्रकारको लिपियोंसे परिपूर्ण है। ' भागमे प्रज्वलित अग्निवेदिका है। अग्निवेदिके सम्मुख खु० पू० छठी शताब्दीमें प्राचीन पारसिक मुद्राशिल्पको भागमें प्रशान्त मूर्ति पुरोहित पद्मसन पर बैठे हैं और उन्नति देखी जाती है। श्म दरायुस वा हयस्ताम्पके राजा.हाथ जोड़े ध्यानमें लीन हैं। इस वंशने अप्रति- समय सबसे पहले पारसिक मुद्राका प्रचार आरम्भ हत प्रभावसे चार सौ वर्ष तक राज्य किया और नाना हुआ। इस समय पारसिक लोग वाणिज्यमें अद्वितीय | प्रकारको मुद्रायें चलाई थीं। थे। इसके पहले लिवियापति धनकुवेर फिससकी ___ अक्षेत्रके समयमें जरथुस्त्र मतको विशेष प्रधानता मुहर पारस्यमें प्रचलित थो। कहीं कहीं फिनिकिया| देखी जाती है। उस समयकी उत्कीर्ण लिपि पहवी मुद्राशिल्पका प्रभाव देखा जाता है । राजकीय मोहरोंका | भाषामें हैं। इसके बाद हो अरवी मुद्रा है। साढ़े