पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५०७

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५०. 'यन्त्र 'दृष्टिपात करों। इस तारे और हमें जो अतर दिखाई। पहलेके निरूपित दिवसके उदयकालका ठीक कर • देता हो वह भध्र पयुक्त अथवा भध्र वहीन करनेसे लेना होगा। जिस दिनका काल जाननेकी जरूरत है. ग्रहके स्फुटग्रहोंका (Celestial longitude) जान उस दिन उदित रविके मेषादि राशियों में जितना अश सकते हैं। रविका पीत गया है, वह और मुज्यमान राशिका भाग ६ नाडीवलय ( Equatoreal dial ) लग्नमान | राशिक्षेत्र भागमें रख कर पहले रविका चिह्न स्थिर करना निर्णयार्थक यन्त्रविशेष । सिद्धान्तशिरोमणिमें लिखा होगा। उस दिनके उदयके समयमें जो यपिच्छाया पश्चिम दिग्वर्तिनी हुई है, उस छायाका रविचित जहाँ "अपवृत्त कुजलग्ने लग्ने चाथो खगोलनलिकान्तः । होगा, वहीं यन्त्रको मजबूतीसे रखना चाहिये। अब भस्थ ध्रु वष्टिस्य चक्र' यष्ट्या निजोदयोश्चाङ्कम् ॥ सूर्य जैसे जैसे ऊपर उठते जाये, यष्टिच्छाया भी वैसो व्यस्त यष्टी भायामुदयेऽकी नास्य नाडिका शेया घेसी क्रमसे उदयचिह्नसे चक्रके नीचेकी ओर (Nadir) घूमती रहती है। छायाके दोनों चिह्नोंमें जो घटिका- इष्टच्छाया बान्तरेऽय लग्नं प्रमायो च। केनचिदाधारेण ध्रुवाभिमुखकीलकेत्र धृते । पात होगी, वही दिनमान समझना चाहिये और उससे यष्टिच्छायाको जिस राशिका जितना क्षेत्रांश है, वही अथवा कीलच्छायावलमध्ये स्युनता नायः॥" लग्न ( Horoscope ) है अर्थात् सूर्योदयविन्दुसे छाया अर्थात् आवश्यकीय परिमाणसे सुन्दररूपसे निष्पन्न | विन्दु क्षेत्रांशसे जितनी दूर हट जायगी, उसी वृत्ताशके एक लकडीका चक्र तय्यार कर उसके नेमिके ऊपरी तलेके अनुसार दिनगत काल और छायाके स्थानमें ही लग्न- समदेशको ६० घटिकायों में विभक्त करना चाहिये। इस- मान लेना होगा। के बाद विशेष बुद्धिमानोके साथ चक्रनेमिके दोनों पाश्ची- में परस्पर उदयके असमान प्रमाणानुसार राशिचक्रके मेपादि राशिको छः अंशों में विभाजित कर देना होगा। इसके बाद चक्रनेमिके दोनों पार्श्व में अङ्कित धारह राशियों के प्रत्येक राशिके उदयास्तकालको फिर २ होरा, ३ द्रेकाण, ३२० अंशके नवांश, २१० के द्वादशांश पश्चिम भौर तीस अंशोंमें विभाजित करना । यही षड़ वर्ग कहा पूर्व- जाता है।

उदयके विलोमक्रमसे चक्रमें राशिपात करना, अर्थात्

मेषके पश्चिममें वृप, वृपके पश्चिम मिथुन इत्यादि । सर्वतोभद्र-यत्रोक्त प्रकारसे विपरीत भावसे राशिपात कर पीछे उसो चक्रमें खगोलको ध्रुवयष्टिके ऊपर भू- केन्द्राभिमुखी कर रखना यहां ध्रुवष्टि (Polar axis) • मेरुके उन्नतांशानुरूपसे उन्नत करना होगा। ऊपर जो चित्र दिखाया गया, उसके द्वारा नांडी- इसी तरह निष्पादित यत्रके साहाय्यसे किस तरह वलय-यत्रका कार्य सम्यक् उपलब्धि हो सकता है। • राशि और अंश द्वारा सूर्यका प्रह ( Sun's longitude) | निरुपणके साथ साथ कालनिर्णय और ( चक्रवृत्तमें)।

. दिगश स्थिर करना होगा। उसका विवरण नीचे दिया

.:.जाता है। कन्या सिह ककट -लग्न | सूर्यादेव जिस तरह पूर्व से पश्चिम भाकाशमें विचरण करते हैं, उसी तरह यष्टिच्छाया भी पश्चिमसे पूर्वकी ओर आती रहती है। इसलिये राश्योदय निरूपणके लिये . यसमें उपरोक्त चित्रकी तरह राशिचक्रके विलोम