पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९०

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यदुराट्-यदुवंश यदुराट् । सं० पु०) यदुराज देखो। हुए थे। शशविन्दुको दश हजार स्त्रियां थीं और एक यदुवंश ( स० पु. ) राजा यदुका कुल, यदुका खान । स्त्रीले एक एक लाख पुत्र उत्पन्न हुए थे। इनके प्रपौत । उशनाने एक सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। उशनाके पौत्र- यदुवंश-यदुके पुत्रोंमें क्रोष्ट और सहस्रजित्का वंश ! का नाम ज्यामध था। ये बड़े स्त्रैण थे। इनकी स्त्री- बहुत मशहूर है। सहस्रजितके एक पुत्र था जिसका ' का नाम शैम्या था। यद्यपि ज्यामघके कोई सन्तान न नाम हैहय था। हैहयसे दशवीं पीढीमें कार्तवीर्यार्जुन थी, पर स्त्रीके डरसे वे विवाह नहीं कर सकते थे। उत्पन्न हुए। दत्तात्रेयको आराधनासे इन्हें वर मिला एक समय राजा ज्यामघने किसी नगर पर धावा बोल था। कुछ पुराणों में लिखा है, कि दत्तात्रेय विष्णुके दिया। सभी नगरवासी जान ले कर भागे। एक अवतार थे। कार्तवीर्यने दत्तात्रेयसे अधर्म द्वारा सेवा- सुन्दरी राजकन्या किसी प्रकार भाग न सकी। ज्यामघ का दूर करना, धर्म द्वारा पृथ्वोका जीतना, शत्रुसे परा- व्याह करनेकी इच्छासे उसे अपने घर ले आये। कन्या- जित न होना, भुवनविख्यात पुरुषके द्वारा अपनी मृत्यु को देखते ही रानो शैय्या मागवबूला हो गई। इस पर और युद्धक्षेत्रमें हजार बाहुकी प्राप्ति आदिका वर पाया ज्यामधने अपना अभिप्राय छिपा कर कहा, 'मैं इसे था। कार्तवीर्यने दश हजार यज्ञ किये थे, सप्तद्वीपा अपनी स्त्री वनानेके लिये नहीं लाया, वरन् वसुमतीको अपने अधिकारमें कर लिया था। उनके पतोहू बनानेकी इच्छासे लाया हूँ । उस शासनकालमें कोई भी किसीका द्रव्य नहीं चुरवा और समय भी ज्यामधके एक भी पुत्र न था। न कोई दुःखी ही था। वे धर्मसे राज्यपालन करते थे, कुछ समयके वाद ज्यामघके एक पुत्र हुआ। आगे कर समय लङ्काधिपति रावणने उनकी राजधानी पर बढ़ाई उसोसे रह कन्या व्याही गई। पुत्रको नाम विदर्भ था। कर दी। इस पर कार्तवीर्यने क्रोधमे आ कर रावण-। इसी वंशमें सास्वत उत्पन्न हुए थे। सात्वतके सात को पशुओंके समान वांध रखा। कर्कोटकवंशी नागोंको पुत्र थे, जिनमें भज्यमान, अन्धक, वृष्णि, देवावृध आदि परास्त कर इन्होंने माहिष्मती नगरीको बसाया। ८५ प्रसिद्ध हैं। देवावृध और उनके पुत्र बभ्रुकी पुराणों में हजार राज्य करनेके बाद ये परशुरामके हाथसे मारे गये। बड़ी प्रशंसा गाई है। एक श्लोक इनके सम्वन्धमे प्रसिद्ध कार्तवीर्याके सौ पुत्र थे जिनमेसे केवल जयध्वज आदि । है "दभु श्रेष्ठौ मनुष्याणां देवैर्देवावृधः समः" अर्धात् वभ्र पांच ही वच गये थे! जयध्वज अवन्तीके राजा थे | मनुष्योंमें श्रेष्ठ है तथा देवावृध देवोंके तुल्य है। इनके उनक तालजङ्घ नामक एक पुत्र था। तालजङके भी | उपदेशसे कितने ही मनुष्योंने मोक्ष पाया था। विदर्भके सौ पुत्र थे और वे भी तालजङ्ग ही कहलाते थे। उनमेंसे | एक और पुत्र था, लोमपाद उनका नाम था। अङ्गदेश- अधिकांश सगरके हाथ मारा गया। पीछे भरत राज्या-| का वे शासन करते थे। राजा दशरथसे इनको गाढ़ी धिकारी हुए। भरतके एक पुत्र था, चुप उसका नाम | मित्रता धी। एक बार लोमपादके पापसे उनके राज्य- था। वृषके पुत्र मधु और मधुके वृष्णि आदि सहस्र में व रह वर्ष तक अनावृष्टि रहो। पोछे वेश्याओंके पुत्र उत्पन हुए। इसी वंशकी यदुके बोद यादवसंज्ञा द्वारा लुभा कर उन्होंने ऋष्यश्रङ्ग मुनिको अपने देशमें हुई। इस वंशका मधुसे माधव और वृष्णिसे वृष्णि | वुलाया। मुनिके आनेसे राज्यमें वृष्टि हुई। दशरथकी नाम गड़ा। वोतिहोल, सुव्रत, भोज, अवन्ति, भौण्डि- कन्याको लोमपादने गोद लिया था। वही कन्या मुनि- केय, तालजङ्घ, भरत और सुजात आदि इसी हैहयवंशकी को व्याही गई सात्वनके दूसरे पुत्र महाभोज भी बड़े शाखा हैं। यदुके दूसरे पुत्र क्रोष्टु थे। उनके दो धर्मात्मा थे। उन्हींसे भोजवंशकी सृष्टि हुई। सुप्र- स्त्रियां थीं, माद्री और गन्धारी । पुत्रों में अनमिन, युधा- सिद्ध राजा श्यफल्क इसी वंशमें हो गये हैं। जहां वे जित्, देवमीडप और वृजिनीवान ये प्रसिद्ध हैं। वृजिनी- रहते थे वहां ध्याधि तथा अनावृष्टिका भय नहीं वानके वंशज शाराविन्दु चौदह रत्नोंके प्रभु और चक्रवत्तीं। रहता था। एक वार काशी राज्यमें तीन वर्ष तक