पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५०५

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२०२ यन्त्र जाते हैं, उसी तरहसे केन्द्रस्थानमें निवद्धमूल पष्टिके , के अन्तरसे भाग देनेसे भागफल पलभा होगा। प्राच्या- अग्रभागमें भ्रमणशील सूर्यकी गति पड़ती रहनेसे पष्टि | परा रेखाका अन्तर और शंकुका वर्गफल भुज है। नए छाया होती है। कारण, कि पहले ही कहा जा चुका है, कि पष्ठ्याप्रमें रवि समरेखा पर है। अनानसे गणना करनेसे दिन रात वृत्त पर सूर्य तक जितनी घटि- कायें होगी, वे घटिकायें दिनगत काळ या समय समझो जायेगी। इसीके निरूपणके लिये आकाशमें धु ज्यावृत्त अङ्कित करनेको आवश्यकता नहीं। केवल अनान और षष्ट्यप्रद्वयके वोचका स्थान शलाका द्वारा भेद कर दोनोंका अन्तर ले लेनेसे ही हो सकता है। ऐसा होने- से भूमि पर लिखा धु ज्या वृत्तके उस ज्यारूपी शलाका द्वारा धनुमें घटिका ज्ञानकी उपलब्धि करानो ही युक्ति- युक्त है। पूर्वोक्त प्रथासे निवद्ध जो पष्टि निस्तेज हो गई है, उसके ऊपरसे नीचे तक जो लम्बी रेखा है, वही उस समयको शंकु (Sine of altitude ) होती है। शंकु समझ लो, कि 'ख' विन्दु 'ख' 'उ' क्षितिज वृत्तकीर और पेन्द्र इन दोनोंके मध्यस्थान ( Sine of zenith (प्राच्यपरा रेखाका) पूर्वी या पश्चिमी सीमा 'क' उसका distance ) द्वगज्या और शंकुके पूर्व और पश्चिमकी 'ख' मध्यमें (Zenith), 'छ' 'च'घ' अहोरात्रवृत्त 'च' औ अन्तर रेखा और वाटु है ('प्रागपराशानरान्तरं वाहुरिति 'छ' उसमें सूर्य के विभिन्न समयका अवस्थान घटता रक्ष्यति') है। अतएव घ ग और च ङ शंकु (Sine of the altitu- उदयकालमें अथवा अस्तकालमें यदि पप्टिको नष्ट- de of the sun) तव ख ग और ख ऊ रेखा दो भुजा होगी। गङया च ज दोनों भुजाओंके अन्तर और घ धु ति या निस्तेज माना जाय, तो यह दण्ड सम्पूर्णरूपसे ज दोनों शंकुओका अन्तर स्थिर करना होगा। भूलग्न रहेगा। इस तरह पष्ट्यन और प्राच्यपर। रेखा (पूर्व-पश्चिम रेखा )-का अन्तर त्रिज्यावृत्तमें ज्याद्धवत् ५ चक्रयन्त्र ( Vertical circle)-सूर्य के उन्नतांश रहता है। वही अग्रा ( Sine of amplitude ) कह-| (Sun's altitude) और नतांशका (Zenith distance) लाता है। पहले कहा जा चुका है, कि उदयास्तसूत्र | निर्णय करनेके लिये यह यत्र आविष्कृत हुआ है। अभिलपित समयमें शंकुका कार्य करता है। इस शंकुको | सिद्धान्तशिरोमणिके यंताध्याय प्रकरणमें इसकी आकृति और उदयास्त सूत्रके ही वोचका जो व्यवधान है, और प्रस्तुत प्रणाली इस तरह लिखी है,- वह वारह गुणा कर शङ्क से भाग देने पर पल निक- | "चक्र' चक्रांशाङ्क परिधौ श्लथशृङ्खलादिकाधारम् । लता है। धात्री त्रिभ आधारात् कल्प्या भात्र खाच॥ यष्टियन्त्रके साहाय्यसे दो विभिन्न स्थानोंकी उन्नति- | तन्मध्ये सूक्ष्मानं क्षिप्तार्काभिमुखनेमिकं धाय॑म् । ज्या या शंकु (Sines of the altitudes of the sun) भूमेरुन्नतभागास्तत्राच्छायया भुक्तः॥ ले कर पीछे दोनों समयका शंकु और भुज स्थिर करना | तत्खार्द्धान्तश्च नता उन्नतलवसंगुणीकृतं धु दलम् । होगा। भुजद्वय यदि उत्तर और दक्षिण हों, तो जोड़ धु दलोन्नतांशभक्त नाड्यः स्थलाः परैः प्रोक्ताः॥" देने होंगे और यदि समसंज्ञोयुक्त हों, तो घटा देने होंगे। धातुमय या दारुमय समतल चक्र तय्यार कर शृङ्ख- इसके बाद इस राशिको १२से गुणा कर दोनों शंकुओं- लादि आधार द्वारा उसका नेमिदेश सटा और मुला कर