पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५१४

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यन्त्र ५११ दो संख्यायें रखी जायेगी, उनकी बड़ी संख्यामें छोटी ८ यन्त्रचिन्तामणि मालिका परंभशुक्ला संख्या घटा देनेसे जो संख्या वाको बचेगी, उससे उनके रामशङ्कर। दूरत्वको उपलब्धि होगी। (घ) ध्रुवभ्रमयन्त्र-नर्मदात्मज पद्मनाभ-रचित । ऊपरमें सूर्या सिद्धान्त और सिद्धान्तशिरोमणिसे। (१३२० शाके) जिन सव यन्त्रोंकी वात कही गई, उनमें कितने ही | | (6) प्रतोदयन्त्र-ग्रहलाघवकार गणेश दैवज्ञ भास्कराचार्य के समयमें बनी थी। ज्योतिर्विद्-प्रवर विरचित । भास्करसे बहुत पहले वराहमिहिर, आय भट, ब्रह्मगुप्त. । (च) यन्त्रराज या सिद्धान्त-सम्राट्-प्रसिद्ध ज्योति- लल्लाचार्य आदि प्राचीन भारतीय ज्योतिपो यन्त्रोंका विद् गजा जयसिंहने युक्लिड या उकलैदिसका अनुवादक व्यवहार कर ज्योतिष्कके कालमान आदिका निर्णय कर जगन्नाथके साहाय्यले आरवी 'मिजास्ती' नामक ग्रंथ गये हैं। संस्कृतमें अनुवाद कर "सिद्धान्तसम्राट" के नामसे भारतीय हिन्दू-ज्योनिपियोंने यन्त्रके सम्वन्धमें वहुन प्रचार किया था। सिवा इसके यवराज रचना प्रकार आलोचना-प्रत्यालोचना कर जिन सव यन्त्रग्रन्थोंका | या जयसिंहकारिका नामसे जयसिंह-रचित और एक प्रतिपादन किया है, उनको पढ़नेसे आर्य ज्योतिपियोंके | ग्रंथ दिखाई देता है। वैधादि द्वारा प्रहज्ञानशक्तिको सम्यक् उपलब्धि हो सकती (छ) गोलानन्द-चिंतामणि दीक्षित प्रणोत ( १७१३ है.। इस समय जो सव संस्कृत ग्रन्थ पाये जाते हैं, उनमें शाके)। यज्ञश्वरले गोला नन्दानुभाविका नामसे कई ग्रंथोंके नाम नीचे दिये जाते हैं, इसकी टोका प्रकाशित को है। (क) सर्वतोभद्रयन्त्र-भास्कराचार्य विरचित।। (ज यनराजघटना और यनराज-पद्धति-मथुरा- (ख) यन्तराज-महेन्द्रसूरि द्वारा प्रणीत । महेन्द्र-! नाथ शुक्ल नामक एक मालवीय-ब्राह्मण रचित । (१७०४ सूरि दिल्लीके वादशाह फिरोजशाह तुगलकके दरवारके | शाके) प्रधान दरवारी या प्रधान पण्डित थे। १३०० शाके (झ) योध्यायविवृत्ति-रामचंद्रकृत । महेन्द्रसूरिके शिष्य मलयेन्दुसूरिने यनराजको टोका (अ) यनसार-नन्दराम मिश्र-प्रणीत । ( १७६३ लिखी थी। यह यवराजनथ ५ अध्यायोंमें पूर्ण हुआ| शाके) है। गणिताध्याय, यत्रघटनाध्याय, यानरचनाध्याय, भारतीय आयुगके प्रतियोगी रूपमें पाश्चात्य यंत्रशोधनाध्याय, यन्त्रविचाराध्याय। जगत्के सुप्राचीन काल्डीय, वविलन, ग्रीस, अलेक- (ग) यनचिन्तामणि-वामन-पुत्र चक्रधर रचित ।। जण्ड्रिया नगरोंमें भी ज्योतिःशास्त्रको उन्नतिके साथ प्रथकारने स्वयं इस प्रथका टोका की है। सिवा इसके ! साथ यतादिका आविष्कार हुआ था। मुसलमान- और भी कई टीकाये पाई जाती हैं। यथा, साम्राज्यके अभ्युदयकालमें विभिन्न प्रकारके यत्रोंका १ यन्तचिन्तामणिदीपिका, (यचिंतामणिकी उद्भव हुआ था। उनमें अरववालोंके आविष्कृत दूर- टोका ), गोदावरी तीरवत्ती पार्थापुर निवासी मधुसूदनके | वीक्षण और समुद्र सूर्णतारकादिकी उच्चता निर्णयका पुत्र रामदैवज्ञ-प्रणीत। (१५१४ शाके) चक्रय न ( Astrolabe ) विशेष प्रशसाह है। अम्बरा- २यनचिन्तामणिदीपिका-प्रणेता हरिशङ्कर। धिप सवाई जयसिंहने भारतीय ज्योतिःशास्त्रकी उन्नति- ३ यत्रचिन्तामणिविवृत्ति-प्रणेता पारणशुक्ल। के सम्बन्धमें प्राच्य और प्रतीच्य यन्त्रके सम्यक् उपका- ४ । उदाहरण (१७१४ शाके), कृपाराम मिश्र । रिता उपलब्धि कर इन सब यन्त्रों और खकपोलोद्भावित ५ ॥ (१७६७), दिनकर। नये नये यन्त्रोंको भी अपने वेधशालामें (observatory) भवानीशङ्कर। स्थापित किया था। उनके अपने रचित जयप्रकाश, ७, मालिका रामशुक्ल। । रामयन्त्र और सम्राट्यन्त्र वैदेशिकको अनुकरणसे गठित