पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५०

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मुद्रातत्त्व ( भारताय) ४७ चारह सौ वर्ष तक मिस्रसे चीन देश पर्यन्त इस मुद्राका किन्तु उसके वीचमें फिर एक चतुष्कोण छेद देखा जाता प्रचार हुआ था। शासनीयोंकी अरवी मुद्रा पड़वीलिपि- है। लोग उस छेदमें रस्सी घुसा कर गूथ रखते थे। युक्त मुद्रासे मिलतो सुलती है। इन सब मुद्राका नाम 'कश' है। कशके ऊपर राजाकी मुसलमानोंको प्रथम मुद्रा ४० ई में वसोरा नगरमें उपाधि है और हर जगह उसका मूल्य चीनभाषामें अङ्कित प्रचलित हुई । खलीफा अलीने ही सबसे पहले शासनीय है। चीनदेशको मुद्रासे वहांके इतिहासका विविध मुहरादिके बदलेमें अपनी मुद्रा चलाई। ७६ ई०सन्में! रहस्य मालूम होता है। फिर उसके पदकमें नाना अवदुल मालिकका टकसालघर खोला गया । उनकी प्रकारके मन्त्रतन्त्र बीजाक्षर आदि भी लिखे हैं । कोरिया. स्वर्णमुद्रा वा मोहरका नाम 'दीनार' है। यह ग्रीक मोह मानम और यवद्वीपको मुद्रा सर्वाशमें चीनकी अनुकरण रादिको अविकल अनुरूप मात्र है। रौप्यखण्डका नाम ' मात्र है। जापानको मुद्रा भी चीनके आदर्श पर बनी 'दिरहम' (द्रम्म) और ताम्रमुद्राका नाम 'फेल' है। इन है। जापानको तानमुद्रा चीनको विलकुल अनुकरण 'सव मुद्राओंमें जो सब लिपिमाला देखी जाती है उसका है। उसमें फिर विविध वर्गों में लिखित लिपिमुद्रा अर्थ 'अली ईश्वरका अवतार वा वन्धु है ।' मुरादके मुद्रा- देखी जाती है। इस देशको 'कोवाम' नामकी मुद्रा तलमें हजारों धर्मोपदेश देखे जाते हैं। ये सव उप पृथ्वी भरकी मुद्राओंसे बड़ी है। इसका वजन साढ़े देश दिल्लीके पठान वादशाहोंकी मुद्रालिपिके सदृश हैं। वारह सेर है। फिर.कुछ मुद्रा चौकोन है। उनमें ऐन्द्र- इस वाद स्पेनदेशकी ओमायद, अफ्रिकाको फतेमा तथा जालिकका नाम और छड़ी अद्धित है। चीनदेशके मुद्रा- वागदादकी अव्वालवंशीय मुसलमान वादशाहोंको दीनार, तत्त्वको गौर कर देखने से मालूम होता है, ईसाजन्मके दोरहम वा द्रम्म और फेल नामकी मुद्राका नाम पाया ' बहुत पहलेसे वहां मुद्राका व्यवहार था। पाश्चात्य जाता है। फतमा वंशको दीनार और द्रम्म नामकी । पण्डितोंने, ग्रीक मुद्रा ही पृथिवीकी आदि मुद्रा है, इस कुछ मुद्राओंमें एककेन्द्रिक वृत्त देखा जाता है। भ्रममें पड़ कर चीन मुद्राको प्रीकमुद्राको समसामयिक इन सब मुद्राओं के बाद ताहिरी, सफरी, ममानी, ! कहा है। जियारी और ओहिदोंकी दीनारादि मिलती हैं। इसके मारतीय मुद्रातत्त्व। बाद गजनवी और सलूजुकवंशीय मुसलमान बादशाहों- बहुत पहलेसे ही भारतवर्षमें तांबे, चांदी और सोने- को मुहरादि प्रचलित हुई। की मुद्राका प्रचार था। भगवान् मनुने कहा है, कि तैमूरलङ्गने तांबे, पीतल और चाँदीको मुद्रा चलाई। खरीद विक्री आदि लौकिक व्यवहार के लिये ही मुद्राको अहमदशाह दुर्रानीके समयकी बहुतों अफगान-मुद्रा सृष्टि हुई है | मुद्राका मूल्य फिस प्रकार निर्धारित आविष्कृत हुई हैं। होता था, उस सम्बन्धमें मनुसंहितामें इस प्रकार लिखा चीनदेश। पाश्चात्य पण्डितोंने परीक्षा द्वारा यह सावित ८ बसरेणु = १ लिक्षा। किया है, कि चीनदेश वहुत प्राचीन मौलिक मुद्रा ३ लिक्षा=१ राजसप। मिलती हैं। यह मुद्रा चौकोन भारतीय पुराण वा ३ राजसर्षप-१ गौरसर्पप। कार्षापणकी तरह हैं। उनमें ग्रीकशिल्पका कुछ भी अनु. ६ गौरसर्षप-१ यव। ‘करण नहीं है। फिर भी मुद्रातत्त्वज्ञ पण्डित चीनको ३यव१ कृष्णल। प्राचीन मुद्राको ई०सन्के पहले ६ठी शताब्दीको नहीं मानते। चीनमें सबसे पहले पीतलकी मुद्राका प्रचार * "लोम्सव्यवहारार्थ याः संज्ञाः प्रथिता भुवि। . था। चीनदेशको प्राचीन मुद्राका आकार कुछ विस्मय- ताम्रलप्यनुवर्णानां ताः प्रवक्ष्याम्यशेषतः ॥" . जनक है। कोई तो छुरोकी तरह है और कोई गोल है।। । (मनु ८।१३१) .