पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५०२

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यन्त्र उद्देश्य नहीं। प्राचीन समयमें भारतीय वैज्ञानिकोंने अङ्कित किया है। यत्रके यह वृत्त प्रायः लोहे या पीतल- जिन सव यत्रोंका आविष्कार किया था, उन्हीं सवोंका | के तारसे बने होते हैं। यहां उल्लेख किया जाता है। ____ इस रविकक्षाके लिये उत्तरायण और दक्षिणायण ___ पाश्चात्य ज्योतिःशास्त्रके उत्कर्ष-ज्ञापक Teles | तीन तीन छः अर्थात् विषुव-रेखासे उत्तर और दक्षिण cope, Quadrant, Sextant आदि यन्त्रोंके ज्योतिष्क क्रमसे तीन तोन वृत्त बैठाना होगा। अर्थात् मेपके मण्डलीके कोण आदिके निर्णयको उपकारित देख बहुतेरे । अन्तिम पक, कन्याके प्रारम्भमें एक, वृषके शेष और सिह- हो विस्मित होते हैं। यह कोई नहीं कह सकता कि के आरम्भमें तथा मिथुनके अन्त और कर्कटके प्रारम्भमें हमारे भारतमें ऐसे यत्र विद्यमान न थे। पहलेके भार दूसरा, इस तरह उत्तरायण और दक्षिणायन एक दूसरेसे तीय आर्य ज्योतिष्क निरुपण और गणना-कार्य के विषय- ठीक विपरीत राशियों में तीन वृत्त वैठेगे। इन सब वृत्तों- में अनभिज्ञ न थे। ये लोग भी विशेष उद्यमके साथ ग्रह- को अपनी अपनो ध ज्याके व्यासाद्ध के परिणामानुसार नक्षत्र आदि स्थानोंके निरुपणार्थ यत्रादिका आविष्कार | ही रचना करनी होगी । अर्थात् विषुवत् वृत्तके (क्रांति- कर जगत्के सामने चिरस्मरणीय अपनी कीर्ति रख पातवृत्त और अयनान्तवृत्त) प्रमाणके अनुमानसे ही गये हैं। इन तीनों वृत्तोंको खींचना चाहिये। विषुवत् वृत्तको आर्यभट, लल्लाचाय, ब्रह्मगुप्त, सूर्य सिद्धान्तकार और | अपेक्षा मेषांतवृत्त कम, उसको अपेक्षा वृषोन्तवृत्त कम, भास्कराचार्य ने ज्योतिष्क-मण्डलके ज्ञातव्य विषय निरू उसको अपेक्षा मिथुनान्तवृत्त कम-इस तरह उत्तरोत्तर पणार्थ बहुतेरे यत्रोंका उल्लेख किया है। हम उन सबोंका अल्प व्यासाई वृत्त खीचने चाहिये। इस तरहसे तीन संक्षिप्त विवरण यहां देते हैं। वृत्त तय्यार कर भ्रांति विक्षेप भागानुसार दृष्टांत गोल- १ भू-भगोलय'त्र (गोलयत्र) (armillary sphere) मे निव'ध करना होगा अर्थात् विषुवत् वृत्तप्रदेशसे भूगोलके आवश्यकीय विवरण-संग्रह करनेके लिये अत्या- क्रांतिवृत्तके (Declination) और विक्षेप प्रदेशके ( La. श्चर्यजनक गोलयत्रका आविष्कार हुआ है । पहले एक titude ) दूरत्वके अनसार निरूपण करना चाहिये लकड़ीके गोल टुकड़े पर भूपृष्ठ अङ्कित कर उस भूगोल- अथवा आधार वृत्तको समभागसे खंडित कर अङ्कित के ( Earth globe ) मध्य केंद्र द्वारा मेरुद्वय तक एक करना उचित है। लकीर खी चो, पोछे उस भूगोलके दोनों ओर अर्थात् ____इस तरह सूर्याकी अस्फुट क्रान्तिको ले कर गणना ऊपर और नीचे दण्डेके घरावर अन्त पर दोनों विस्तृत करनेसे वृत्तपातकी मीमांसा की जाती है अथवा इस पांतोंमें दो वृत्त संलग्न कर दो। ये उस भूगोलकी | भूगोलयन्त्रके आधारकक्षाद्वयके क्रमिक अङ्कपातसे (Gra. आधारकक्षा है। पीछे उस भूगोलककी चारो सीमाओं पर duation) द्वारा स्थिरीकृत हो सकता है। यह क्रमिकाडू भगोल निवन्धनार्थ पातपोतवृत्त (Equinoctial colure) रेखा-क्रान्ति ( Declination ) और विक्षेप (Latitude) या विषुव सम्बन्धिनी कक्षा (विषुवत वृत्त स्थिर करो। के लिये होता रहता है । विक्षेप शन्दसे क्रान्तिसत इसके बाद आधार कक्षाद्वयके अद्धच्छेद स्थानमें भूगोल ( Circle of declination ) द्वारा कान्तिवृत्तकी मध्यवृत्तकी कल्पना करो ! इसके उपरान्त मेष आदि १२ (ecliptic) दूरना समझनी होगी। राशियोंका अहोरात धन करना होगा। पहले इस इस तरह दक्षिण-भगोलाद्ध में भी अहोरात्र वृत्त पात क्रांतिवृत्तको उगल परिमित ३६० भगांश (Gradua-1 किया जाता है। अभिजित्, सप्तर्षि, अगस्त्य, ब्रह्महृदय ted divisions of the degrees of the Circles) द्वारा आदि स्थिर नक्षत्रोंके अवस्थानके निर्णयसे रेखा पात समभागसे विभक्त कर देना होगा। फिर इस अहोरात्र करनेसे प्रायः और भी ४२ वृत्ताडून किये जा सकते हैं। वृत्तमें १२ राशिपात कर एक वृत्तपात करना, क्योंकि याग्योत्तरवृत्त रेखा विपुवत्, अयन, अपमण्डल, सूर्य देवने उन मेष आदि राशियोंमें कल्पित अहोरात्रवृत्त : (क्रान्तिवृत्त) आदि खगोलके यावतीय प्रह नक्षत्र आदि