पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५१५

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५१२ यन्त्र-यन्त्रधारागृह हुया था। वे वेधशाला स्थापनकार्यमें यूरोपवासियोंके , प्रत्ययेन यन्त्रः ततः स्वार्थे क-प्रत्ययेन निष्पन्न । १ यन्त्र ऋणी थे। उनके अध्यवसायसे दिल्ली, जयपुर, मथुरा, | काठ, कुन्द । २ सुश्रुतके अनुसार कपड़े का यह बंधन बनारस और उज्जयिनी नगरीमें वेधशालायें प्रतिष्ठित जो घाव आदि पर बांधा जाता है, पट्टो। इसे अंगरेजी- हई थीं। वेघालय और जयसिंह देखो। में bondage कहते हैं।

वर्तमान युगमें भारतीय यन्त्र यर्धाकी कमी होने पर यन्त्रयति वघ्नाति सेतुप्रभृनोनीति यन्ति ण्वुल।

भी विल्कुल अभाव नहीं है। बहुत दिनकी वात नहीं। (वि० ) ३ शिल्पिमात्र, यंत्र आदिको सहायतासे चीजे है, कि उड़ीसेके गण्डपाड़ा राज्यके राजा नृसिंह भद्र- तैयार करनेवाला । ४ चमी, सययो । ५ वशीकरणशील, राज भ्रमरवर राज्यपनि और उसके पुन्न श्यामवन्धु- वशर्म कर लेनेवाला। तनय महामहोपाध्याय चन्द्रशेखर सिंहने सामन्त ( जन्म | यन्त्रकरण्डिका (सं० स्त्रो०) भोजवाजी प्रदर्शनार्थ पेटि- १८३५ ई० ) सम्पूर्ण वैदशिक शास्त्रानभिज्ञ होने पर भी फाभेद, वाजीकरोंकी पेटी जिसके द्वारा चे अनेक प्रकारके उस दिन अपनी बुद्धि, द्वारा ज्योतिपिकयन्त्र निर्माणमें , खेल करते हैं। और यन्त परिचालनका परिचय दिया है उनके कार्यकर्म : यन्त्रकर्मकृत् ( स० पु०) शिल्पी, वह शिल्पकार जो यन्त्र और गणनादि देन कर यूरोपीय ज्योतिपि समाज आदिको सहायतासे चीजें तैयार करता हो। . विस्मित हो गया है। राजवंशधर चन्द्रशेखर उड़िया . यन्त्रगरुड़ ( स० पु० ) यन्त्रकौशलमें प्रस्तुत गरुडाकृति । वर्णमाला और संस्कृत तथा उड़िया भापाके सिवा • इसको कल धुमानेले गरुड़ मापसे आप उड़ने लगता तीसरी भाषा जानते न थे । उनका असाधारण है। ज्योतिशाखभिशताने उनको विख्यात् यूरोपीय ज्योति- यन्त्रगृह ( स० क्लो० ) यत्रस्य प्रहः। १ तैलशाला, वह विद Trcho Brahe को अपेक्षा उच्छासन प्रदान स्थान जहां तेल चुभाया जाता है। २ वेधशाला।३ किया है। ३रासायनिक यनागार। ४ यत्रणा देनेका घर बह वर्तमान यूरोपमें वैज्ञानिकोंके उत्साहसे बहुतेरे . स्थान जिसमें प्राचीनकालमें अपराधियों आदिको रख ज्योतिर्विद्या विषयक यन्त्रोंका आविष्कार हुआ है। इन . कर भनेक प्रकारको यत्रणा दी जाती थी। सब यन्त्रोंका विवरण लेख पढ़ जानेके भयसे यहां लिखा यन्तगोल (सं० पु०) कलायविशेष, उरद । न गया। ऊपर केवल याम्योत्तर भित्तियन्त और प्राचीर यन्त्रचेष्टित ( स० क्लो० ) भौतिक क्रिया, जादूगरो। वृत्तका उल्लेख किया गया। क्योंकि कुछ संस्कृत। यन्त्रण (सं० क्लो० ) यंत्र-ल्युट् । १ रक्षण, रक्षा करना। ग्रन्थकोर इन सबको उपकारिता उपलब्ध कर उसका २वधन, वांधना। ३ नियम। विवरण लिख गये हैं। इस तरह शचीन विवरणोमें यन्त्रणवासन ( स० क्ली०) शता.दे वांधनेके लिये शादक, दिगंशयन्त्रका भो (Aximurth circle) आभास मिलाता | सुश्रुतके अनुसार कपड़े का वह बंधन जो घाव आदि है। विद्यालय देखो। पर बांधा जाता है। विज्ञानवर्चाकी उन्नतिके साथ साथ नाना तरहके | यन्त्रणा (सं० स्त्री० ) योनि (न्यास श्रन्यो युच् । पा रासायनिक और वैज्ञानिक यन्लोंका आविष्कार हुआ| २३६१०७ ) इति युच् टाप। १ वेदना, दद । २ यातना, है। अडविज्ञानके अन्तर्गत विद्युत-आलोक और तकलीफ। जलके सम्बन्धमें पदार्थज्ञानघातक जिन सब यन्त्रोका यन्ततक्षान् ( स० पु०) यसकार, वह जो यत्र बनाता उद्भव हुभा है उन सवोंका विवरण विज्ञान शब्दोंमें | और रासायनिक यन्तादिका इतिहास रसायन शब्दमें | यन्त्रढ़ ( स० वि०) अर्गलावद्ध । लिखा गया है। विशान और रसायन देखो। यन्त्रधारागृह ( स० क्ली० ) यह स्नानगृह जो यत्र द्वारा यन्त्रक (सं० क्ली०) यम्पते काठमनेनेति यवधातोस्त्र- परिचालित धारायुक्त हो, फुव्वारा।