पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९६

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यन्त्र . ओर क्षों' इस नृसिहमन्त्र और चारों कोनों पर 'हु' यह , अङ्कित करनी होगी। चार कोणों पर चार रेखायें खींच वराहमन्त लिखना। इस यन्त्रके धारण करनेसे सव- कर उसके मध्य में और अन्तमें दो वलय लिखना चाहिये। सम्पद लाभ होता है। इसमें,- नृसिंहयन्त्र। "तं सुकादेव देवेतं तं वेदे वरतोवतम् । वीचमे बीज और साध्य नामादि लिख आठ पंख तां वतो रूढतो ख्यातं त ख्यातो देवकीसुतम् ॥" ड़ियों में, इस भनुष्टुप् मन्त्र पद्मवन्ध रीतिके अनुसार लिख "उमं वीर महाविष्णु नक्षन्तं सर्वतोमुखं । कर अष्टकोण विवरमें 'क्ली कृष्णाय गोविन्दाय' यह अष्ट नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम् ॥” वर्ण लिखना होगा। इस यन्त्रके वाहर "ॐ नमो भग- इस मन्त्रका चार चार वर्णविन्यास करना चाहिये। वते वासुदेवाय” इस द्वादश अक्षरके मन्त्रसे घेर देना उसके चारों ओरसे मातृकावर्ण द्वारा घेर कर उसके चाहिये । इस यंत्रसे सब कामनायें पूर्ण होती है। पलाश. वाहर भूपुर लिख हरेक कोणमें 'क्षौं' यह मन्त्र लिखना।। के पत्ते पर लिख कर इस यंत्रको गोशालामें रख दें, तो इसके बांध रखनेसे क्षुद्रविष, प्रहदोष, शत्रुध्वंश और गोधनकी वृद्धि होती है। लक्ष्मी प्राप्त होती है। शिवयत्र। गोपालयं । पहले छः कोणोंका मण्डल लिख उसमें 'हौं' यह 'ग्लो' इस पिण्डको मन्त्र 'क्लों गोपीजनवल्लभाय | प्रसाद बीज और बीच साध्य नाम लिखना आवश्यक है। स्वाहा' से घेर देना होता है। इसके बाद अर्ध्वमुख पीछे छः कोणोंमें 'ॐ नमः शिवाय' इस छः अक्षर मंत्रके त्रिकोण पर अधोमुखी त्रिकोण खींच कर इन छः कोणों ! एक एक लिख इन आठ कोणविवरों में 'नमः स्वाहा, वषट्, पर "क्लीं कृष्णाय स्वाहा" यह मन्त्र एक एक करके लिख हूं, वौषट् ॐ फट' यह षडङ्ग मंत्र लिखना होगा। इसके इसके बाहर दश दलका कमल भडित कर "गोपीजन- बाहर पञ्चदल पद्म लिख एक-एक दलमें "ॐ ईशानाय वल्लभाय स्वाहा” यह दशार्ण मन्त्र उन दश दलों पर नमः ॐ तत्पुरुषाय नमः ॐ अधोराय नमः . सद्यो- लिखना चाहिये। इन दश दलोंके प्रत्येक जोड़ पर 'क्लीं' जाताय नमः, ॐ वामदेवाय नमः" ये पांच मल पूर्वादि- यह कामवोज़ लिखना उचित है, इसके बाद सोलह दल- कमसे लिखना चाहिये। इसके बाहर अष्टदल कमल का कमल अङ्कित कर सोलह किचल्कमें सोलह स्वर अङ्कित कर उसके प्रत्येक दलमें मातृकावर्णके अष्टवर्गका विन्यास कर सोलह पत्रों पर 'ॐ नमोः कृष्णाय देवकी- एक एक वर्ग लिखना चाहिये। इसके बाद तावक पुत्राय हुं फट स्वाहा' यह सोलह अक्षरका मन्त्र लिखना मंत्र द्वारा इस यंत्रको घेर देना होगा। मन्त्र यथा.- होगा। इसके बाहर बत्तीस दल लिख उसके केशरमें "बाम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं उर्वारुकमिव व्यञ्जन वर्ण और अनुष्टुप् मन्तका एक एक वर्ण दलमें वन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्” इस यंत्रको बांधनेसे विन्यस्त करना होगा। अनुष्टुप् मन्त्र यथा,-लौ आयु आरोग्य और ऐश्वर्यलाभ होता है। क्लीं नमो भगवते नन्दपुत्राय वालवपुषे श्यामलाय गोपी- मृत्युखययना . जनवल्लभाय खाहा।' पीछे यही मन्त्र 'ओं को इस __पहले मध्यस्थलमें प्रणव, प्रणवके वोच साध्याक्षर मन्त्रसे घेर कर भूपुर विन्यास कर 'क्लीं कृष्णाय गोवि लिख अष्टदल पनके प्रत्येक दलमें जुज एवं कोण न्दाय' यह अक्षरमन्त उसमें लिखना चाहिये। इस दलमें सः, यह मन लिख पोछे भूपुर अङ्कित कर इसके यन्त्रके धारण करनेसे सव विपदोंका नाश और धर्म, चारो ओर 'सं' और चारो कोणोंमें '४' यह वर्ण विन्यास । अर्थ, काम, मोक्ष-इन चारों पदार्थों की प्राप्ति होती है। करना होगा। यह यत्र बांधनेसे सारे भय भाग जाते . कृष्णायंत्र। है। ग्रहपीड़ा और भूतभय, अपमृत्युभय, व्याधिभय आदि पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिणमे दो दो चार रेखायें की कोई शङ्का नहीं रहती। Vol. XVIII, 124 . .